‘निंदक नियरे राखिए’
व्यक्तित्व की राजनीति अंतहीन नहीं हो सकती। दिल्ली का चुनाव परिणाम पहली चेतावनी है कि प्रधानमंत्री तथा उनके साथियों को उनके इमेज मेकर्स द्वारा निर्मित लोकप्रियता की धारणा से अतिशीघ्र बाहर आ जाना चाहिए और इस हकीकत का सामना करना चाहिए कि लोग असंतुष्ट हैं। अगर वह नाराज़ नहीं तो निराश जरूर हैं। दिल्ली का चुनाव नरेन्द्र मोदी के अपराजेय होने का मिथक भी तोड़ गया इसलिए आगे राजनीतिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं। पहली परीक्षा तो बजट अधिवेशन में होगी। फिर बिहार के चुनाव हैं। नेताओं को खुद से पूछना चाहिए कि जमीन पर जो चल रहा था उसे भांपने में वह क्यों असफल रहे? आप सब तो दिल्ली में बैठे थे, आपको पता क्यों नहीं चला कि दिसम्बर 2014 और फरवरी 2015 के बीच कुछ सप्ताह में जमीन नीचे से खिसक गई? नरेन्द्र मोदी सामान्य राजनीतिज्ञ नहीं हैं फिर जनता की नब्ज़ से हाथ क्यों हट गया कि मालूम नहीं पड़ा कि लोग इस कदर नाराज़ हैं? भाजपा को जो सफलता मिली है वह नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के कारण मिली है। ठीक है अमित शाह का प्रबंधन भी सही रहा लेकिन अगर मोदी की लोकप्रियता न होती तो यह प्रबंधन भी किसी काम का न होता पर दिल्ली पहुंच कर क्या हो गया? लोगों से संवादहीनता की स्थिति कैसे बन गई? केजरीवाल के 49 दिन के शासन को देख कर तो लोग उन्हें पंचायत संभालने का भी शायद खतरा न लेते लेकिन उन्होंने दिल्ली क्यों संभाल दी?
प्रधानमंत्री मोदी को भी साम्राज्य बनाने की ग्रस्तता त्याग देनी चाहिए। दिल्ली वाले बहुत ताकतवर हैं पर उन्हें यह समझना बंद करना होगा कि वह किसी को भी उठा सकते हैं और किसी को भी गिरा सकते हैं। शरीफ और वफादार हर्षवर्धन के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया गया? जैसे मैंने पहले भी लिखा, देश के प्रधानमंत्री को हर दंगल में नहीं कूदना चाहिए। उन्हें शासन पर केन्द्रित रहना चाहिए और फिर पहल छीननी चाहिए लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वह एनडीए के कामकाज का तटस्थ आंकलन करें और उन्हें उन लोगों से छुटकारा पाना चाहिए जो हर वक्त पंजाबी की ‘बाजारू’ भाषा में कहते रहते हैं कि ‘पाजी तुसीं ग्रेट हो।’ उलटा कबीर जी का यह दोहा पल्ले बांध लेना चाहिए कि
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय!
निंदक को अपने पास रखिए ताकि वह बताता रहे कि आप क्या गलती कर रहे हो। निंदक की भूमिका या मीडिया निभा सकता है या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। संघ को उग्रवादी तत्वों पर नियंत्रण करते हुए सरकार के कामकाज पर तीखी नज़र रखनी चाहिए ताकि जिस उम्मीद से हम सबने मिल कर यह सरकार बनाई है वह पूरी हो सके। हर जगह मोदी ही मोदी, इस तरह कब तक चल सकता है? लोग कुछ हाथों में आर्थिक तथा राजनीतिक ताकत के जमाव का विरोध कर रहे हैं। केवल अफसरों पर ही आप निर्भर नहीं रह सकते। देश गुजरात नहीं। अपनी सलाहकार मंडली का विस्तार करना चाहिए। ‘पोलीटिकल इनपुट’ की जबरदस्त जरूरत है। ऊपर से नीचे फैसले धकेलने की नीति भी सही नहीं। ‘आप’ और केजरीवाल अगर जीते हैं तो इसलिए कि वह नीचे से शुरू हुए हैं। नरेन्द्र मोदी को भी योगेन्द्र यादव जैसे शांत, गंभीर और संतुलित सलाहकार चाहिए। उन्हीं की सलाह पर केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार छोडऩे की गलती पर माफी मांगी थी। प्रधानमंत्री को भी स्वीकार करना चाहिए कि कहीं कुछ गलती हुई है। यह अहम का विषय नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में जनता ही मालिक है वह ही माई बाप है। उसके आदेश को नम्रता से स्वीकार करना चाहिए। यह भी मानना चाहिए कि केवल उनका ही नसीब नहीं दूसरे का भी हो सकता है।
नरेन्द्र मोदी आज भी देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं पर इस लोकप्रियता को नीचे तक स्थानांतरण करने की क्षमता पर बहुत गहरी चोट पहुंची है। राजनीति का विकेन्द्रीयकरण होना चाहिए। हर जगह यह नहीं चलेगा कि ‘मैं यह करूंगा, वह करूंगा।’ उन्हें दूसरों को उभरने देना चाहिए। लोग अधिक पढ़े लिखे न भी हों, अशिक्षित भी नहीं हैं। सियाने हैं। कालाधान वापिस लेने का मामला लीजिए। अरुण जेतली ने आगे आकर स्वीकार किया कि यह तत्काल नहीं होगा पूरी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होगा। लोगों को बात समझ आ गई। पर अमित शाह का कहना है कि यह तो ‘चुनावी जुमला था।’ लोगों में चेतना बहुत बढ़ गई है अगर उनके जज़्बात और मजबूरी से इसी तरह खेलते रहे तो अमितजी एक दिन लोग आपका ही जुमला बना देंगे। दिल्ली का झटका अमित शाह के लिए भी जरूरी था वह भी जरूरत से अधिक आश्वस्त थे। पर नहीं, अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय विकल्प नहीं जो टीवी के सियाने बताना चाहते हैं। खुद केजरीवाल भी हकीकत समझ गए हैं और अपने को राष्ट्रीय विकल्प नहीं मानते। वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें दिल्ली में अच्छी सरकार देनी है। वायदे पूरे करने हैं जो बहुत कठिन काम है। राष्ट्रीय स्तर पर भी अरविंद केजरीवाल नरेन्द्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते। जिस तरह दिल्ली में भाजपा ने कुछ सप्ताह में अपनी लोकप्रियता खोई है उससे केजरीवाल भी सावधान हो जाएंगे। योगेन्द्र यादव का कहना है कि ‘देश में राजनीतिक शून्य है। हम उसे भरने की कोशिश करेंगे।’ वह 4 सांसदों के बल पर यह शून्य कैसे भरेंगे? जो विपक्षी नेता, ममता बैनर्जी, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव उनकी जीत पर मिठाई बांट रहे हैं और बधाई दे रहे हैं, वह ही अपने अपने प्रदेश में ‘आप’ के प्रवेश को रोकने का प्रयास करेंगे।
यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपना मंदिर बनाए जाने पर आपत्ति की है और इसे हटा दिया गया। ऐसे चापलूसों से दूरी बनाए रखना चाहिए। एक पुराना किस्सा याद करवाना चाहूंगा। 1955 में रूस यात्रा के दौरान इंदिरा गांधी को वहां के प्रधानमंत्री निकिता कु्रश्चेव ने अति महंगा मिंक (ऊदबिलाव के बाल) कोट दिया था। इंदिरा गांधी जो तब प्रधानमंत्री नहीं थीं, इसे पा कर बहुत इतरा रही थीं लेकिन देश में बड़ा तूफान उठ गया यहां तक कि संसद में राम मनोहर लोहिया ने खूब हमला किया। इंदिरा गांधी को उस मिंक कोट से तौबा करनी पड़ी। उन्होंने इसे फिर कभी नहीं डाला। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी के 9-10 लाख रुपए के सूट को लेकर देश में घर-घर में असुखद चर्चा है। वह उस देश के नेता हैं जहां अभी भी कुछ जगह हैं जहां लोग आधे नंगे फिरते हैं। इस सूट से तत्काल छुटकारा पाने की जरूरत है। या इसे सरकारी तोशखाने में भेज दिया जाए, सदा के लिए, या नीलाम कर चैरिटी को पैसा दे दिया जाए पर भारत के प्रधानमंत्री के तन पर यह सूट दोबारा नज़र नहीं आना चाहिए। इंदिरा गांधी भी जनता के सामने सादी सूती धोती में ही नज़र आती थीं।