पंजाब में पहले ‘सेव कांग्रेस ‘

पंजाब में पहले ‘सेव कांग्रेस’

राहुल गांधी की चंडीगढ़ यात्रा बुरी तरह से विभाजित प्रदेश कांग्रेस में एकता कायम करने में सफल नहीं रही। पार्टी अभी भी प्रदेश अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा तथा पूर्व मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह के बीच बंटी हुई है। कांग्रेस पिछली दो बार पंजाब में हार चुकी है। यह भी सब मानते हैं कि इस वक्त पंजाब में अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ शासन विरोधी भावना चल रही है लेकिन इसके बावजूद प्रदेश का नेतृत्व इकट्ठा मिल कर स्थिति का फायदा उठाने को तैयार नहीं। राहुल के दौरे के दौरान भी यह गुटबाजी नज़र आई। अमरेन्द्र सिंह प्रताप सिंह बाजवा को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। कांग्रेस का यह दुर्भाग्य है कि पार्टी के हाईकमान का अपना अवमूल्यन हो गया है। लगातार हार से नेतृत्व की चमक खत्म हो रही है राहुल गांधी को विशेष तौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता। अगर हरियाणा तथा महाराष्ट्र में कांग्रेस को धक्का पहुंचता है, जैसी संभावना है, तो कांग्रेस का नेतृत्व और दुर्बल हो जाएगा।
पंजाब में असली समस्या है कि पार्टी के नेता अभी से अगला मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में कूद गए हैं। अगर तब तक प्रताप सिंह बाजवा प्रदेश अध्यक्ष रहते हैं तो निश्चित तौर पर उनकी दावेदारी रहेगी। राहुल नरेन्द्र मोदी की तरह पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन की कोशिश भी कर रहे हैं। उपाध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही राहुल ने जो नियुक्तियां की थीं प्रताप सिंह बाजवा को प्रदेशाध्यक्ष बनाना इसमें शामिल है। अमरेन्द्र सिंह को दिल्ली में इसलिए ले जाया गया था ताकि पंजाब कांग्रेस में चैन रहे पर उलटा हो रहा है। अमरेन्द्र सिंह चैन से बैठने को तैयार नहीं। उन्होंने तो प्रदेश अध्यक्ष पर सीधा हमला बोल दिया था कि अब इनकी जरूरत नहीं है। अमरेन्द्र सिंह कह चुके हैं कि बाजवा जरूरत से अधिक ठहर चुके हैं इसलिए पार्टी हाईकमान को प्रदेश की बागडोर ‘जिम्मेदार हाथों’ में देनी चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि अमरेन्द्र सिंह को खामोश करने में हाईकमान नाकामयाब रहा है। बाजवा का यह दुर्भाग्य है कि लोकसभा चुनावों में वह गुरदासपुर से सभी नौ क्षेत्रों में पराजित हो गए थे यहां तक कि जिस चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उनकी पत्नी करती है वहां भी कांग्रेस हार गई थी। फिर पंजाब के हुए दो उपचुनावों में पटियाला से अमरेन्द्र सिंह की पत्नी परनीत कौर तो जीत गई पर तलवंडी साबो से हरमिंदर सिंह जस्सी जिनका समर्थन बाजवा कर रहे थे, चारों तरफ हार गए। उल्लेखनीय है कि अमरेन्द्र सिंह केवल पटियाला में रहे थे और उन्होंने जस्सी की मदद में आने से इन्कार कर दिया था।
जब से अमरेन्द्र सिंह ने अमृतसर से अरुण जेतली को एक लाख से अधिक वोट से हराया है तब से महाराजाजी बहुत ऊंची हवा में हैं लेकिन वह भूल गए कि उनके नेतृत्व में दो बार कांग्रेस पंजाब में हार चुकी है। पिछले चुनाव में तो विशेष तौर पर अमरेन्द्र सिंह का जरूरत से अधिक आत्मविश्वास पार्टी की हार का कारण बना नहीं तो हारने का कोई कारण नहीं था। उनका काम करने का स्टाइल तथा ‘कोटरी कल्चर’ भी मुद्दा बन गया था लेकिन आजकल अमरेन्द्र सिंह जोश में हैं। वह यह साबित करने का भी प्रयास कर रहे हैं कि केवल वह ही बादल परिवार का मुकाबला करने की क्षमता रखते हैं। बाजवा का यह भी दुर्भाग्य है कि चाहे उन्हें हाईकमान का समर्थन प्राप्त है पर प्रदेश कांग्रेस में वह अलग थलग पड़ते जा रहे हैं और पलड़ा अमरेन्द्र सिंह की तरफ झुकता नज़र आता है। बाजवा जनता में भी अपनी पैठ बनाने में सफल नहीं हुए।
प्रदेश कांग्रेस में यह जूतमपेज़ार तब है जब प्रदेश सरकार बुरी तरह संकटग्रस्त है और तेजी से जन समर्थन खो रही है जो लोकसभा चुनाव परिणामों से भी पता चलता है। प्रदेश की आर्थिक हालत बुरी है। एक प्रकार से आर्थिक एमरजेंसी की नौबत है। केन्द्र सरकार मदद करने के लिए तैयार नहीं। ऊपर से अकाली-भाजपा के बीच दरार स्पष्ट है। चाहे अरुण जेतली ने कह दिया कि गठबंधन टूट नहीं रहा पर हरियाणा के चुनाव दोनों पार्टियों में अविश्वास बहुत बढ़ा गए हैं। भाजपा खुद को शासन विरोधी भावना से बचाने के लिए सरकार से अलग हो सकती है। पार्टी में बहुत लोग हैं जो अपना अलग रास्ता अपनाने की वकालत कर रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को यह नहीं समझना चाहिए कि उनके लिए मैदान बिलकुल साफ है। विशेष तौर पर गुटबंदी चलती रही तो पार्टी मुकाबला नहीं कर सकेगी। राहुल गांधी ने 14 नवम्बर से ‘सेव पंजाब’ अभियान चलाने की घोषणा की पर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के गृहयुद्ध को देखते हुए पहले ‘सेव कांग्रेस’ अभियान चलाने की जरूरत अधिक लगती है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.