
खेलों में सही बदलाव
हमारी खेलों में बदलाव शुरू हो रहा है। क्रिकेट जिसने दशकों से बाकी खेलों को दबाए रखा, धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खो रहा है। लोगों की दिलचस्पी धीरे-धीरे पर निश्चित तौर पर दूसरे खेलों, हाकी, टेनिस, बैडमिंटन, फुटबाल और कबड्डी में हो रही है। हैरानी है कि कबड्डी जिसे कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया और गांववालों का खेल समझा गया, को अब फिल्म स्टार एंडोर्स कर रहे हैं। उसके मैच भी उसी तरह दिलचस्प हैं जैसे क्रिकेट के टी-20 मैच हैं। फुटबाल के विश्व कप को लाखों लोगों ने अपने टीवी पर देखा। पहली बार बड़ी कम्पनियां क्रिकेट के अतिरिक्त दूसरे खेलों पर पैसे लगाने के लिए तैयार हैं क्योंकि फुटबाल, हाकी, कबड्डी तथा बैडमिंटन जैसे खेल अब दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं। पहले खेलों के सुपरस्टार केवल क्रिकेट में पाए जाते थे। महेन्द्र सिंह धोनी अब भी विश्व के सबसे रईस खिलाडिय़ों में गिने जाते हैं। विराट कोहली की अपनी लोकप्रियता है लेकिन इनके अतिरिक्त क्रिकेट और सुपरस्टार पैदा नहीं कर सका। सचिन तेंदुलकर रिटायर हो गए हैं। अब खेलों के सुपरस्टार दूसरी खेलों में पैदा हो रहे हैं। सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा के. श्रीकांत, मैरीकॉम, बाक्सर विजेन्द्र सिंह, पहलवान सुशील कुमार अब खेलों के नए सुपरस्टार हैं। बड़ी कम्पनियां भी इनका इस्तेमाल कर रही हैं।
अगले साल विश्व कप है और लोग एक बार फिर अपने-अपने टीवी सैट के सामने बैठे नज़र आएंगे पर क्रिकेट भक्ति कम हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्रिकेट यहां किसी धर्म से कम नहीं है लेकिन इस धर्म में आस्था कम हो रही है। इसका एक कारण है कि बहुत अधिक क्रिकेट हो रहा है। रणजी ट्राफी, टैस्ट क्रिकेट, वनडे क्रिकेट, टी-20, आईपीएल सबने मिलकर क्रिकेट का रहस्य तथा उसका आकर्षण कम कर दिया। पहले साल में एकाध टैस्ट सीरीज़ होती थी, अब हर महीने कहीं न कहीं किसी न किसी तरह का मैच हो रहा है। लोग कितना एक खेल देख सकते हैं? दूसरी बात है कि ले देकर केवल 10 क्रिकेट खेलने वाले देश हैं। अर्थात् इसे तो अंतरराष्ट्रीय खेल कहा ही नहीं जा सकता। इनमें पाकिस्तान, जिम्बाब्वे, श्रीलंका, बांग्लादेश, वैस्टइंडीज की अपने-अपने बोर्ड के साथ समस्या है। तीन महीने पहले अपने बोर्ड से कम पैसे मिलने के कारण वैस्टइंडीज की टीम भारत के साथ सीरीज़ बीच में छोड़ कर वापिस घर चली गई। क्या कभी सोचा गया था कि शक्तिशाली वैस्टइंडीज का यह हाल हो जाएगा? जब से लाहौर में श्रीलंका की टीम पर हमला हुआ है कोई और टीम पाकिस्तान में खेलने को तैयार नहीं। ले देकर भारत, इंगलैंड तथा आस्ट्रेलिया बचे हैं लेकिन इन तीन टीमों को आपस में बार-बार खेलता कितना देख सकते हैं दर्शक?
लेकिन भारत में क्रिकेट के कमजोर होने का मुख्य कारण इसमें लगा पैसा है। सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को सबने मिल कर कुचल दिया। सट्टेबाजी तथा मैच फिक्सिंग के कारण लोकप्रियता कम हो गई है। मैंने तो खुद बहुत पहले क्रिकेट मैच देखने बंद कर दिए थे क्योंकि मन में यह बात बैठ गई कि इनमें कहीं न कहीं घपला है। मामला इतना गंभीर हो चुका है कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ रहा है। बीसीसीआई के प्रभुओं ने ही इस गेम की विश्वसनीयता खत्म कर दी है। इससे बड़ी शर्मनाक घटना क्या होगी कि बीसीसीआई के प्रधान का दामाद ही सट्टेबाजी के कारण जेल में है? अर्थात सब कुछ घर में रखा गया है। आईपीएल का उसके शोर शराबे के कारण आकर्षण जरूर है लेकिन आम प्रभाव है कि यहां सब कुछ फिक्स है। क्रिकेट में किस तरह संतुलन डोल रहा है यह इस बात से पता चलता है कि रणजी ट्राफी मैच में जम्मू कश्मीर ने 40 बार चैम्पियन रहे मुम्बई को हरा दिया और मुम्बई वह टीम है जिसने सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी दिए हैं। अगर मुम्बई अपनी सर्वोच्च जगह खो रहा है तो क्रिकेट का भविष्य बहुत उज्जवल नहीं हो सकता।
क्रिकेट महंगा भी बहुत है और आजकल के दिनों में कम से कम टैस्ट क्रिकेट के लिए किसी के पास समय नहीं है। बाकी खेलें बहुत कम समय में रोमांच भी देते हैं और जोश भी तथा आजकल के फटाफट युग के उपयुक्त हैं। कबड्डी जो पहले केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही खेली जाती थी अब धीरे-धीरे मुख्यधारा की खेल बनती जा रही है। प्रो कबड्डी लीग के मैच अपने पहले सप्ताह में ही 20 करोड़ दर्शकों तक पहुंचने में कामयाब हो गए। फुटबाल की इंडियन सुपर लीग का बजट 800 करोड़ रुपए है। क्रिकेट के पदाधिकारियों की गलत नीतियों, घोटालों तथा बदले जमाने के कारण दूसरे खेलों को मौका मिल रहा है। एशियाई खेलों में हमने हाकी तथा कबड्डी में स्वर्ण पदक जीता और पीवी सिंधू ने मकाओ में बैडमिंटन का विश्व कप जीता। शूटिंग, बाक्सिंग तथा पहलवानी में हमारे खिलाड़ी लगातार मैडल ला रहे हैं। यह सही दिशा है नहीं तो हम एक खेल, क्रिकेट, वाला देश बन कर रह गए थे।