
जयंती की बगावत
कांग्रेस पार्टी से पूर्व मंत्री जयंती नटराजन का इस्तीफा सामान्य ‘जहाज डूब रहा और चूहे छलांग लगा रहे हैं’ वाली ही घटना नहीं है। जीके वासन, कृष्णा तीर्थ तथा जयंती नटराजन (तीनों पूर्व मंत्री) की बगावत यह सही प्रभाव दे रही है कि कांग्रेस पार्टी का जबरदस्त पतन चल रहा है पर जयंती का इस्तीफा इससे भी गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। क्या जब वह पर्यावरण मंत्री थीं तब एक संविधानोत्तर ताकत उनके निर्णय को प्रभावित कर रही थी? क्या राहुल गांधी उसी तरह सरकारी निर्णयों को प्रभावित कर रहे थे जिस तरह कभी संजय गांधी करते रहे? इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू भी अपनी किताब ‘द एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ में बता चुके हैं कि सरकारी निर्णय 10 जनपथ के आदेशों पर भी लिए जाते रहे। उन्होंने मनमोहन सिंह को यह कहते उद्धृत किया था, ‘सत्ता के दो केन्द्र नहीं हो सकते…और मुझे स्वीकार करना है कि कांग्रेस अध्यक्ष ही सत्ता का केन्द्र हैं। सरकार पार्टी को जवाबदेह है।’ अब तो राहुल गांधी की अनुचित दखल भी सार्वजनिक हो रही है। चुनाव अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी ने कहा था, ‘सुनने में आया है कि दिल्ली में जयंती टैक्स लगता था।’ अर्थात् पर्यावरण संबंधित मंजूरियों के लिए पैसे देने पड़ते थे। उस वक्त कांग्रेस ने जयंती नटराजन का बचाव किया था लेकिन आज कांग्रेस इस आरोप की पुष्टि कर रही है। कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा का यह आरोप है कि वह फाइलें घर ले जाती थीं। कई सौ फाइलें चेन्नई के उनके घर से मंगवानी पड़ी थीं। इसकी इजाजत क्यों दी गई? प्रधानमंत्री ने इसे क्यों नहीं रोका? चिंताजनक सवाल है कि और कौन मंत्री थे जो इसी तरह सोनिया-राहुल के आदेशों पर नाचते थे तथा फाइलें घर ले जाते थे ठीक जिस तरह गृहमंत्री रहते ज्ञानी जैल सिंह ने किया था ताकि संजय गांधी की स्वीकृति ली जा सके और ऐसा करने से इन्कार करने पर तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल की छुट्टी कर दी गई थी।
पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन का आरोप है कि राहुल गांधी के दफ्तर से विशेष ‘इनपुट’ आते थे। कई बड़ी परियोजनाएं थीं जिनको रोक कर देश का विकास रोका गया लेकिन जयंती का कहना है कि उन्हें मंजूरी देने और न देने पर कांग्रेस उपाध्यक्ष के आदेश का पालन करना पड़ा। अर्थात् बाहर से अनिच्छुक नज़र आने वाले राहुल पीछे से तार हिला रहे थे। सवाल है कि एक केन्द्रीय मंत्री इतनी मजबूर क्यों थीं कि उन्हें संविधान के दायरे के बाहर एक सत्ता केन्द्र के आदेश का पालन करना पड़ा? उन्होंने जैल सिंह वाला रास्ता क्यों अपनाया, इंद्र कुमार गुजराल वाला रास्ता क्यों नहीं अपनाया? जयंती शहीद नहीं सहअपराधी है। संविधान की उनकी शपथ का क्या बना? जयंती का रोना है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया लेकिन उनके बाद बने पर्यावरण मंत्री वीरप्पा मोइली ने पाया था कि मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटियों की मंजूरी के बावजूद जयंती नटराजन के मेज पर 100 बड़ी-छोटी परियोजनाओं को अंतिम मंजूरी सम्बन्धित फाइलें लंबित थीं। इनमें ओडि़शा में 50,000 करोड़ रुपए का पोस्को स्टील प्लांट भी शामिल है जिसे एक दशक से लटकाया गया था और जो भारत में सबसे बड़ी विदेशी निवेश की परियोजना है।
क्या यह परियोजनाएं ‘जयंती टैक्स’ के कारण लटकाई गईं या राहुल गांधी के नापाक दखल के कारण? दोनों ही आरोप गंभीर हैं। इससे पता चलता है कि डा. मनमोहन सिंह की सरकार इस कद्र कमजोर हो गई थी कि कोई नियंत्रण करने वाला नहीं था। आशा है कि जयंती से भी बराबर पूछ होगी और भाजपा ऐसे बदनाम पूर्व मंत्री को अपने में शामिल करने की गलती नहीं करेगी सिर्फ इसलिए कि उसने राहुल गांधी पर आरोप लगाए हैं। लेकिन सबसे जरूरी है कि कांग्रेस बताए कि राहुल गांधी की भूमिका क्या थी? उन्हें तथा सोनिया गांधी को बिना जवाबदेही सरकारी निर्णय प्रभावित करने की सुविधा क्यों मिली हुई थी? क्या राहुल का एक हाथ पर्यावरण मंजूरी रोकता था और एक हाथ उसकी इजाजत देता था? क्या पर्यावरण मंजूरी के लिए ‘जयंती टैक्स’ के अलावा कोई और भी ‘टैक्स’ था?
वफादार तो कह रहे हैं कि कांग्रेस को कमजोर करने तथा राहुल गांधी को बदनाम करने की कोशिश हो रही है यह बात तो सही है पर करतूतें तो अपनी ही हैं। यह भी हो सकता है कि जांच से बचने के लिए जयंती नटराजन जिनका कभी कहना था कि उनकी रगों में कांग्रेस का खून है, अब आरोप लगा रही हैं पर यह जरूर बताता है कि पार्टी के अंदर विरोध तथा विद्रोह बढ़ रहा है। जयंती नटराजन के परिवार का चार दशकों से कांग्रेस के साथ रिश्ता रहा है। उनके पिता तमिलनाडु के अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका आरोप है कि राहुल गांधी उन्हें मिलने का समय ही नहीं देते थे। क्या शाही ठाठ हैं! पार्टी छोडऩे का अब अगला नम्बर किसका होगा? क्या वह भी जयंती के प्रांत तमिलनाडु से ही होगा क्योंकि पी. चिदम्बरम के पुत्र कीर्ति चेतावनियों के बावजूद बार-बार कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं और खुद पी. चिदंबरम कह चुके हैं कि अगला नेतृत्व परिवार से बाहर भी तो हो सकता है।