
हवा का रुख?
महाराष्ट्र तथा हरियाणा के विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। भाजपा तथा कांग्रेस के लिए आम चुनाव के बाद यह सबसे बड़ी परीक्षा होगी। भाजपा यह विश्वास तो प्रकट कर रही है कि वह दोनों, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में अपनी सरकारें बनाएगी लेकिन मामला इतना आसान नहीं है। यह सही है कि कांग्रेस की हालत खराब है। राहुल गांधी तो शायद इन दो प्रदेशों में प्रचार भी न करें। उनकी मांग भी नहीं है, लेकिन पीछे हुए उपचुनाव बता गए हैं कि विधानसभा चुनावों में लोकल फैक्टर अधिक प्रभावी होता है। लोगों ने लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के लिए मतदान कर दिया अब यह न समझा जाए कि प्रदेश चुनावों में भी वैसा ही होगा। प्रदेश चुनावों में नरेन्द्र मोदी के लिए नहीं, भाजपा के पक्ष या विपक्ष में मतदान होगा। इन दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें हैं। इसका कांग्रेस को नुकसान होगा क्योंकि यहां शासन विरोधी लहर चल सकती है। भाजपा के लिए यह विशेष चुनौती इस लिए भी है क्योंकि इन दो प्रदेशों में पार्टी का कभी भी मुख्यमंत्री नहीं रहा। इस वक्त भी पार्टी किसी व्यक्ति को अगले मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं कर रही क्योंकि एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। पर लोग तो चाहते हैं कि उन्हें बताया जाए कि अगर भाजपा वहां सत्ता में आती है तो उसका मुख्यमंत्री कौन होगा?
महाराष्ट्र बड़ा प्रदेश है जहां 288 सीटें हैं। मुम्बई की महानगरी पर शासन करना हर राजनीतिक दल की महत्वाकांक्षा रहती है। वहां भाजपा-शिवसेना बनाम कांग्रेस-एनसीपी टक्कर होगी। एनसीपी पहले से कमज़ोर हुई है पर भाजपा तथा शिवसेना के सम्बन्ध भी खट्टे-मीठे रहते हैं। उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं लेकिन भाजपा के दबाव में अब कुछ पीछे हट गए हैं। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का नेतृत्व फीका समझा जाता है लेकिन उनकी छवि एक ईमानदार व्यक्ति की है परन्तु एनसीपी के अजीत पवार का नाम कई घपलों के साथ जुड़ा है जिसमें 70 लाख करोड़ रुपए का सिंचाई घपला भी शामिल है। जहां तक हरियाणा का सवाल है, वहां किसी भी पार्टी में स्पष्टता नज़र नहीं आ रही। कांग्रेस में यह तो तय है कि मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ही मुख्यमंत्री होंगे अगर पार्टी दोबारा सत्ता में आती है लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 10 में से केवल एक सीट मिली थी जबकि भाजपा 7 तथा इनैलो 2 सीटें ले गई थीं। मुख्यमंत्री को इस गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है कि उन्होंने केवल रोहतक, सोनीपत तथा झज्जर के जाट क्षेत्रों में विकास की तरफ ही रुचि दिखाई है। गैर-जाट क्षेत्रों की उपेक्षा की गई जो शिकायत शैलजा भी कर चुकी हैं। ऊपर से कांग्रेस से बहुत नेता पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं जिनमें प्रमुख बीरेन्द्र सिंह हैं।
क्योंकि भाजपा केन्द्र में सत्तारूढ़ है इसलिए बड़ी संख्या में दूसरी पार्टियों से चूहे छलांग लगा कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। भाजपा आश्वस्त तो लगती है पर याद रखना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे केवल 4 सीटें ही प्राप्त थीं। 4 से 45 का चमत्कार कैसे हो जाएगा? भाजपा की बड़ी समस्या है कि किसी और दल के साथ गठबंधन करे या न करे? और अगर करना है तो किस के साथ करे? पहले कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन की चर्चा थी लेकिन जब से कुलदीप बिश्नोई खुद हिसार की अपनी सीट हार गए तब से भाजपा की उनमें दिलचस्पी खत्म हो गई है। अब बिश्नोई रोज़ाना भाजपा पर वायदा तोडऩे का आरोप लगा रहें हैं और उन्होंने विनोद शर्मा की वन मैन पार्टी से गठबंधन कर लिया है। सामान्य तौर पर हरियाणा में शासन विरोधी भावना का इनैलो को फायदा होना चाहिए था लेकिन पार्टी के दो बड़े नेता ओमप्रकाश चौटाला तथा अजय चौटाला भर्ती घोटाले के कारण जेल में हैं जिससे इनैलो का नुकसान हो रहा है। अगले सप्ताह उनकी जमानत की अर्जी पर फैसला होना है अगर वह बाहर आ जाते हैं तो पार्टी में जान पड़ सकती है। इस वक्त भाजपा, कांग्रेस तथा इनैलो तीनों के बीच दौड़ नज़र आ रही है। अगर भाजपा तथा इनैलो के बीच गठबंधन हो जाता तो उनकी जीत आसान हो जाती पर भाजपा में बहुत नेता हैं जो चौटाला परिवार तथा उनकी राजनीति से अलर्जी करते हैं लेकिन जरूरत पडऩे पर चुनाव के बाद इनैलो के साथ गठबंधन की संभावना को रद्द नहीं किया जा सकता।
अर्थात् दोनों महाराष्ट्र तथा हरियाणा में स्थिति अस्पष्ट है और भाजपा नेता कुछ भी कहें उनके पक्ष में वैसी लहर नज़र नहीं आती जैसी लोकसभा चुनावों में देखी गई थी। अमित शाह के लिए यह चुनाव बहुत बड़ी चुनौती होगी क्योंकि पिछले उपचुनावों के परिणाम भाजपा के लिए अच्छे नहीं रहे। यहां ‘लव जेहाद’ जैसा कोई मुद्दा नहीं। योगी आदित्यनाथ जैसी कोई शख्सियत भी नहीं जो ध्रुवीकरण के काम आए। भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा हो सकता है। हरियाणा में विशेषतौर पर ‘जीजाजी’ अर्थात् सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के भूमि घोटाले बड़ा मुद्दा हो सकते हैं। महाराष्ट्र में भी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जा सकता है पर बढ़ती महंगाई तथा अच्छे दिनों का इंतजार भाजपा पर भारी पड़ सकते हैं।