‘परमात्मा’ बीमार हैं!
‘परमात्मा’ बीमार हैं इसलिए पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के सामने पेश नहीं हो सकते। मेरा अभिप्राय हिसार के नजदीक सतलोक आश्रम के संत रामपाल से है जिन्हें 17 तारीख को अदालत की अवमानना के मामले में अदालत के सामने पेश होना था पर उन्होंने मैडिकल सर्टिफिकेट भेज दिया कि वह ‘बीमार’ हैं। अदालत की अवमानना के मामले में उनके गैर जमानती वारंट निकाले गए थे पर संत रामपाल जिन्हें उनके भक्त ‘परमात्मा’ कहते हैं हाजिर नहीं हो रहे। अब उनके डाक्टरों का कहना है कि उन्हें तीन दिन के आराम की और जरूरत है। उल्लेखनीय है कि संत रामपाल 2006 में हुई हत्या के एक मामले में आरोपी हैं। जो रुख संत रामपाल तथा उनके अनुयायियों ने अपनाया है वह तो न्यायपालिका को सीधी चुनौती है। हो सकता है कि वह वास्तव में बीमार हों पर फिर अपने इर्दगिर्द इतने लोगों को इकट्ठा करने की क्या जरूरत है ताकि पुलिस आसानी से उन्हें न पकड़ सके? और वह व्यक्ति कैसा संत है जो महिलाओं तथा बच्चों को ढाल बना कर पीछे छिपा हुआ है? वह जानते हैं कि अगर पुलिस कार्रवाई करती है तो महिलाओं तथा बच्चों को नुकसान पहुंच सकता है लेकिन फिर भी उनका भावनात्मक शोषण कर कानून से बच रहें हैं। हाईकोर्ट का भी कहना है कि वह ड्रामा कर रहें हैं और महिलाओं तथा बच्चों को कवच के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर वह वास्तव में संत हैं तो उन्हें कानून का सामना करने से घबराहट क्यों हो? महात्मा गांधी ने अंग्रेजी ज़बर का सामने आकर सामना किया, कभी महिलाओं या बच्चों की आड़ नहीं ली। इस समय वहां 30,000 पुलिस तथा सीआईएफ के जवान तैनात हैं लेकिन वे एक व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सके क्योंकि हजारों भक्त उन्हें घेरे हुए हैं। हरियाणा सरकार भी घबराई हुई है क्योंकि वह जानती है कि वहां कानून तथा व्यवस्था की स्थिति बन सकती है। अगर वह कार्रवाई करते हैं तो बेकसूर भक्तजनों पर भी कार्रवाई करनी पड़ेगी।
संत रामपाल तथा उनके अनुयायियों के क्या इरादे हैं यह उनके प्रवक्ता के बयानों से पता चल जाता है। उनका कहना है कि ‘हम कानून का पालन करने वाले हैं। हम पुलिस के साथ झड़प नहीं चाहते पर अगर वह संत रामपाल को जबरन ले जाना चाहेंगे तो पहले हमारी जान लेनी होगी।’ यह धमकी नहीं तो क्या है? यह भी सूचना है कि अंदर हथियार हैं। पेट्रोल बमों की मौजूदगी के बारे भी समाचार छप चुका है। एक प्रकार से व्यवस्था को ब्लैकमेल किया जा रहा है कि अगर संत रामपाल को गिरफ्तार किया गया तो खून-खराबा होगा। बताया जा रहा है कि ‘हम आर-पार की लड़ाई’ के लिए तैयार हैं। पर किसके खिलाफ? क्या अदालत के खिलाफ आर-पार की लड़ाई हो सकती है? न्यायपालिका पर भी लगातार कटाक्ष किए जा रहे हैं। हरियाणा सरकार बुरी तरह फंसी हुई है। अदालत कह चुकी है कि राज्य सरकार में संत को गिरफ्तार करने की इच्छाशक्ति नहीं है लेकिन सरकार को एक तरफ कानून तथा व्यवस्था तो दूसरी तरफ वोट बैंक परेशान कर रहा है लेकिन व्यवस्था का तो मज़ाक बन रहा है कि 30,000 जवान एक व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सके।
इस देश में डेरों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। विशेष तौर पर पंजाब तथा हरियाणा में इनकी मान्यता बहुत बढ़ रही है। कई संत तथा गुरू उभर आए हैं। व्यवस्थित धर्मों में लोगों की मान्यता कम होने के कारण इन डेरों में हाजरी बहुत बढ़ गई है। बहुत डेरे बहुत अच्छी शिक्षा देते हैं। लोगों को समाज सेवा सिखाई जाती है, ईमानदारी का पाठ पढ़ाया जाता है। भक्तजनों को यहां राहत भी मिलती है लेकिन आसाराम बापू जैसे शैतान धर्मगुरू भी हैं जो भक्तों की भावना तथा आस्था का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे बहुत से और उदाहरण भी हैं। कुछ डेरों में हत्याओं तथा लाशों को खुर्दबुर्द करने की शिकायतें भी मिल चुकी हैं। कई आयकर नहीं देते जबकि कई डेरे किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं। लोगों की आस्था का दुरुपयोग तब ही बंद होगा अगर उन पर भी सामान्य कानून लागू हो लेकिन क्योंकि उनकी मान्यता हजारों में, और कई बार लाखों में, पहुंचती है इसलिए सरकारें उन्हें हाथ लगाने से घबराती हैं जैसा संत रामपाल के मामले में हो रहा है। उनके आवास को तो किले में परिवर्तित कर दिया गया। यह तो ‘आश्रम’ रहा नहीं।
बहरहाल बहुत गंभीर स्थिति बनी हुई है। अगर इसी तरह धार्मिक स्थलों का दुरुपयोग होता रहा और अदालतों की केवल अवमानना ही नहीं बल्कि उनका प्रतिरोध भी होता रहा तो व्यवस्था बिलकुल ठप्प होकर रह जाएगी। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली स्थिति बन जाएगी। दूसरे भी यही करेंगे। जिसके पास भीड़ इकट्ठा करने की क्षमता होगी वह कानून का उल्लंघन भी करेगा और उसकी अवज्ञा भी करेगा। ऐसे लोगों की देश में कमी भी नहीं है। इस अराजक प्रवृत्ति को यहीं रोकने की जरूरत है। MAJESTY OF LAW अर्थात् कानून की सर्वोच्चता हर हालत में कायम होनी चाहिए।