देश का सबसे लाभदायक व्यवसाय
नहीं, यह राजनीति नहीं है। पहले राजनीति जरूर देश का सबसे लाभदायक व्यवसाय माना जाता था लेकिन अब गॉडमैन-व्यवसाय उससे भी आगे निकल गया है। एक बार आप गॉडमैन बन गए तो आप कानून के दायरे से बाहर हो जाते हैं। कोई जवाबदेही नहीं रहती। कितने एकड़ का आश्रम है, कितनी लाखों रुपए की दैनिक आय है, कितनी दर्जनों लग्जरी कारें हैं, कितना आलीशान बंगला है, सब कानून के दायरे से बाहर हैं। आयकर विभाग भी नहीं पहुंचता। रामपाल की तो अपनी आर्मी भी थी। आम आदमी की भटकन का यह लोग खूब इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इस देश में नादानों और बेवकूफों की कमी नहीं है इसलिए इनकी मान्यता लाखों में फैल जाती है। अपने भक्तजनों पर इनका नियंत्रण होता है इसलिए सब बड़े नेता वोट की खातिर शीश झुकाने यहां पहुंच जाते हैं। क्योंकि सभी को वोट चाहिए इसलिए कोई राजनेता इससे पंगा लेने की हिम्मत नहीं करता। हरियाणा के चुनाव में डेरा सच्चा सौदा का जलवा हमने देख ही लिया है। अब बताया जाता है कि रामपाल का सतलोक आश्रम अवैध था। आश्रम का बड़ा हिस्सा सीएलयू के बिना खड़ा किया गया लेकिन इतना बड़ा आश्रम बन गया और किसी को पता नहीं चला? तब राजस्व अधिकारी क्या करते रहे? ऐसे और कितने आश्रम हैं? कई गॉडमैन पर हत्या का आरोप है, कईयों पर बलात्कार, अपहरण, हिंसा, जबरन कब्जे का आरोप है लेकिन सब कानून से ऊपर हैं। अगर रामपाल बेवकूफी कर अदालत से झगड़ा न लेता तो वह भी बचा रहता। लेकिन इतना पैसा, समर्थन, वैभव राजनीतिक दबदबा देख कर अहंकार पैदा हो जाता है। अनुयायी तो उसे ‘परमात्मा’ कहते थे। जब वह अपनी हाईड्रोलिक कुर्सी पर ऊपर आता था तो कई बेचारे तो समझते थे कि परमात्मा प्रकट हो रहे हैं। वह भी खुद को परमात्मा ही समझ बैठा कि कोई उसे हाथ नहीं लगा सकता। अब तो भगवा डाल सादा जीवन व्यतीत करने की भी जरूरत नहीं। आजकल के टीवी युग में भव्य चलता है। आपको शानदार होना चाहिए। सिर पर मुकुट डाल आसाराम की नौटंकी यूट्यूब पर देखने को मिल जाती है।
हमारे राजनेताओं ने इन्हें बहुत छूट दे दी थी यह जानते हुए भी कि इनका आध्यात्म से बहुत कम रिश्ता है और यह तो धंधा बन गया है। पंजाब तथा हरियाणा में विशेष तौर पर यह आश्रम समृद्धि तथा प्रभाव के केन्द्र बन गए हैं। गॉडमैन पावर सैंटर बन गए हैं। उनकी अपनी सल्तनत बन जाती है जिसके कारण वह अपने पर नियंत्रण खो बैठते हैं। रामपाल को एक सत्संग से 5 करोड़ रुपए की कमाई होती थी जो सीधा उसे जाती थी। इसीलिए उसने तो संविधान, कानून, न्यायपालिका तथा सम्पूर्ण व्यवस्था को ही चुनौती दे दी। अदालत का हुकम था लेकिन उसे ही हिंसक टकराव में तब्दील कर दिया गया। अदालत के हुकम की अवज्ञा करने के लिए खुद को महिलाओं तथा बच्चों से घेर लिया। और यह आश्रम तो रहा ही नहीं था यह तो किले में परिवर्तित हो चुका था। अंदर हथियार इकट्ठे किए गए जहां से पुलिस पर फायरिंग की गई। पेट्रोल बम फेंके गए।
शुरू में हरियाणा सरकार भी मामले से सही निबट नहीं सकी। खुफिया एजेंसियों की असफलता है जिन्हें मालूम नहीं था कि अंदर कितने लोग हैं, कितने हथियार हैं, कितनी तैयारी है? आश्रम में लोगों को इकट्ठे होने दिया गया। नई हरियाणा सरकार की हालत तो सिर मुंडाते ही ओले पडऩे वाली है। शुरू में राजनीतिक नेतृत्व मीडिया से दूर रहा। शायद भाजपा इन कथित संतों पर हाथ नहीं उठाना चाहती क्योंकि यह सब भाजपा को समर्थन देते रहे हैं। बहुत डेरे अच्छी शिक्षा देते हैं लोगों को समाज सेवा सिखाई जाती है, ईमानदारी का पाठ पढ़ाया जाता है। भक्तजनों को यहां राहत मिलती है लेकिन आसाराम बापू जैसे शैतान धर्मगुरू भी हैं जो भक्तों की भावना तथा आस्था का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे बहुत से और उदाहरण भी हैं। कुछ डेरों में हत्याओं तथा लाशों को खुर्दबुर्द करने की शिकायतें भी मिल चुकी हैं। आखिर में रामपाल के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी लेकिन जब तक कार्रवाई हुई सरकार के लिए विशाल चुनौती खड़ी हो चुकी थी। लेकिन यहां मानना पड़ेगा कि शुरुआती कमजोरी दिखाने के बाद हरियाणा पुलिस इस अति गंभीर तथा संवेदनशील मामले से बहुत समझधारी से निबटी। दो लक्ष्य थे। एक, रामपाल की गिरफ्तारी तथा दूसरा वहां इकट्ठे हुए भक्तजनों को बचाना। कुछ दिन जरूर लगे लेकिन दोनों ही मकसद बिना गोली चलाए पूरे कर लिए गए। जो आलोचना करते रहे वह क्या चाहते थे कि रामपाल को फटाफट गिरफ्तार करने के लिए पुलिस तथा अर्धसैनिक बल लोगों पर रोड रोलर चढ़ा देते? और अगर सतलोक आश्रम किले में परिवर्तित हो चुका था तो इसका दोष भी खट्टर सरकार पर नहीं लगाया जा सकता। इस सरकार का तो गठन ही 26 अक्टूबर को हुआ था। एकदम इस संकट का सामना हो गया लेकिन धैर्य रखने की नीति सफल रही। एक गोली नहीं चलाई गई। अगर उकसाहट में कार्रवाई की जाती तो भारी जानी नुकसान होता। हरियाणा पुलिस तो आखिर में अच्छी मिसाल कायम कर गई। हां, ऐसे समय में राजनीतिक नेतृत्व को जनता के साथ संवाद रखना चाहिए। पत्रकारों पर अनावश्यक लाठीचार्ज किया गया। वह तो वही कर रहे थे जो उनका धर्म है कि लोगों तक जानकारी पहुंचाई जाए। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में मीडिया से कैसे निबटना है इसके लिए पुलिस के जवानों को जानकारी दी जानी चाहिए थी। अमृतसर में आप्रेशन ब्लू स्टार से सबक सीखते हुए आप्रेशन ब्लैक थंडर के समय बैरीकेड लगा दिए गए कि इससे आगे मीडिया नहीं जाएगा क्योंकि गोलीबारी हो रही थी बाद में खुद डीजीपी केपीएस गिल ने अमृतसर के टाउन हाल में मडिया की ब्रीफिंग की।
बरवाला में चुनौती बहुत थी। बिना महिलाओं, बच्चों तथा दूसरे भक्तजनों को नुकसान पहुंचाए रामपाल को पकडऩा था। काम आसान नहीं था। अगर ऐसी ललकार मिलती रही तो अराजक स्थिति बन जाएगी। MAJESTY OF LAW अर्थात् कानून का प्रताप हर हालत में कायम होना चाहिए। यह पहला कर्त्तव्य है। एक बात और। कहीं भी धार्मिक स्थलों को किलों में परिवर्तित करने की इज़ाजत नहीं होनी चाहिए। पंजाब में इसकी हम बहुत बड़ी कीमत चुका चुके हैं।