
यह कैसा पाकिस्तान है?
पेशावर में तालिबान के हमले में मारे गए बेटे के बाप ने विलाप करते हुए सवाल किया है, ‘इतने छोटे बच्चों को कौन मारता है? खुदा के वास्ते यार! कोई सुनने वाला भी है पाकिस्तान में?’ यही आवाजें सारे पाकिस्तान से गूंज रही हैं कि यह कैसा इस्लाम है? क्या इसलिए पाकिस्तान बनाया गया था? लंदन के ‘इकॉनोमिस्ट’ अखबार ने सेना के एक अधिकारी को कहते बताया है कि ‘मुझे मालूम नहीं कि पाकिस्तान मजहब के नाम पर बनाया गया था या नहीं, पर निश्चित तौर पर यह मजहब के नाम पर तबाह किया जा रहा है।’ वरिष्ठ पत्रकार महर तरार लिखती हैं, ‘मेरा मुलक दर्द से चीख रहा है।’ इससे पहले 2004 में रूस के शहर बेसलान में चेचेन्य बागियों ने 300 स्कूली बच्चों को गोलियों से उड़ा दिया था। इनमें तथा पेशावर के तालिबानी हत्यारों में एक सांझ है कि दोनों जेहाद के नाम पर या इस्लाम के नाम पर यह हत्याएं कर गए।
हर धर्म सिखाता है कि बूढ़ों, महिलाओं तथा बच्चों की विशेष सुरक्षा होनी चाहिए लेकिन यहां जेहाद के नाम पर बच्चों के ही सिर उड़ा दिए गए। जिया उल खान पाकिस्तान को गलत रास्ते पर डाल गए जिसका यह अंजाम है। इस नीति को दफनाने की जरूरत है। आखिर यह कैसा देश है जहां अपने बच्चों को इस बेदर्दी से मारा जा रहा है और इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के मौलाना अज़ीज़ जैसे लोग भी हैं जो इसकी निंदा करने से इंकार कर रहे हैं? केवल सिविल सोसायटी की हिम्मत से पाकिस्तान नहीं बच सकता इसके लिए उस विचारधारा से टकराव लेने की जरूरत है जो मिलिटैंसी को दूध पिला रही है। पेशावर की घटना के अगले दिन लश्कर-ए-तोयबा के कमांडर जाकिर रहमान लखवी को जमानत देना बताता है कि चाहे नवाज शरीफ कहें कि कोई ‘गुड’ या ‘बैड’ आतंकवादी नहीं पर पाकिस्तान की हुकूमत अभी भी यह अंतर कर रही है कि जो आतंकवादी उनके लोगों को मार रहे हैं उन्हें वह खत्म करेगी पर जो भारत के खिलाफ हिंसा करते हैं उन्हें जमानत देगी। जिस दिन हमने पेशावर में मारे गए बच्चों के लिए दो मिनट का देश भर में शोक मनाया था उसके अगले दिन पाकिस्तान ने मुम्बई में 166 मारे गए हमारे लोगों के हत्यारे को जमानत दे दी। अपनी सहानुभूति, संसद में प्रस्ताव सब का हमें रिटर्न गिफ्ट मिल गया। डॉन अखबार में सिरिल एलमियाडा लिखते हैं, ‘पेशावर के लिए एक नियम तथा मुम्बई के लिए अलग नियम नहीं हो सकते।’ लेकिन यही सिग्नल तो पाकिस्तान दे रहा है। वह संकेत दे रहे हैं कि भविष्य में लश्कर-ए-तोयबा का भारत के खिलाफ इस्तेमाल वह रद्द नहीं कर रहे। यह ‘जॉकी चाचा’ तो कराची के उस कंट्रोल रूम में था जहां से मुम्बई पर हमला करने वालों को आदेश दिए जा रहे थे लेकिन यह लोग समझते नहीं कि जो मुम्बई में हुआ था उसी सिलसिले का हिस्सा आज पेशावर है।
पाकिस्तान ने एक राष्ट्र के तौर पर बचना है तो यह उनके लिए निर्णायक मोड़ होना चाहिए। यह टर्निंग प्वायंट है जैसा पत्रकार हमीद मीर ने भी माना है जिन पर खुद कातिलाना हमला हो चुका है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुरानी का हमें कहना है, ‘मैं आपको समझाना चाहता हूं कि हम अपनी जिन्दगी, अपने भविष्य तथा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं।’ पर कुछ लोगों को फांसी लगाने से कुछ नहीं होगा सारी विचारधारा ही बदलनी होगी। लखवी को मिली जमानत बताती है कि पाकिस्तान की व्यवस्था कितनी बेवकूफ बन चुकी है कि वह उन्हें दोस्त समझ कर गले लगा रहे हैं जो एक दिन उन्हें नष्ट कर देंगे। यह भी हो सकता है कि वहां गृहयुद्ध शुरू हो जाए। हमारे लोग उनके जैश-ए-मुहम्मद तथा लश्कर-ए-तोयबा की हिंसक गतिविधियों के लगातार शिकार हो रहे हैं। हमारे खिलाफ आतंकवाद में संलिप्त दाउद इब्राहिम, हाफिज सईद, महसूद अजहर आदि सबको वहां आश्रय दिया गया है। याद आती है 14 मई 2002 की घटना जब जम्मू में पाकिस्तान से भेजे गए मिलिटैंट्स ने इसी तरह सेना की यूनीफार्म डाल हमारे कालूचक के उस कैम्प पर हमला किया था जहां सेना के परिवार रह रहे थे। 18 लोग मारे गए थे, इनमें 10 बच्चे भी थे। उस दिन हम भी दर्द से चीखे थे।
पेशावर में बच्चों के संहार के बाद मीडिया तथा बुद्धिजीवी वर्ग विशेष तौर पर देश की विचारधारा, दिशा तथा बुनियाद पर असुखद सवाल पूछ रहे हैं। कराची का प्रमुख अखबार डॉन लिखता है कि ‘फाटा क्षेत्र में सेना के आप्रेशन का कोई फायदा नहीं जब तक आप मिलिटैंट्स की सैद्धांतिक जड़ों तथा समाज के बीच उनकी पहुंच पर हमला नहीं करते।’ नवाज शरीफ को लताड़ते हुए द नेशन अखबार लिखता है कि ‘आप सऊदी पैसे से बने मदरसों के खिलाफ कार्रवाई करने से इन्कार कर रहे हो जो हमारे युवकों के मनों में ज़हर घोलते हैं और उन्हें धर्मांध कट्टरवादी बना रहे हैं।’ पाकिस्तान की बड़ी समस्याओं के बीच यह भी समस्या है कि पाठ्यक्रम बच्चों को कट्टरवाद तथा असहिष्णुता की तरफ धकेल रहा है। द नेशन अखबार ने हालत के लिए सरकार, राजनीतिक दलों तथा सेना को जिम्मेवार ठहराते हुए साफ लिखा है, ‘देश वह काट रहा है जो दशकों से उसने बोया है।’
2011 में हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि ‘आप अपने पिछवाड़े में सांप नहीं पाल सकते इस आशा से कि वह केवल आपके पड़ोसियों को डसेंगे।’ पर पाकिस्तान में आज भी लोग हैं जो पेशावर घटना के लिए भारत को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं जैसे पहली घटनाओं के लिए अमेरिका/इजरायल/भारत को जिम्मेवार ठहराया जाता रहा। आतंकवादी छत्त से खड़े होकर ऊंची आवाज में कह रहे हैं कि हमने करवाया लेकिन कई टीवी एंकर कह रहे हैं कि फलां-फलां ने करवाया।
पाकिस्तान में 14 वर्षों में आतंकवाद के कारण 50,000 लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन वह हमारे साथ आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करेंगे इसकी संभावना नहीं। भारत-पाक तनाव भूगौलिक ही नहीं सैद्धांतिक भी है। विचारधाराओं में टकराव है। जहां तालिबान ने उन सात आतंकवादियों की तस्वीर जारी कर दी है जिन्होंने यह जघन्य वारदात की है वहीं पाकिस्तान के नेशनल टीवी पर मुम्बई पर 26/11 के हमले के मुख्य अपराधी हाफिज़ साईद ने भारत पर इसका दोष लगाते हुए भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई की खुली धमकी दी है। पेशावर की हर गली में जनाज़े निकाले गए। छोटे-छोटे ताबूतों में बच्चे दफनाए गए पर फिर भी व्यवस्था ऐसे दहशतगर्दों से पूरा रिश्ता तोडऩे को तैयार नहीं। किसी पाक राजनेता ने हाफीज सईद की निंदा नहीं की। किसी पुलिस वाले ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। उलटा इसके बाद भारत में हाई अलर्ट हो गया कि मुम्बई जैसा 26/11 दोहराया न जाए। फिर पाकिस्तान में बदला क्या?