
कार्य संस्कृति कैसे बेहतर हो?
चंडीगढ़ के पुलिस मुख्यालय पर छापे के दौरान उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने पाया कि तीन दर्जन अफसर वहां गैर मौजूद थे जिनमें 14 वरिष्ठ अधिकारी हैं। उपमुख्यमंत्री ने गैर हाजिर रहे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश जरूर दिए लेकिन इस आदेश का बनेगा कुछ नहीं क्योंकि अतीत में भी ऐसे छापे मारे गए लेकिन गैर हाजिर अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। समय पर कार्यालय आना अनुशासन का पहला पाठ है। अगर इसके बारे ही लापरवाही की जाए तो पता चलता है कि हमारे सरकारी कार्यालयों का क्या हाल है? और यह केवल पंजाब में ही नहीं है। सारे देश में यह स्थिति है यहां तक कि केन्द्रीय सरकार में भी समस्या है कि कर्मचारी तथा अधिकारी अपनी जिम्मेवारी नहीं समझते। सरकारी कार्यालयों में वर्क कल्चर अर्थात् कार्य संस्कृति शोचनीय है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे बेहतर करने का प्रयास कर रहे हैं जिसकी प्रशंसा आज बराक ओबामा ने भी की है लेकिन कितनी सफलता मिलेगी यह संदिग्ध है। भाजपा की संसदीय दल की बैठक में ही कई मंत्री तथा सांसद देर से पहुंचे थे जिस पर प्रधानमंत्री को 9.30 बजे दरवाजे बंद करने का आदेश देना पड़ा। ऐसी ही शोचनीय कार्य संस्कृति के कारण लुधियाना के सिविल अस्पताल में 5 नवजात बच्चों की मौत हो गई। जिस महिला डाक्टर की ड्यूटी थी वह गैर हाजिर थी उसने सुबह अपना राउंड भी नहीं लिया। न ही डिलीवरी के समय ही वह उपस्थित थी। जो बच्चे बच सकते थे उन्हें भी बचाने का प्रयास नहीं किया गया। एक और डाक्टर भी गैर हाजिर था जिस कारण आप्रेशन में छ: घंटे की देरी हो गई।
एक डाक्टर अपनी ड्यूटी से गैर हाजिर क्यों हो? उसे मालूम नहीं कि उसकी लापरवाही बहुत महंगी साबित हो सकती है? सरकारी स्कूलों में अध्यापक अनुपस्थित क्यों रहते हैं? विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों की बुरी हालत है। पंजाब में तो कई सौ अध्यापक ड्यूटी पर रहते हुए विदेश चले गए हैं। हमारे रेलवे स्टेशन इतने गंदे क्यों हैं? प्रधानमंत्री को खुद स्वच्छ भारत अभियान क्यों चलाना पड़ रहा है? असली समस्या है कि यहां वर्क कल्चर बहुत घटिया बन चुका है विशेष तौर पर सरकारी कार्यालयों का बुरा हाल है। अनुशासन नहीं रहा। एक बार सरकारी नौकरी मिल जाए फिर गंभीरता नहीं रहती। पैसे लिए बिना कोई फाइल नहीं हिलती। प्रधानमंत्री ने सरकारी कार्यालयों में बायोमीट्रिक हाजरी का आदेश दिया है इससे कुछ सुधार होगा। अगर सभी सरकारी कार्यालयों में बायोमीट्रिक हाजरी शुरू हो जाए तो कोई देर से नहीं आएगा और न ही पहले जाएगा। लेकिन असली समस्या तो मानसिकता की है। सरकारी अफसर या कर्मचारी अपनी ड्यूटी को गंभीरता से क्यों नहीं लेते? अपने अधिकारों के लिए नारे लगाने के लिए वह तैयार रहते हैं पर अपने कर्त्तव्यों की उन्हें चिंता नहीं।
शुरुआत राजनीतिक नेतृत्व से होनी चाहिए। उन्हें अनुशासन की मिसाल कायम करनी चाहिए। पंजाब के मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को आदेश दिया कि वह सप्ताह में दो दिन सचिवालय में बैठें ताकि लोग उन्हें वहां मिल सकें। कोई इस आदेश का पालन नहीं कर रहा। इन निर्धारित दिनों पर एकाध मंत्री ही सचिवालय में मौजूद होता है। अगर राजनीतिक नेतृत्व खुद अनुशासन में नहीं रहेगा तो दूसरों को कैसे प्रेरित करेगा? पंजाब में समस्या और भी है। अकाली दल तथा भाजपा के झगड़े के कारण प्रशासन कमजोर पड़ गया है। यह प्रभाव फैल रहा है कि इनका कभी भी तलाक हो सकता है और यह दोबारा सत्ता में नहीं आएंगे इसलिए अधिकारी लापरवाह हो रहे हैं। इस सरकार के गठन को 7 वर्ष हो गए। अगर सत्ता में 7 वर्ष रहने के बाद भी मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को छापे मारने पड़ रहे हैं तो इससे पता चलता है कि वर्क कल्चर पैदा करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। सचिवालय और मिनी सचिवालय पर दो बार पहले भी छापे पड़ चुके हैं लेकिन क्योंकि बाद में कोई कार्रवाई नहीं हुई इसलिए कोई सुधार नहीं हुआ।
इस देश की तरक्की में बड़ी रुकावट है कि हमारा वर्क कल्चर बहुत घटिया है। हम जर्मनी या जापान या चीन जैसे देशों का मुकाबला इसलिए नहीं कर पा रहे क्योंकि हमारा काम घटिया है। सरकारी दफ्तरों में विशेष तौर पर बुरी हालत है। जब तक डंडे के साथ अनुशासन कायम नहीं किया जाता तब तक कुछ सुधार नहीं होगा। लेकिन ऐसी संभावना भी दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।