
जो बिगड़ बिगड़ कर संवर गए
जो संवर संवर कर बिगड़ गए
उन्हें देखना ही फिज़ूल है
तुझे देखना है तो देख उन्हें
जो बिगड़ बिगड़ कर संवर गए
-जोश मलसयानी
दिल्ली के चुनाव से एक दिन पहले दिल्ली की रईस आबादी ग्रेटर कैलाश से एक परिचित का फोन आया कि उनकी सोसायटी जो सदा भाजपा के पक्ष में रही है इस बार एकमत आप के लिए वोट करने जा रही है। तब ही समझ आ गया था कि भाजपा को भारी धक्का लगने वाला है। अगर ग्रेटर कैलाश में समर्थक बिदक गए तो रह क्या गया? टीवी चैनलों पर विशेषज्ञ बताते रहे कि यह वर्गीय लड़ाई है। कमजोर वर्ग ‘आप’ के साथ है और मिडल क्लास तथा उच्च वर्ग भाजपा के साथ। उन्हें खुद नहीं पता था कि क्या हो रहा है इसीलिए सारे सर्वेक्षण गलत रहे। ‘आप’ को सभी वर्गों तथा सभी जातियों का समर्थन मिला है जिसे ‘अंडर क्लास’ अर्थात निचले कहा जाता है केवल उन्हीं का समर्थन ही नहीं। जन लहर ने भाजपा को ध्वस्त कर दिया, सूपड़ा साफ कर दिया।
इतनी बड़ी पराजय का मतलब है कि केवल ‘आप’ को सकारात्मक वोट ही नहीं मिला, भाजपा के खिलाफ नकारात्मक वोट भी पड़ा है। ऐसा लगता है कि भाजपा तथा संघ के कार्यकर्ता भी उलट गए थे। नेतृत्व ने कांग्रेस मुक्त देश पर ध्यान देते हुए एक प्रकार से भाजपा मुक्त दिल्ली बना ली। 9 महीनों के बाद ही जनता ने बता दिया कि वह असंतुष्ट है और यह भी बता दिया कि जब जनता असंतुष्ट होती है तो अपना विकल्प वह खुद खड़ा कर लेती है। इसी अरविंद केजरीवाल को भगौड़ा कहा गया, अराजक कहा गया लेकिन उसी शख्स पर आज लोग इतना भरोसा कर रहे हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की बात भी रद्द कर दी।
अरविंद केजरीवाल में दिल्ली के कमजोर वर्ग ने अपना मसीहा देख लिया है। बिजली सस्ती करने का वायदा घर कर गया। भ्रष्टाचार खत्म करने का उनका संकल्प भी लोगों में जम गया। दिल्ली का बड़ा हिस्सा बस्तियों में रहता है। ‘आप’ का यह संदेश उन तक पहुंच गया कि वह उनकी शिकायतों तथा कमजोरियों को अगर खत्म नहीं कर सके तो उन्हें कम जरूर कर देंगे। दिल्ली में संगम विहार जैसी अनधिकृत कालोनियां भी हैं जहां इतनी तारें हैं कि आकाश नज़र नहीं आता। दिल्ली केवल फ्लाईओवर की दिल्ली ही नहीं, दिल्ली बेहाल बस्तियों की दिल्ली भी है। चौकीदार, ऑटोरिक्शा चालक, छोटे दुकानदार, मजदूर, निम्न कर्मचारी, गृहणियां जिनके लिए रोज की जिन्दगी एक भार है और जिन्होंने कभी एक चायवाले को समर्थन दिया था, सब बदल गए क्योंकि वह समझते हैं कि चायवाला भी बदल गया। भाजपा ने खुद केजरीवाल को हीरो बना दिया। प्रधानमंत्री ने उन पर हमला किया जबकि केजरीवाल ने उनके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। भाजपा ने अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक दी लेकिन जैसे कहा गया है,
जमाना बेअदब है, बेवफा है, बेसलीका है,
मगर उलफत में हमने तो कई नादानियां की हैं।
भाजपा के नेताओं ने पहले दिन से कई गलतियां कीं। पहली गलती तो थी कि लोकसभा के चुनाव के तत्काल बाद दिल्ली में चुनाव नहीं करवाए गए। तब माहौल था, लहर थी। किस बात का इंतज़ार करते रहे? नौ महीने मामला लटका कर आपने अपने विरोधी को फिर से खड़ा होने का मौका दे दिया और केजरीवाल ने इसे दो हाथों से दबोच लिया। दूसरा, दिल्ली में भाजपा इतनी देर में ऐसा स्थानीय नेता क्यों नहीं खड़ा कर सकी जो केजरीवाल की जगह ले सके? अमित शाह की नीति पूरी तरह असफल रही। भाजपा के गढ़ कृष्णानगर से किरण बेदी की हार बताती है कि लोग आपके इशारों पर नाचने को तैयार नहीं। भाजपा का दावा है कि उसके 4.65 करोड़ सदस्य हो गए हैं और वह गिनीज बुक में रिकार्ड बनाने वाली है लेकिन इस रिकार्ड का क्या फायदा कि आप राजधानी के लिए एक नेता तैयार नहीं कर सके? तीसरा, प्रधानमंत्री मोदी को मैदान में क्यों उतारा गया? लोगों ने नरेन्द्र मोदी को देश चलाने के लिए वोट दिया है हर राजनीतिक दंगल में उतरने के लिए नहीं। उन्हें निम्न स्तर की राजनीति से ऊपर रहना चाहिए। 2014 में नरेन्द्र मोदी अपने विकास के मॉडल को वर्ग तथा जाति की सीमाओं से ऊपर ले गए थे लेकिन इन 8-9 महीनों में लोगों को निराशा हुई है। चौथा, जो विकास का मॉडल प्रस्तुत किया जा रहा है उससे भी लोग संतुष्ट नहीं। जहां लोग ट्रेनों में धक्के खाते हैं और कई बार टॉयलट में बैठ कर भी सफर करते हैं, वहां आप बुलेट ट्रेन को गले लगा कर बैठ गए हो। हजारों करोड़ रुपया खर्च होगा। साधन लग्जरी ट्रेन की तरफ मोड़ दिए जाएंगे। इस दौरान रोजाना सफर करने वाले आम आदमी की हालत में सुधार नहीं होगा, फिर वह आपकी बुलेट ट्रेन को क्यों पसंद करे? इसी तरह स्मार्ट सिटी बनाने का मामला है। क्या पहले आपकी बस्तियां तथा अनाधिकृत कालोनियां ‘स्मार्ट’ बना लीं कि नया सब्जबाग दिखाया जा रहा है? यह तो इंडिया शाइनिंग संस्करण दो नज़र आता है। दूसरी ओर केजरीवाल इन लोगों की रोजाना की हालत सुधारने का वायदा कर रहे हैं। तब ही यह सूनामी आई है।
भाजपा की हार का पांचवां और मैं समझता हूं कि सबसे बड़ा कारण है कि लोग समझते हैं कि पार्टी अपनी जीत के बाद घमंडी हो गई है। ‘अहंकार’ शब्द का इस्तेमाल सब कर रहे हैं। यह प्रभाव ऊपर से नीचे तक कैसे पहुंच गया? हमने दो लोगों की सरकार को हटाया था, हम फिर दो लोगों की सरकार नहीं चाहते। ठीक है मनमोहन सिंह बहुत कमजोर नेता थे लेकिन लोग यह भी नहीं चाहते कि नया नेतृत्व तानाशाही हो जाए। लोग सारे देश में एक पार्टी का वर्चस्व भी नहीं चाहते हैं। इतिहास गवाह है कि वह संतुलन कायम कर देते हैं। हर बार सत्ता का जबरदस्त प्रदर्शन भी सही नहीं। लोग अपने नेतृत्व से नम्रता चाहते हैं, सादगी चाहते हैं। बराक ओबामा की यात्रा के दौरान जो शानो-शौकत दिखाई गई वह उलटी पड़ी है। आप भूल गए कि यहां फटेहाल लोग भी रहते हैं। भाजपा के नजदीकी नेता गोडसे पूजन या चार बच्चे पैदा करने या लव जेहाद की फिजूल बातें कर रहे हैं। इस नकारात्मक माहौल में विकास का मुद्दा पीछे पड़ गया। मुख्यधारा ने यह बकवास रद्द कर दी और संदेश दे दिया कि प्रधानमंत्री को भी इन मामलों में अपनी चुप्पी तोडऩी चाहिए।
अब जिम्मेवारी अरविंद केजरीवाल की है। उनका तो विपक्ष भी नहीं रहा। इसलिए दायित्व बढ़ जाता है। लोगों ने दिल्ली को अपनी प्रादेशिक पार्टी दे दी। आप के आगे बहुत समस्याएं हैं। सबसे बड़ी समस्या तो है कि वह अपनी दिल्ली की पूरी मालिक नहीं। जब तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलता तब तक प्रशासन पर उनकी पकड़ नहीं बनेगी। आशा है कि केन्द्र की सरकार इस परिणाम को सही भावना में लेगी तथा दिल्ली की नई सरकार को पूर्ण सहयोग देगी। विशेष तौर पर दिल्ली को पूरे राज्य का दर्जा देने का मामला और लटकाया नहीं जाना चाहिए। दिल्ली का जनादेश पूर्ण राज्य के लिए है इसे नम्रता से स्वीकार किया जाना चाहिए। इसी के साथ भाजपा के नेतृत्व को आत्ममंथन करना चाहिए। दिल्ली में विरोध की सूनामी क्यों चली? पार्टी जनता से क्यों कट गई? दिल्ली की गलियों से नाता क्यों टूट गया? एक प्रकार से भाजपा के लिए अच्छा भी हुआ कि दिल्ली जैसी छोटी जगह झटका लग गया। जीत का सिलसिला अंतहीन हो भी नहीं सकता था। आखिर में विजेता तथा पराजित दोनों को याद करवाना चाहता हूं कि यह दिल्ली है जो बेरहम है। इसका ऐसा इतिहास है। यहां संभल कर चलना होगा क्योंकि गदर पार्टी के हीरो लाला हरदयाल बता गए हैं,
पगड़ी अपनी संभालियेगा मीर,
यह और बस्ती नहीं दिल्ली है।
Very well analysed and beautifully spelled …
http://vineetypmehta.blogspot.in/2015/02/delhi-assembly-results-seven-mistakes.html