
वाघा का संदेश
पाकिस्तान के तीन आतंकी संगठनों, जमात उल अहरार, जुनदुल्लाह तथा महार महसूद ने वाघा पर हुए आतंकी हमले की जिम्मेवारी ली है जिसमें 60 से अधिक पाकिस्तानी मारे गए तथा 200 से अधिक घायल हैं। यह तीनों संगठनों तहरीके तालिबान से सम्बन्धित रहे हैं लेकिन अब अलग हो गए हैं और अपनी वफादारी सुन्नी आतंकी गुट आईएसआईएस से जोड़ रहें हैं। पाकिस्तान के लिए यह घटना बहुत बुरी खबर है। वास्तव में राजधानी इस्लामाबाद से भी यह खबर अधिक बुरी सेना मुख्यालय रावलपिंडी के लिए है कि आतंकवाद को कुचलने का सेना का अभियान सफल नहीं हो रहा है। नवाज शरीफ की सरकार तो वैसे भी किसी गिनती में नहीं है। सेना ने पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर जेहादियों के खिलाफ ज़रब-ए-अजब अभियान चलाया हुआ है। वाघा पर हमला कर जेहादी जवाब दे रहे हैं कि बदला पंजाब के मैदानों में लिया जाएगा। आतंकवादियों ने सेना द्वारा अति सुरक्षित बीटिंग आफ द रिट्रीट सैरेमॅनी पर हमला कर पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी हैं। पाकिस्तान की सेना पर सवालिया निशान लग रहा है। इससे पहले पाकिस्तान के हवाई अड्डों, बंदरगाहों पर हमले हो चुके हैं। रावलपिंडी में सेना मुख्यालय पर हमला हो चुका है लेकिन वाघा पर हमला अलग है क्योंकि यह संदेश दे रहा है कि मिलिटैंसी का क्षेत्र अफगान-पाकिस्तान सीमा से हट कर पाक-भारत सीमा की तरफ शिफ्ट हो रहा है। रणनीति में परिवर्तन लगता है क्योंकि पहली बार इस तरह का बड़ा हमला भारत-पाक सीमा के निकट हुआ है। भारत को चिंतित होना चाहिए।
जिस जगह यह हमला हुआ वह अमृतसर में स्वर्ण मंदिर से केवल 36 किलोमीटर दूर है। एक प्रकार से हमारे दरवाजे तक वह पहुंच गए हैं। बीएसएफ का कहना है कि हमारी सीमा बिलकुल सुरक्षित है। बिलकुल सुरक्षित कुछ नहीं है यहां तक कि अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर भी घुसपैठ हो जाती है। हमारी सीमा पर कई नाले हैं जिनके द्वारा आतंकी घुसपैठ की कोशिश कर सकते हैं। सुरंग तो पहले ही पकड़ी जा चुकी है। इसके अतिरिक्त और संकेत है कि जेहादियों का ध्यान इधर मुड़ रहा है। नाटो की सेना अफगानिस्तान छोड़ रही है जिसके बाद लश्कर-ए-तोयबा जैसे संगठन फारिग हो जाएंगे और हमारी तरफ मुड़ सकते हैं। अल कायदा पहले ही दक्षिण एशिया में आतंकी गतिविधियां शुरू करने की धमकी दे चुका है। पिछले कुछ सालों से खामोश मसूद अजहर जैसे आतंकी नेता फिर वहां सक्रिय हो रहे हैं। उसका अचानक फिर प्रकट होना यह बताता है कि वह तथा उसके जैसे लोग भारत के खिलाफ फिर से अभियान चलाना चाहते हैं।
पाकिस्तान की हालत भयावह बनती जा रही है। कई जेहादी संगठन बेलगाम हैं। हालत क्या है यह द डॉन अखबार में इस्मायल खान बताते हैं कि ‘पाकिस्तान में मिलिटैंट दृश्य इतना जटिल और बिखरा हुआ है कि कई बार एक मिलिटैंट ग्रुप को यह भी पता नहीं होता कि किस दूसरे मिलिटैंट ग्रुप ने कार्रवाई की है।’ सरकार ने अपनी जिम्मेवारी त्याग दी है, सेना उन्हें नियंत्रण करने में फेल हो रही है। सेना अभी भी ‘अच्छे’ तथा ‘बुरे’ मिलिटैंट्स के बीच फंसी हुई है। जो पाकिस्तान के अंदर उत्पात मचाते हैं वह बुरे हैं लेकिन जो भारत के अंदर उत्पात मचाते हैं, वह उन्हें अच्छे लगते हैं जबकि दोनों के बीच फासला खत्म होता जा रहा है। भर्ती के लिए यह संगठन एक दूसरे से मुकाबला कर सकते हैं। इसका परिणाम क्या होगा? वाशिंगटन के एक थिंक टैंक के विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन का मानना है कि वाघा की घटना का अर्थ है कि सबसे बड़ा निशाना भारत होगा। वह लिखते हैं, ‘दुरंद सीमा के दोनों तरफ हिंसा निरंतर जारी रहेगी। और नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ भी इससे नई जान पड़ सकती है।’
बहुत समय से जेहादी नेता भारत को निशाना बनाना चाहते थे लेकिन अफगानिस्तान में अब उनकी जरूरत नहीं रहेगी और पाकिस्तान की व्यवस्था भी अपने देश को बचाने के लिए उनका मुंह हमारी तरफ मोड़ सकती है। कई लोग यहां वकालत कर रहे हैं कि हमें पाकिस्तान की सेना के साथ मिल कर जेहादियों को खत्म करना चाहिए क्योंकि ‘पाकिस्तान खुद भी आतंक का शिकार है।’ यह बात तो सही है कि वह भी आतंक का शिकार है लेकिन यह भी सही है कि वे हमारे विरुद्ध शिकारी भी बनने का प्रयास कर रहे हैं। मामला बहुत जटिल है और नरेन्द्र मोदी की सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। हमें बहुत चौकस रहना होगा क्योंकि पाकिस्तान के पश्चिम से आतंक पूर्व की ओर चलना शुरू हो गया है।