यह गंभीर सामाजिक समस्या है

यह गंभीर सामाजिक समस्या है

दिल्ली में उबर टैक्सी में सफर कर रही एक महिला का टैक्सी ड्राइवर द्वारा रेप की घटना से एक बार फिर देश में हो रहे बलात्कार सुर्खियों में हैं। दिल्ली में हुए इस बलात्कार को लेकर नेशनल न्यूज चैनल बहुत उत्तेजित हैं लेकिन लुधियाना का मामला तो और भी अधिक गंभीर है। दिल्ली में आधी रात को एक लड़की मल्टीनेशनल कम्पनी उबर की टैक्सी में घर जा रही थी। रास्ते में उसकी आंख लग गई और टैक्सी चालक गाड़ी को एक विरान जगह ले गया और उस लड़की से बलात्कार किया। लड़की को अपनी असावधानी की भारी कीमत चुकानी पड़ी लेकिन उसकी असावधानी बलात्कार का कारण नहीं बननी चाहिए। हमें तो ऐसा माहौल चाहिए कि किसी भी समय में कोई भी महिला टैक्सी या बस में सफर करे तो उसके साथ शरारत न की जाए। दिल्ली में तो मैट्रो में लड़कियों के साथ छेडख़ानी की शिकायतें मिल रही हैं। जो बलात्कारी ड्राइवर शिव कुमार यादव है, उसके खिलाफ 8 एफआईआर दर्ज हैं। बलात्कार के अन्य मामले में वह गिरफ्तार हो चुका है। जेल की सजा भी वह काट चुका है। फिर उसे लाइसैंस कैसे मिल गया और कम्पनी ने उसके सुपुर्द टैक्सी कैसे कर दी?
कम्पनी का कहना है कि उसने तो लाइसैंस देख कर उसे नौकरी दे दी जबकि पुलिस का कहना है कि जांच का कागज़ फर्जी था। झूठे हस्ताक्षर थे। कौन सच्च बोल रहा है, कहा नहीं जा सकता लेकिन यह गंभीर बात है कि जिस व्यक्ति पर पहले भी महिलाओं से बदसलूकी का आरोप है उसे दिल्ली की सड़कों पर टैक्सी में बलात्कार करने के लिए खुला छोड़ दिया गया। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि 30 प्रतिशत लाइसैंस फर्जी हैं पर इसकी जिम्मेवारी किस की है? कितने लाखों अपराधी हमारी सड़कों पर इसी तरह खुले घूम रहे हैं? दो साल पहले 16 दिसम्बर को दिल्ली में निर्भय के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना तथा बाद में उसकी मौत के बाद देश की आत्मा तड़प उठी थी। धड़ाधड़ कानून बदला गया। हैल्पलाइन बेहतर की गई। दिल्ली में अधिक पुलिस वैन उतारी गईं लेकिन वर्तमान घटना बताती है कि इन दो सालों में चाहे सरकार बदल गई लेकिन व्यवस्था में कुछ नहीं बदला। ‘गुड गवर्नेंस’ का जो वायदा किया गया इसका पहला मतलब है कि लोग खुद को महफूज़ समझें विशेष तौर पर महिलाओं की सुरक्षा का पक्का इंतजाम होना चाहिए। अभी तक यह नहीं हो पाया।
पश्चिम के देशों में एक बार आपने अपराध किया हो तो आपको लाइसैंस नहीं मिलता। कम्प्यूटर सब कुछ बता देता है। अमेरिका में आप देश के एक कोने में अपराध करने के बाद दूसरे कोने में छिप जाओ, आपको ढूंढ लिया जाएगा। ऐसे इलैक्ट्रोनिक डाटाबेस की यहां जरूरत है पर यहां तो चाहे पासपोर्ट हो, चाहे ड्राइविंग लाइसैंस हो, पैसे खिला कर कुछ भी करवाया जा सकता है। दबाव में उबर या किसी कम्पनी की टैक्सी बंद करना समाधान नहीं। क्या उबर की कैब बंद करने के बाद बलात्कार रुक जाएंगे? नितिन गडकरी का सवाल पसंद नहीं किया गया पर बात तो उन्होंने सही कही है कि क्या अगर रेल में बलात्कार हो जाए तो रेल बंद कर दी जाएगी? बलात्कार की घटनाओं का एक कारण व्यवस्था की कमजोरी तथा विशेष तौर पर पुलिस का लच्चरपन है लेकिन यही एकमात्र कारण नहीं। असली कारण है कि समाज में कमजोरी है। प्रधानमंत्री ने लाल किले से सही कहा था कि बलात्कारी भी किसी का बेटा है। ऐसे बेटों की संख्या क्यों बढ़ रही है?
दिल्ली में कैब में रात को सफर कर रही लड़की से हुए रेप से भी गंभीर लुधियाना का मामला है जहां एक प्रवासी मजदूर की लड़की को पहले अगवा किया गया फिर तीन दिन के बाद उसे घर छोड़ दिया गया। परिवार के शोर मचाने पर फिर घर में घुस कर लड़की से मारपीट की गई। जब जनता के दबाव में पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया तो चार दिन के बाद उन्हें जमानत दे दी गई। वह फिर लड़की के घर गए और उस पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी और पांच दिन के बाद उस लड़की की मौत हो गई।
यह सब हो कैसे गया? बलात्कार के अपराधियों को इतनी जल्दी जमानत कैसे मिल गई? जाहिर है पुलिस ने अपना केस सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया होगा आखिर यह कोई हाई प्रोफाइल केस तो है नहीं। एक गरीब प्रवासी मज़दूर की नाबालिग लड़की की चिंता इस समाज या इस व्यवस्था को नहीं है। लेकिन पुलिस भी तो इसी समाज का हिस्सा है जहां मुलायम सिंह यादव जैसे प्रधानमंत्री पद का ख्वाब लेने वाले नेता बलात्कार के बारे सार्वजनिक कह चुके हैं कि ‘लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है।’
गलती? क्या एक लड़की की जिंदगी तबाह करना मात्र ‘गलती’ है? क्या शिव कुमार यादव ने सिर्फ गलती की है? और जो लुधियाना में लड़की के साथ हुआ, वह भी गलती ही थी? ऐसी मानसिकता है जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रुकने नहीं देती। घर से शुरू होकर कार्य क्षेत्र, सड़कों, बसों, टैक्सियों में यह जारी रहता है। रोहतक की दो बहनों ने लड़कों को पीट डाला पर बसों में लड़कियों से छेडख़ानी सामान्य बात है। पहले समझते थे कि यह केवल उत्तर भारत की बीमारी है पर अब तो बार-बार बेंगलुरू जैसे कभी सुरक्षित समझे जाने वाले शहर से स्कूलों में नन्हीं बच्चियों से बलात्कार की लगातार खबरें आ रही हैं। ऐसा आभास मिलता है कि पुरुषों के एक वर्ग से अपनी आजादी संभाली नहीं जा रही। मोबाइल फोन भी प्रेरित कर रहे हैं। पोर्नोग्राफिक वैबसाइट की बाढ़ ने भी मुसीबत खड़ी कर दी है लेकिन आखिर में यह परिवार तथा समाज की कमजोरी है। सही संस्कार नहीं दिए जा रहे। इस देश की हालत तो यह बन गई है कि हम लाख कहें कि अतिथि देवो भव: पर कई दूतावास अपनी महिला नागरिकों को सावधान कर चुके हैं कि भारत आना है तो संभल कर आएं। यह सावधानी अनुचित नहीं। यहां भेडि़ए भरे हुए हैं।
असफलता समाज के हर क्षेत्र में है। दिल्ली के बलात्कार के मामले में तीन दिन जिसे नेशनल मीडिया कहा जाता है, वह उत्तेजित रहा है लेकिन यह मुखर, उत्तेजित मीडिया लुधियाना के बलात्कार मामले को नज़रअंदाज क्यों कर रहा है? किसी भी एंकर ने सरकार या पुलिस को गुस्से में फटकार नहीं लगाई, असुखद सवाल नहीं पूछे? बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। क्या इसका कारण है कि जिस नाबालिग की बलात्कार के बाद हत्या की गई वह बेचारी एक गरीब प्रवासी मज़दूर परिवार से सम्बन्धित थी उससे बलात्कार या उसकी हत्या कथित नेशनल मीडिया के लिए महत्व नहीं रखती? यह मामला 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली के निर्भय कांड जैसा ही क्रूर है। इसकी उपेक्षा कर क्या कथित नेशनल मीडिया यह संदेश नहीं दे रहा है कि उसके लिए दिल्ली से बाहर बलात्कार बलात्कार नहीं है?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.