
भारत में ओबामा
रविवार को जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का विमान एयरफोर्स-वन कोहरे भरे मौसम में नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरेगा तो दुनिया विश्व के सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका तथा सबसे बड़े लोकतंत्र मेज़बान भारत के रिश्तों में वह गर्मजोशी देखेगी जो आजतक नहीं देखी गई। गणतंत्र दिवस पर बराक ओबामा का मुख्य अतिथि बनना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए व्यक्तिगत उपलब्धि भी है जिन्होंने वर्षों अमेरिकी वीज़ा नहीं दिए जाने की कड़वाहट को एक तरफ रखते हुए देश हित में अमेरिका के साथ घनिष्ठ रिश्ते बनाने के लिए कदम उठाए हैं। बराक ओबामा ने भी बराबर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। आज दोनों में वह घनिष्ठता नज़र आ रही है जो बराक ओबामा तथा इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कॉमरॉन के बीच भी नहीं है। शायद जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों पर विजय पा कर दोनों ने बुलंदियां हासिल की हैं उसके कारण आपसी दोस्ती बन गई है। पहली बार है कि किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को गणतंत्र दिवस पर मेहमान के तौर पर बुलाया जा रहा है। ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी हैं जो दूसरी बार भारत आ रहे हैं। और यह पहली बार होगा कि अमेरिका का कोई राष्ट्रपति केवल एक देश की यात्रा के लिए इतना लम्बा सफर कर रहा है। वह 12000 किलोमीटर का सफर केवल भारत के गणतंत्र दिवस में शामिल होने के लिए कर रहे हैं। यह बहुत कुछ ओबामा तथा मोदी के बीच ‘कैमिस्ट्री’ का परिणाम है लेकिन देशों के बीच रिश्ते केवल नेताओं के व्यक्तिगत रिश्तों से ही प्रभावित नहीं होते। आखिर में मामला राष्ट्रीय हित का है। केवल भारत की यात्रा कर अमेरिका के राष्ट्रपति द्विपक्षीय रिश्ते ही बेहतर नहीं कर रहे बल्कि दूसरे बड़े खिलाडिय़ों को यह संदेश भी दिया जा रहा है कि अमेरिका भारत के साथ रिश्तों को बहुत अहमियत देता है। भारत की अपनी यात्रा से पहले ओबामा की यह घोषणा कि वह देश ‘पाकिस्तान से पेरिस’ तक आतंकवादियों का खात्मा कर देगा तथा एक बार फिर सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का समर्थन बराबर महत्वपूर्ण है।
अमेरिका बहुत समय से भारत पर यह दबाव डाल रहा था कि वह इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाएं पर पिछली भारत की सरकारें हिचकिचाती रही। शायद कहीं घबराहट थी कि चीन उत्तेजित होकर और समस्या न खड़ी कर दे। प्रधानमंत्री मोदी में अमेरिका को वह भारतीय नेता मिल गया है जिसकी कूटनीति हट्टी-कट्टी कही जाएंगी जिसका परिणाम हम श्रीलंका में देख कर हटें हैं। पूर्व राष्ट्रपति राजापक्षे तो उस देश को चीन की कालोनी बनाने जा रहे थे। वह चुनाव हार गए। अब राजापाक्षे की पार्टी ‘रा’ पर आरोप लगा रही है कि उसने विपक्ष की मदद की और उन्हें पराजित करवा दिया। वह चाहे शिकायत करते रहे लेकिन दुनिया को तो संदेश गया है कि भारत सरकार अपने पिछवाड़े में अपने खिलाफ गतिविधियां बर्दाश्त नहीं करेगी। अमेरिका ने भी यह नोट किया है और चीन ने भी। इसी के साथ बराक ओबामा की यात्रा से चीन को भी संदेश जाएगा कि भारत एक दंतविहीन ताकत नहीं जिसे रौंद कर वह आगे बढ़ सकते हैं। और यह भी समझ आ जाएगी कि अमेरिका भी कोई लडख़ड़ाता पहलवान नहीं जिसे चीन पछाडऩे वाला है। अमेरिका की अर्थ व्यवस्था में फिर जान पड़ रही है और उसकी टैक्नालोजी उसे चीन से बहुत आगे रखेगी। चीन अमेरिका की बराबरी करने की स्थिति में ही नहीं है।
अमेरिका में यह धारणा बढ़ रही है कि स्थिर तथा विकसित भारत उनके हित मेें है। हमारा उनके लिए सामारिक महत्व है। नरेंद्र मोदी ने भी संक्षिप्त समय में जापान, वियतनाम, आस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ संबंध बेहतर कर विदेश नीति के लिए नए विकल्प तैयार कर लिए हैं। इस दौरान भारत की अर्थ व्यवस्था मेेें आ रहा सुधार भी दूसरे देशों को हमारी तरफ आकर्षित कर रहा है। भारत में कई लोग हैं जो अधीर हैं कि जमीन परं परिवर्तन तथा सुधार नज़र नहीं आ रहा। उन्हें समझना चाहिए कि जो वर्षों से रुका हुआ है उसे गति देने में समय लगेगा। अभी तो नई नीति की नींव रखी जा रही है। और यह भी नहीं कि भारत-अमेरिका के बीच सब कुछ घी शक्कर ही है। कई मामलों में मतभेद हैं। दोनों देशों के बीच परमाणु देनदारी का मसला लटक रहा है। 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हिम्मत दिखाते हुए अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया था पर अभी तक दोनों देशों को इसका फल नहीं मिला। कई मामलों मेें अविश्वास है। मगर 2020 तक सभी भारतीयों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा करना है तो यहां मतभेद दूर करने होंगे। भारत की यह भी शिकायत है कि अमेरिका टैक्नालिजी ट्रांसफर के मामले अत्यंत दकियानूस है। पाकिस्तान की सेना की मदद की जाती है। उन पर भारत के खिलाफ आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए और दबाव डालने की जरूरत है। अमेरिका में आव्रजन को लेकर जो नीतियां तैयार की जा रही हैं भारत उनको लेकर बहुत चिंतित है। इससे भारत की आईटी कंपनियों को भारी नुकसान होगा। अगर यह नीति वहां कानून बन जाती है तो अनुमान है कि भारत को 30 अरब डालर का नुकसान होगा।
लेकिन दुनिया बदल चुकी है। शीतलहर खत्म हो चुका है। भारत में ‘पूंजीवाद’ अब गाली नहीं रहा। नई भारत सरकार भी अर्थ व्यवस्था खोलती जा रही है। गणतंत्र दिवस परेड में अमेरिका के राष्ट्रपति लगभग दो घंटे अपने भारतीय मेज़बानों के साथ खुले में रहेंगे। आमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति इतना समय खुले में व्यतीत नहीं करते। केवल अपने शपथ ग्रहण समारोह में एक घंटा बाहर रहते हैं। अपने भारतीय मेज़बानों के लिए ओबामा नई परम्परा डाल रहे हैं। आशा है कि पिछले अविश्वासों को एक तरफ रखते हुए यह गणतंत्र दिवस मजबूत तथा स्थिर भारत-अमेरिकी रिश्तों की नींव डाल जाएगा। 21वीं सदी भारत-अमेरिका की सदी होनी चाहिए।