वह बेबस नहीं आप बेबस न हों

वह बेबस नहीं, आप बेबस न हों

कश्मीर में चार जगह आतंकी हमलों, जिनमें सेना के एक कैम्प पर फिदायीन हमला भी था, के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जो बयान दिया है वह समझ नहीं आया। उनका जरूर कहना था कि हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा पर साथ में यह भी कहा है कि ‘अगर पाकिस्तान आतंकियों को रोकने में बेबस है तो हमें बताए, हम उनकी मदद करेंगे।’ पाकिस्तान ‘बेबस’ है? क्या गृहमंत्री वास्तव में समझते हैं कि भारत पर पाकिस्तान की जमीन से जितने भी हमले हुए हैं उनके बारे पाकिस्तान बेबस है, वह उन्हें रोकना चाहता था लेकिन रोक नहीं सका? हैरानी है कि भोले बादशाह भारत के गृहमंत्री एक प्रकार से पाकिस्तान को दोषमुक्त कर रहे हैं जबकि सब जानते हैं कि जो हो रहा है वह पाकिस्तान की सेना तथा उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के द्वारा करवाया जा रहा है। अगर मिलिटैंट सीमा पार या नियंत्रण रेखा पार कर रहे हैं तो यह पाक सेना तथा उनके अर्धसैनिक बलों की मदद के बिना नहीं हो सकता, हम अतीत में कई बार यह आरोप लगा भी चुके हैं। अब भी बताया जा रहा है कि आतंकवादियों से भारी मात्रा में आधुनिक हथियार बरामद किए गए हैं। कश्मीर के कोर कमांडर लै. जनरल सुब्राता साहा का कहना था कि ‘यह बिना शक है कि पाकिस्तान में जो तत्व संलिप्त हैं वह शिखर पर हैं।’ थल सेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने इस बात की पुष्टि की है। पाकिस्तान बन ही कुछ ऐसा गया है। वहां यह संभव ही नहीं कि ‘नॉन स्टेट एक्टर्ज’ सरकारी आशीर्वाद के बिना काम कर सकें। अगर यह मिलिटैंट्स लश्कर-ए-तोयबा से थे तब भी वह पाकिस्तान की व्यवस्था की अनुमति तथा सहयोग से आए थे ठीक उसी तरह जिस तरह 26/11 के मुम्बई पर हमला करने के लिए कराची से 10 आतंकवादी आए थे। वर्तमान हमले से पहले 26/11 के मास्टर माइंड हाफिज सईद जिसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जा चुका है, ने लाहौर में दो दिन का सम्मेलन किया जिसमें पहले की तरह उसने भारत को बर्बाद करने तथा इसके लिए जेहाद शुरू करने की घोषणा की। इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए कराची से विशेष ट्रेन चलाई गई। क्या यह पाकिस्तान की ‘बेबस’ सरकार की अनुमति के बिना हो सकता था?
भारत सरकार को मालूम था कि जम्मू कश्मीर के चुनावों में भारी वोटिंग से पाकिस्तान की व्यवस्था सटपटा रही है। जो मकसद अलगाववादियों का बहिष्कार का आह्वान पूरा नहीं कर सका उसे अब गोली के द्वारा पूरा करने का प्रयास पाकिस्तान कर रहा है। कोशिश थी कि 9 दिसम्बर तथा 15 दिसम्बर के मतदान सफल न रहें और लोग पोलिंग स्टेशन तक जाने से घबराएं। पर यह आशंका तो पहले ही थी फिर सेना के कैम्प पर हमला कैसे होने दिया गया? बार-बार आतंकी या नक्सलवादी हमलों में हमारे अफसर तथा जवान क्यों शहीद हो रहे हैं? कमज़ोरी कहां है? यह भी सबको मालूम था कि प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर में कई चुनावी सभाएं करने वाले हैं फिर उचित सावधानी क्यों नहीं बरती गई? आतंकवाद से जितना नुकसान हम उठा चुके हैं उतना किसी और देश ने नहीं उठाया। हमारी नीति में निश्चित तौर पर कमज़ोरी है। न हम उन कश्मीरी नेताओं पर ही लगाम लगा सके जो खुलेआम हमारा विरोध करते हैं और हमारे खिलाफ विद्रोह को उकसाते हैं। यह लोग नहीं चाहते कि कश्मीर में चैन हो जाए क्योंकि तब उनकी दुकान बंद हो जाएगी। लेकिन यह दुकान खुली भी क्यों है? हमने इसकी इज़ाजत क्यों दी है?
25 साल से हम पाक प्रायोजित आतंक का सामना कर रहे हैं। हमारी बर्दाश्त की सीमा क्या है? कब हम कह उठेंगे कि बस, और नहीं? हमारी संसद पर, हमारे शहरों पर, बाजारों पर, मंदिरों पर, सेना के कैम्पों पर हमले हो चुके हैं और हम कुछ देर आंखें दिखाने के बाद खामोश पड़ जाते हैं। ‘काउंटर स्ट्रैटिजी’ क्या है? भारत बड़ा देश है फिर हम अपने नागरिकों तथा जवानों की शहादत बर्दाश्त क्यों कर रहे हैं? हमारी सीमा अभी तक सुरक्षित क्यों नहीं हुई? स्थानीय समर्थन के बिना ऐसे हमले नहीं हो सकते थे। कौन है वह गद्दार जो उन्हें रास्ता दिखाते हैं और उन्हें पनाह देते हैं? हमारी खुफिया एजेंसियां बार-बार नाकाम क्यों रह रही हैं, जम्मू कश्मीर में भी और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी? हमारी हालत तो यह है कि जब उडी क्षेत्र में शहीद हुए जवान कुलदीप का शव उनके गांव पहुंचा तो सलामी देते वक्त हरियाणा पुलिस की ज़ंग खाई बंदूकें नहीं चलीं। कुछ तो शर्म करो यारो!
हैरानी है कि महबूबा मुफ्ती इन हमलों के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहरा रही है। उसका कहना है कि मीडिया ने अधिक मतदान को बढ़ा चढ़ा कर इस तरह पेश किया कि आतंकी भड़क गए। पर आतंकी हमले की निंदा का एक शब्द इस महिला के मुंह से नहीं निकला। पाकिस्तान के खिलाफ भी एक शब्द नहीं कहा और यह वह महिला है जिसकी बहन रूबिया की 1989 में रिहाई के बदले भारत ने पांच आतंकी रिहा कर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली थी। एहसान फरामोशी की इससे बड़ी और मिसाल नहीं मिल सकती। उल्लेखनीय है कि फारूख अब्दुल्ला इस समर्पण के खिलाफ थे लेकिन वीपी सिंह के हाथ-पैर फूल गए थे। मसूद अजहर का जैश-ए-मुहम्मद उसी समर्पण का परिणाम है।
न ही कूटनीति से कुछ हासिल होगा। अगर कूटनीति से कुछ हासिल होना होता तो यह हमले न होते। इन्द्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह सब प्रधानमंत्री प्रयास कर फेल हो चुके हैं। 4 जून 2004 में परवेज मुशर्रफ ने वायदा किया था कि वह अपनी जमीन का भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे। दस साल गुजर गए वह दुश्मनी खत्म नहीं हुई। नवाज शरीफ से कुछ आशा नहीं होनी चाहिए उनके पल्ले कुछ नहीं उनसे तो इमरान खान नहीं संभाला जाता। अगर पाकिस्तान के पंजाब में कट्टरवाद फैल रहा है तो वह वहां की सरकार की इज़ाजत के बिना नहीं हो सकता जिसके मुख्यमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई साहिब शहबाज़ शरीफ हैं। हमें अपनी सुरक्षा व्यवस्था सही करनी चाहिए। सेना या अर्धसैनिक बल का हर कैम्प अलर्ट चाहिए। दूसरा, कश्मीर में भारत विरोधी तत्वों को सीधा करने की जरूरत है। इन्हीं के कारण कश्मीर तरक्की नहीं कर सका। तीसरा, यह तय किया जाना चाहिए कि पाकिस्तान के लिए ‘रेड लाइन’ क्या है जिसके उल्लंघन के बाद ऐसा जवाब दिया जाए कि वह बर्दाश्त न कर सके? अगर इसे संसद पर हमले या मुम्बई पर हमले की तरह हम बर्दाश्त कर गए तो ऐसा बार-बार होता रहेगा।
मोदी सरकार से लोगों को आशा भी है कि वह वास्तव में मुंहतोड़ जवाब देगी परन्तु सवाल अब यह नहीं रहा कि क्या जवाब दिया जाए या न दिया जाए सवाल अब यह है कि कब दिया जाए? वहां कोई बेबस नहीं इसलिए किसी को यहां बेबस नहीं होना चाहिए। कश्मीर में शहीद हुए चम्बा से हवलदार सुभाष चंद के पिताजी प्यार सिंह ने पूछा कि ‘‘यह सरकार हमारे बहादुर जवानों के इस तरह मरने की इज़ाजत क्यों दे रही है?’’ शहीद के पिता के इस सवाल का जवाब कौन देगा?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.