सरकार की सौतेली संतान
शिक्षक दिवस पर मोदी ‘सर’ का बच्चों को सम्बोधन असामान्य तौर पर सफल रहा। कुछ विपक्षी प्रदेशों में प्रसारण सुनने भी नहीं दिया गया। यह बचकाना हरकत है। प्रधानमंत्री ने बच्चों से सही बात की। यह तो नहीं कहा कि आप बड़े होकर भाजपा को वोट देना! बच्चे खुश और उत्साहित थे। लखनऊ के एक मदरसे में लड़कियों के लिए भाषण सुनने का विशेष प्रबंध किया गया। एक दिन पहले नरेन्द्र मोदी अध्यापकों से बात कर हटे हैं जब उन्होंने बताया था कि अध्यापन जीवन धर्म है पेशा नहीं। प्रधानमंत्री ने इन दो दिनों में जो कुछ कहा, और उनके आलोचकों ने जो आपत्ति की उसके बाद एक बार फिर देश का ध्यान अध्यापन और अध्यापक पर केन्द्रित हो गया है।
देश में लगभग 50 लाख अध्यापक हैं। अधिकतर का वेतन तथा काम करने की परिस्थितियां शोचनीय हैं। कुछ स्कूलों में काम कर रहे अध्यापकों के पास पक्की नौकरी है पर असंख्य निजी स्कूलों में अध्यापक का शोषण हो रहा है। सरकारी स्कूलों में वेतन इत्यादि सही मिलता है पर उनके काम करने की परिस्थिति बुरी है। सही इमारत नहीं। कमरे नहीं। डेस्क या ब्लैक बोर्ड नहीं। लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं। शिमला के नजदीक एक सरकारी स्कूल के बच्चों को शौच के लिए नियमित तौर पर अध्यापक पंक्ति बना कर जंगल ले जाते हैं। बीएड की डिग्री जरूरी है लेकिन इसे समय की जरूरत के अनुसार आधुनिक नहीं किया गया। बहुत जरूरी है कि सरकारी अध्यापकों के लिए रिफ्रैशर कोर्स लगाए जाएं ताकि उन्हें मालूम रहे कि दुनिया भर में शिक्षा किस तरह दी जा रही है? पर सरकारी स्कूल में जो अध्यापक भर्ती हो गया वह रिटायर होने तक उसी तरह चलता जाता है। जो अध्यापक गांवों में हैं उनसे कोई सम्पर्क नहीं। यह भी मालूम नहीं कि वह नियमित अपनी कक्षा लेते भी हैं या नहीं? इस देश को पिछड़ा रखने में सरकारी स्कूलों की बड़ी भूमिका है। पिछले साल संसद में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत अध्यापक अपनी कक्षा नहीं लेते। वेतन जरूर लेते हैं। पंजाब में कई सौ अध्यापक विदेश खिसक गए हैं। विभाग अब उन्हें ढूंढ रहा है। आज वही बच्चा सरकारी स्कूल में जाता है जो निजी स्कूल की फीस नहीं भर सकता। इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग लेना चाहिए। बहुत लोग/संस्थाएं/उद्योग योगदान डालना चाहेंगे। प्रादेशिक शिक्षा बोर्ड तथा सीबीएसई के स्तर में जमीन आसमान का फर्क है। इस खाई को पाटने की जरूरत है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार देश में 10 लाख अध्यापकों की कमी है। सरकारी भर्ती एक स्कैंडल है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला अध्यापक भर्ती स्कैंडल के कारण ही जेल में हैं लेकिन यह नहीं मानना चाहिए कि वह एकमात्र हैं। हर प्रदेश में भर्ती में घपला है। कई प्रदेश सस्ते अध्यापक भर्ती कर रहे हैं। यह पूरी तरह से योग्य भी नहीं होते, न उनकी सेवा ही सुरक्षित होती है और न ही उन्हें ग्रेड मिलते हैं पर भावी पीढ़ी इन्हें सौंप दी जाती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने यह सवाल उठाया कि क्या वजह है कि अधिकतर लोग टीचर नहीं बनना चाहते? अध्यापन अब सम्मानित तथा उत्तम व्यवसाय क्यों नहीं रहा? इसके कई कारण हैं। एक, वह वेतन तथा सुविधाएं नहीं मिलतीं जो दूसरे व्यवसायों में आजकल मिलती हैं। दूसरा, समाज में शिक्षक की वह इज्जत नहीं रही जो पहले थी। इसका एक बड़ा कारण खुद शिक्षक हैं जो इज्जत के अधिकारी बनने का प्रयास नहीं करते। उनका सारा ध्यान अपने वेतन तथा ‘ड्यूज़’ पर लगा रहता है, शिक्षा पर वह केन्द्रित नहीं। सभी ऐसे नहीं हैं। असंख्य ऐसे हैं जो अपनी जिम्मेदारी को अपना धर्म समझते हैं। उनके लिए यह पेशा नहीं। एक अध्यापक के बारे पढ़ रहा था कि वह 26 वर्ष से मुफ्त पढ़ाई करवा रहें हैं। पंजाब की एक अध्यापिका स्कूल पहुंचने के लिए 120 किलोमीटर रोज़ सफर करती हैं। हमारे मास्टर दीवान चंद 90 वर्ष से अधिक आयु में भी गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं। पहले ऐसी बहुत सी मसालें मिलती थीं, अब वह कम क्यों होती जा रही हैं? शिक्षक यह क्यों नहीं समझता कि उसने बच्चों के चरित्र तथा भविष्य का निर्माण करना है? जिन्होंने बच्चों की जिंदगियां बनानी हैं वह खुद धरने पर बैठ जाते हैं। जैसे धर्मेन्द्र ‘शोले’ फिल्म में पानी की टंकी पर चढ़ गए थे, पंजाब में नियमित तौर पर अध्यापकों का एक वर्ग ऐसा कर रहा है। अफसोस की बात है कि जिन्हें बढिय़ा सरकारी ग्रेड भी मिले हुए हैं और अधिकतर के पास कारें हैं, वह भी धरना देने के लिए तैयार रहते हैं। जो अध्यापक हाय! हाय! के नारे लगाते हैं उन्हें यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि बच्चे उनकी इज्जत करेंगे। बच्चों की पढ़ाई छोड़ कर हड़ताल करना और धरने पर बैठना शर्मनाक है। बहुत अध्यापक ट्यूशन देते हैं, कोचिंग केन्द्र चलाते हैं। सुबह पांच बजे से शुरू हो जाते हैं। स्कूल या कालेज में शिक्षा देने का उनका असली मकसद अपनी ट्यूशन/कोचिंग के लिए छात्र आकर्षित करना है। अगर सही पढ़ाई करवाई जाए तो ट्यूशन की जरूरत क्यों पड़े? सरकार ने पाबंदी लगाई हुई है लेकिन कोई नहीं सुनता। अगर सम्मान चाहिए तो उन्हें सम्मान के अधिकारी भी बनना चाहिए।
सरकार की नीतियां भी अध्यापक के काम को मुश्किल बना रही हैं। कुछ न कहो, हाथ न लगाओ, फेल होने पर भी पास करते जाओ की बुद्धिहीन नीति से हम पढ़े लिखे बेरोजगार बना रहे हैं या अनपढ़ उज्जड। अगर बच्चा नालायक है तो उसे दसवीं तक पास क्यों किया जाए? अगर वह नियंत्रण में नहीं रहता तो उसे अनुशासित कैसे किया जाए? चंडीगढ़ में काकाओं (नेताओं तथा अफसरों की बिगड़ी औलाद) के उत्पात पर पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपने जमाने को याद करते हुए सुझाव दिया है कि ‘छित्तर परेड’ इस बिगड़ी औलाद को सही करने के लिए जरूरी है लेकिन आजकल छित्तर तो कहां अध्यापक चांटा भी नहीं लगा सकता। उसके खिलाफ केस हो जाएगा। हम सबने अपने स्कूली दिनों में कभी न कभी मार खाई हुई है। इससे नुकसान नहीं हुआ। हम में कोई हीन भावना नहीं आई। किसी ने आत्महत्या नहीं की। आगे के लिए दुरुस्त अवश्य हो गए। जब अध्यापक का डर ही नहीं रहा अनुशासन आएगा कहां से? कपिल सिब्बल को बहुत चिंता थी कि बच्चों पर बहुत बोझ है। ‘स्ट्रेस’ है। पर हम सबने यह बोझ झेला है। कोई नुकसान नहीं हुआ। बच्चों की मेहनत करने की क्षमता को कम नहीं समझना चाहिए।
यह नियम कि बच्चा कुछ भी कर ले उसे कुछ न कहा जाए वास्तव में उन्हें बिगाड़ रहा है। मां-बाप भी रुकावट खड़ी करते हैं। वह बच्चे को किसी तरह के दंड के खिलाफ पुलिस में पहुंच जाते हैं। घरों में भी मां-बाप का डर जा रहा है वह ‘फ्रैंड्ज़’ बन गए हैं। अभिभावकों का एक वर्ग है जो बच्चों को अपने लाड़-प्यार या अपने पैसे से बिगाड़ रहा है। जब बच्चा बिगड़ जाता है तो अपने सिवाय सबको जिम्मेवार ठहराते हैं। अगर इतने रेप हो रहे हैं, अगर इतना नशा है तो परिवार भी तो इसके लिए जिम्मेवार हैं। पर नहीं। अगर शिक्षण संस्थाएं उन्हें अनुशासित करने का प्रयास करतीं हैं तो अभिभावक भी धरने पर बैठने के लिए तैयार रहते हैं जबकि घर में भी ऐसे लड़कों के साथ छित्तर परेड़ की जरूरत है।
सरकार, शिक्षण संस्थान, अध्यापक वर्ग तथा अभिभावक सभी को अपनी अपनी भूमिका पर गौर करना चाहिए। पाठ्यक्रम में अनुशासन तथा कर्त्तव्य का उचित पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। बच्चों में संस्कार नहीं भरे जाते। सैक्यूलरवाद ने मूल्यहीन पीढ़ी बना दी है। स्कूल तथा कालेज जिंदगी का सामना करने के लिए बच्चों को तैयार करते हैं। उनका काम आसान न बनाओ क्योंकि जिन्दगी भी कहां आसान है! कड़वी सच्चाई है कि शिक्षा के क्षेत्र से हर सरकार, केन्द्र या प्रादेशिक, ने धक्का किया है। शिक्षा हमारी सरकार की सौतेली संतान है। बहुत कम खर्च किया जाता है। पंजाब में तो मिड डे मील में कीड़े मिलने के बाद बच्चों ने खाने से मना कर दिया है। शिक्षा सरकारी प्राथमिकताओं में है ही नहीं, शिक्षक दिवस या बाल दिवस पर कुछ भी कहा जाए। आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी बच्चों में जो दिलचस्पी दिखा रहे हैं उससे तस्वीर बदलेगी। यह देश प्रतिभा का खजाना है। मौका मिलना चाहिए। आखिर एक गांव के स्कूल में पढऩे वाला चाय वाले का बेटा आज यहां देश का प्रधानमंत्री बन सबको प्रभावित कर रहा है।