खुदा खैर करे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में रविवार को जम्मू कश्मीर की नई सरकार शपथ ले रही है जिसमें मुख्यमंत्री बनने वाले मुफती मुहम्मद सईद की भाषा में, उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव सांझीदार होंगे। मैं खुद इस गठबंधन के बारे कई सवाल कर चुका हूं लेकिन अगर जम्मू कश्मीर ने प्रगति करनी है और वहां शांति स्थापित करनी है तो ऐसे गठबंधन को मौका मिलना चाहिए जिसमें एक पार्टी को वादी में समर्थन मिला है तो दूसरी को जम्मू में। कई बार हिम्मत दिखानी पड़ती है पुरानी बातों को एक तरफ रख कर नई शुरुआत करनी पड़ती है। जैसे फिराख गोरखपुरी ने भी कहा है,
अपने माज़ी से जो लिपटा है वह सौदाई है,
कि बदल जाने की दुनिया ने कसम खाई है
जम्मू कश्मीर में भी एक साहसिक प्रयोग की जरूरत थी। पुराने विचार तथा जमी हुई सोच इस संवेदनशील प्रदेश को आगे नहीं ले जा सकते। उन डिब्बों से बाहर निकलने की जरूरत है जिनमें यह प्रदेश बंद किया गया है। लोगों की जरूरतें बदल गईं। युवाओं की महत्वाकांक्षा अलग है। उन्हें सही दिशा देने की जरूरत है। पीछे बहुत तबाही हुई है। जो ‘माज़ी से लिपटे’ रहते हैं उनका वही हाल होता है जो पाकिस्तान का हुआ है।
इस सारे मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय सरकार ने बहुत उदारता दिखाई है। धारा 370 जिसे लेकर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बलिदान दिया था, का मुद्दा पीछे डाल दिया गया है। भाजपा का नारा रहा है, ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेगा।’ इसके बावजूद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया जिसका संघ ने विरोध किया था और के.एन. गोबिंदाचार्य ने जिसे ‘अनैतिक प्रयास’ कहा था। भाजपा ने बहुत कुर्बानी दी है। छ: साल मुफती ही मुख्यमंत्री रहेंगे तीन-तीन साल की बारी पर जिद्द छोड़ दी। अफस्पा पर भी समझौता किया लगता है। सेना वहां स्थायी तौर पर तो रह नहीं सकती लेकिन क्या यह उचित समय है कि सेना की कुछ क्षेत्रों से वापिसी कर ली जाए यह देखते हुए कि पाकिस्तान अस्थिर हो रहा है और अफगानिस्तान में अल कायदा तथा आईएसआईएल के कदम पहुंच चुके हैं? श्रीनगर में भी आईएसआईएल का झंडा प्रदर्शित किया जा चुका है और दोनों अल कायदा तथा आईएसआईएल प्रदेश में घुसपैठ की धमकी दे रहे हैं। बेहतर होगा कि इस मामले में सेना और सिर्फ सेना, की सिफारिश पर चला जाए नहीं तो वही लेने के देने न पड़ जाएं।
एक मुस्लिम राजनीतिक दल के साथ गठबंधन कर भाजपा को अपनी छवि बदलने का मौका मिल जाएगा। भाजपा यह संदेश दे रही है कि वह मुस्लिम पार्टी के लिए भी अछूत नहीं लेकिन यह देखना होगा कि भाजपा कहीं कश्मीर के चक्रव्यूह में न फंस जाए। अभी से उमर अब्दुल्ला ट्वीट कर रहे हैं कि जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से नागपुर बदली जा रही है। अर्थात् आलोचक समस्या खड़ी करने का प्रयास करते रहेंगे। खुद पीडीपी जिसे ‘नरम अलगाववाद’ कहा जाता है, पर चलती रही है। महबूबा मुफती विशेष तौर पर देश को धमकियां देने से बाज़ नहीं आती। बहुत बार गैर जिम्मेवार रही हैं। पीडीपी का ध्यान केवल कश्मीर में अपने मतदाताओं को संतुष्ट करना होगा जिसकी न केवल जम्मू में बल्कि बाकी देश में भी प्रतिक्रिया होगी क्योंकि अभी अविश्वास है। दूसरी तरफ भाजपा के अपने मुद्दे हैं। कश्मीरी पंडितों की वापिसी तथा उनके पुनर्वास का मामला है। अलगाववादी 3.5 लाख पंडितों के वादी में बसने के खिलाफ हैं। अगर इस मामले पर भाजपा कोई समझौता करती है तो इसकी देश भर में तीखी प्रतिक्रिया होगी कि भाजपा लगातार समर्पण कर रही है। कश्मीर पंडितों का पुनर्वास तथा उनकी सुरक्षा नई सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने 1618 करोड़ रुपए का पैकेज इनके लिए घोषित किया था लेकिन अभी तक एक भी परिवार वहां नहीं लौटा। सईद अली शाह गिलानी जैसे बदमाश उन्हें धमकियां देते रहते हैं। देश की जनता के लिए कश्मीरी पंडितों की सम्मानजनक वापसी वह मापदंड होगा जिस पर यह सरकार परखी जाएगी।
इसी के साथ दो और मसले हैं आशा है जिन पर नई सरकार नकारात्मक रवैया नहीं रखेगी। पश्चिम पाकिस्तान से जो 1.5 लाख शरणार्थी आए थे उन्हें नागरिकता मिलनी चाहिए। 67 वर्षों से वह बिना अधिकारों के रह रहे हैं। वादी के नेता इसका इसलिए विरोध कर रहे हैं कि यह लोग हिन्दू हैं और इन्हें नागरिकता प्रदान कर प्रदेश में हिन्दुओं की जनसंख्या बढ़ जाएगी। वही आपत्ति है जो कश्मीरी पंडितों के बारे है। दूसरा, बहुत जरूरी है कि जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग की स्थापना की जाए। जम्मू के मतदाताओं की संख्या कश्मीर से बहुत अधिक है इसके बावजूद वादी के पास 46 सीटें हैं और जम्मू के पास केवल 37। ऐसा केवल इसलिए रखा गया ताकि प्रदेश में वादी के कश्मीरी मुसलमानों के हाथ शासन रहे। इसीलिए आज तक वहां हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन सका। कश्मीर घाटी में किसी भी विधानसभा क्षेत्र में 70,000 से अधिक मतदाता नहीं हैं और जम्मू में 1,00,000 से कम नहीं। इस असंतुलन को सही करने की जरूरत भी है। यह कोई नाजायज़ मांग भी नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में जनसंख्या के अनुसार ही सीटें होनी चाहिए।
जम्मू कश्मीर में एक नया जुआ खेला गया है। भ्रष्टाचार वहां बिग बिजनेस है विकास का बहुत पैसा नेताओं की जेबों में जाता है। कई तो दोनों तरफ से पैसा लेते हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने बड़ी परिपक्वता दिखाई है आलोचना भी सही है और जोखिम भी उठाया है पर आग और पानी का यह मेल आसान नहीं होगा। आशा है कि पीडीपी का नेतृत्व भी बराबर परिपक्वता तथा स्टेटसमैनशिप दिखाएगा। उन्हें समझना चाहिए कि इस सरकार को सफल होने के लिए केवल वादी का ही समर्थन नहीं चाहिए इसके लिए जम्मू का समर्थन बहुत लाज़मी है लेकिन उससे भी जरूरी है कि देश भर में इस सरकार को समर्थन मिले। अगर देश इस सरकार की दिशा को पसंद नहीं करेगा तो भाजपा भी विचलित हो जाएगी। केवल शांति ही नहीं देनी, विकास ही नहीं करना बल्कि बराबरी का भी ध्यान रखना है। इसलिए उन्हें शुभकामनाएं देते हुए, उनके सामने पहाड़ जैसी चुनौतियों को देखते हुए यह भी कहना चाहूंगा कि खुदा खैर करे!