पर दिल है हिन्दोस्तानी!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका पहुंच गए हैं। विश्व मंच पर यह उनका पहला बड़ा कदम है। इससे पहले उनकी ब्राजील तथा जापान की महत्वपूर्ण यात्राएं हो चुकी हैं लेकिन न्यूयार्क-वाशिंगटन तथा अमेरिका अलग है। वह देश महाशक्ति है, अंतरराष्ट्रीय मीडिया का केन्द्र है। यहां संयुक्त राष्ट्र भी है जहां हर देश का नेता अपनी बात कहने को हर साल पहुंचता है, कोई सुने या न सुने। इनके अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का एक और पहलू भी है। यह वहां के भारतीय-अमेरिकी समुदाय का जोश है। यह जोश केवल उनके गुजराती समुदाय तक ही सीमित नहीं बल्कि वहां रह रहे भारतीय मूल के सभी लोग उनकी यात्रा से उत्साहित हैं। अनुमान है कि उन्हें सुनने के लिए जितने लोग आएंगे वह पहले किसी और विदेशी नेता के लिए वहां इकट्ठे नहीं हुए। वहां रह रहे भारतीय मूल के लोगों के लिए यह भावनात्मक क्षण है। चाहे उनकी जेब में डालर हैं पर दिल से वह हिन्दोस्तानी ही हैं। वह खुद मंदिर या गुरुद्वारों में जाते हैं तो उनके बच्चे भंगड़ा या गरबा या ‘बालीवुड डांस’ सीखते हैं। योगा तो वैसे ही लोकप्रिय है। वहां बसे भारतीय मूल के लोग सबसे समृद्ध और सफल प्रवासी समुदाय में गिने जाते हैं। कई भारतीय टैक्सी चलाते हैं या पेट्रोल पम्प पर या दुकानों पर काम करते हैं लेकिन बड़ा वर्ग सफल प्रोफैशनलस का है। हज़ारों की संख्या में भारतीय वहां डाक्टर हैं। सत्या नडेला, जो मोदी का मैडिसन स्कवेयर गार्डन में भाषण सुनने पहुंच रहे हैं, माइक्रोसाफ्ट के अध्यक्ष हैं। लूजि़याना तथा दक्षिण कैरोलीना के गवर्नर भारतीय मूल के हैं। वहां बसे भारतीय परिवारों की औसत आमदन 88,000 डालर (53 लाख रुपए) है जबकि अमेरिकी परिवारों की औसत केवल 49,800 डालर (30 लाख रुपए) है। अमेरिका में स्नातक केवल 28 प्रतिशत हैं पर भारतीय समुदाय की औसत 70 प्रतिशत है।
जो भारतीय वहां गए हैं वह सफल होने के लिए गए हैं। मेहनत करनी हमें आती है। दिमाग हमारे पास है जो एक बार फिर मंगलयान की सफलता ने सिद्ध कर दिया पर हममें अनुशासन की कमी है और यहां अवसर नहीं मिलते। क्योंकि अमेरिका का समाज और व्यवस्था यह मौका देते हैं इसलिए हम बाहर बहुत सफल होते हैं। हम इतने सफल हैं कि उन्होंने हमारे आईटी विशेषज्ञों पर वीज़ा प्रतिबंध लगा दिए हैं क्योंकि हम उनकी नौकरियां छीन रहे थे। वहां बसे भारतीय समुदाय ने अपने परम्परागत मूल्यों को संभाल कर रखा है जो बात प्रमुख अखबार ‘द वाल स्ट्रीट जनरल’ ने भी कही है। इस अखबार के सर्वेक्षण के अनुसार वहां बसे 78 प्रतिशत भारतीयों के लिए अच्छे अभिभावक बनना सबसे महत्वपूर्ण बात है जबकि अमेरिका की औसत 50 प्रतिशत है। 64 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि सफल विवाह बहुत महत्व रखता है जबकि अमेरिका की औसत 34 प्रतिशत ही है। भारतीयों की समस्या है कि नई पीढ़ी अमेरिकन है। उन्हें भारतीय मूल्य सिखाने का बहुत प्रयास किया जाता है। घरों में हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, तमिल आदि भाषाएं बोली जाती हैं ताकि बच्चे अपनी जड़ से जुड़े रहें। कई सफल होते हैं, कई असफल। वहां बसे भारतीयों में एक और भावना भी प्रबल है जिसे वह स्वीकार नहीं करते। यह भावना अपराध बोध की है। वह उस समृद्धि के लिए जो यहां उन्हें नहीं मिली, अपना घर छोड़ कर चले गए थे। इसीलिए अब हर साल अपने देश के चक्कर लगाते हैं। वह हमसे धार्मिक भी अधिक हैं। पश्चिमी जगत में फैले ‘इंडियन स्टोर्स’ और ‘इंडियन रैस्टोरैंट’ भी इस बात का प्रमाण हैं कि जिसे छोड़ कर वह वहां गए थे वह उनके दिल में बसा है। भारत से वह दूर जा सकते हैं, भारतीय संस्कृति से नहीं।
यही कारण है कि भारत की हर घटना से वह जुड़े रहते हैं। वह अधिक प्रभावित होते हैं। वह हमारे अधिक आलोचक भी हैं क्योंकि वह अमेरिका को देखते हैं और देखते हैं कि भारत कितना पिछड़ा है। वह यह नहीं समझते कि भारत एक प्राचीन सभ्यता है जिसका पहिया बहुत धीमा घूमता है। लेकिन भारत की हर कामयाबी पर भी वह हमसे अधिक उछलते हैं। उन्हें अपनी मातृभूमि पर गर्व करने के लिए कुछ चाहिए। कई क्षण ऐसे आए भी हैं। जवाहरलालजी अंतरराष्ट्रीय स्तर के नेता थे। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा दिए। राजीव गांधी से बहुत आशा थी। वह आधुनिक तथा खूबसूरत थे लेकिन उन्होंने जल्द निराश भी कर दिया। मनमोहन सिंह की अंतरराष्ट्रीय ख्याति थी लेकिन व्यक्तित्व नीरस है। अब मोदी पहुंच गए हैं जो भारतीय परम्परा से जुड़े हैं तथा देश को आधुनिक बनाना चाहते हैं। बढिय़ा वक्ता हैं। वहां बसा भारतीय समुदाय उनका दीवाना हो गया है। बढिय़ा हिन्दी बोलते हैं (विस्तारवाद नहीं विकासवाद)। उन्होंने पाकिस्तान के साथ वार्ता तोड़ दी और चीनी राष्ट्रपति से भी सीधी बात कह दी। उनमें दम है कि लालकिले से 15 अगस्त को रेप तथा टॉयलेट की बात कर सके। प्रवासियों को आशा है कि वह एक साफ सुथरा विकासशील आधुनिक प्रशासन देंगे। चाय वाले से प्रधानमंत्री तक का उनका संघर्ष भी उन्हें रोमांचित करता है क्योंकि वहां एक-एक ने संघर्ष किया और अपनी जगह बनाई है। अमेरिकी समाज बहुत प्रतिस्पर्धी है वहां कामयाब होना आसान नहीं। हर भारतीय-अमेरिकी को मोदी की सफलता की कहानी में अपनी कहानी नज़र आती है। इसीलिए इतना भावनात्मक स्वागत हो रहा है। मोदी में बरसों के बाद उन्हें नई आस दिखी है कि यह नेता उनकी प्राचीन सुस्त अव्यवस्थित मातृभूमि को बदल देगा। आखिर अमेरिका से लौट कर वह 2 अक्तूबर को ‘स्वच्छ भारत’ अभियान शुरू करने जा रहे हैं। हाथ में झाड़ू होगा। हमसे भी ज्यादा प्रवासी उन्हें सफल देखना चाहते हैं।