भारत सरकार की पाक नीति क्या है?
पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर नई दिल्ली में उनके दूतावास में आयोजित समारोह में हुर्रियत कांफ्रेंस के अलगाववादी नेताओं की मौजूदगी की भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई। भारत चाहे कश्मीर मसले के समाधान में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को सिरे से खारिज करता हो पर पाकिस्तान हमें बता रहा है कि कश्मीर में उसके अपने बंदे हैं। इससे पहले सांबा तथा कठुआ में फिदायीन हमला भी यही संदेश देता है कि पाकिस्तान की कश्मीर में दखल पूरी है और वह वहां चैन नहीं होने देगा। शायद यही कारण है कि मुफ्ती मुहम्मद सईद को भी कुछ चानण हो रहा है और अफस्पा के बारे अपना रवैया नरम करते हुए अब कहना है कि इसे वापिस लेने से पहले सेना से बात की जाएगी। यह तो सही है कि हुर्रियत वाले पहले भी पाक उच्चायोग की तीर्थ यात्रा कर चुके हैं। अगर भारतीय नेता उन्हें बुलाएं तो वह नहीं जाते पर अगर पाक उच्चायुक्त का न्यौता आ जाए तो नई शेरवानी या जैकेट सिलवा चमकते वहां पहुंच जाएंगे। यह वही खण्डर हैं जिनके चुनाव के बहिष्कार के आह्वान की इस बार फिर जम्मू कश्मीर की जनता ने पूरी अनदेखी कर दी है लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान उन्हें खड़ा रखना चाहता है। आखिर यह उनके बंदे हैं। इसके साथ ही अगर यह जोड़़ कर देखा जाए कि निमंत्रण हाल ही में मुफ्ती साहिब की मेहरबानी से जेल से छूटे मसरत आलम को भी गया है तो पाकिस्तान की शरारत साफ हो जाती है। चाहे मसरत आलम नहीं आया पर मुफ्ती को भी सोचना चाहिए कि क्या कारण है कि जिस व्यक्ति के प्रति उन्होंने इतनी उदारता दिखाई है उसे पाकिस्तान के उच्चायुक्त की तरफ से तत्काल निमंत्रण मिल गया?
मुफ्ती मुहम्मद सईद जब मुख्यमंत्री बने तो पहले ही घंटे में उन्होंने जेहादियों, हुर्रियत तथा ‘उस पार’ के लोगों का शांतमय चुनाव के लिए शुक्रिया अदा कर दिया। अब जम्मू क्षेत्र में 24 घंटे में दो फिदायीन हमलों के बाद वही मुफ्ती साहिब ‘उस पार’ अर्थात् पाकिस्तान को धमकी दे रहे हैं कि वह जम्मू कश्मीर की शांति भंग न करे। पहले वह पाकिस्तान के साथ वार्ता की वकालत करते रहे अब कहना है कि आतंकवाद तथा वार्ता इकट्ठे नहीं चल सकते। किस मुफ्ती मुहम्मद सईद की बात को हम मानें? लेकिन इससे पहले मुफ्ती एक और मूर्खता कर चुके हैं। जम्मू क्षेत्र में हुए हमलों के लिए उन्होंने ‘नॉन स्टेट एक्टरज़’ अर्थात गैर सरकारी तत्वों को जिम्मेवार ठहरा दिया। एक बार फिर पाकिस्तान की सरकार का बचाव करने का प्रयास किया। उन्हें कैसे पता चला कि जो आतंकवादी ‘उस पार’ से आए थे वह गैर सरकारी तत्व थे? क्या यह संभव है कि पाकिस्तान की सेना की अनुमति के बिना यह कथित गैर सरकारी तत्व उनकी सीमा पार कर यहां घुसपैठ कर सकते हैं? पाकिस्तानियों ने अपनी सीमा खुली नहीं छोड़ रखी कि कोई भी टहलता उधर से आ जाए। ऐसा कह कर मुफ्ती पाकिस्तान को ‘क्लीन चिट’ देने की कोशिश कर रहे हैं। मुम्बई पर 26/11 के हमले के बाद भी पाकिस्तान ने कहा था कि वह करतूत ‘नॉन स्टेट एक्टरज़’ की है। बाद में स्पष्ट हो सका कि सारी कार्रवाई आईएसआई के निर्देश में की गई थी। सवाल अब यह भी उठता है कि मुफ्ती जैसे चालाक और फिसलाऊ राजनीतिज्ञ से उमर अब्दुल्ला बेहतर विकल्प नहीं थे?
जिस कार्यक्रम में हुर्रियत के नेता उपस्थित थे उसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह को भेजा गया। जनरल सिंह चाहे केवल 10 मिनट ही वहां रहे लेकिन भारत सरकार यह संदेश भी दे रही है कि उसे हुर्रियत तथा पाकिस्तान के प्रेम प्रसंग पर आपत्ति नहीं है? बाद में जब तीखी प्रतिक्रिया आई तो जनरल सिंह ने अपनी ‘संक्षिप्त’ उपस्थिति पर स्पष्टीकरण दिया कि उन्हें सरकार का प्रतिनिधि बन कर जाने के लिए कहा गया था और वह ‘नाखुश’ थे। जनरल वीके सिंह को भी अपना स्पष्टीकरण देना पड़ा क्योंकि लोग समझते हैं कि हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं को बुला कर पाकिस्तान जानबूझ कर हमें चिढ़ा रहा है विशेष तौर पर मसरत आलम को निमंत्रण देना तो उत्तेजना देने वाली कार्रवाई है।
देश के अंदर पाकिस्तान के उच्चायुक्त की इस कार्रवाई को लेकर इतनी प्रतिक्रिया इसलिए भी हुई क्योंकि हमारी अपनी सरकार की पाकिस्तान की नीति में निरंतरता नहीं है। कई बार तो भारत सरकार की पाक नीति के बारे कहने को दिल चाहता है कि ‘कुछ न समझे खुदा करे कोई!’ पहले नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया गया। फिर पाक उच्चायुक्त द्वारा हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं को बुलाने से भड़क कर भारत सरकार ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द कर दी। सारे देश ने समझा कि भारत सरकार की विदेश नीति वास्तव में तगड़ी है। फिर क्रिकेट का बहाना बना कर बातचीत शुरू कर दी और सार्क यात्रा के बहाने विदेश सचिव जयशंकर को इस्लामाबाद भी भेज दिया गया। अब हुर्रियत नेताओं की मौजूदगी की परवाह किए बिना जनरल वीके सिंह को पाक उच्चायोग भेज दिया गया। देश अपनी सरकार की ऐसी कलाबाजियों से भौचक्का रह गया है। पाक उच्चायुक्त मीरवाइज़ तथा गिलानी से अलग बात भी कर चुके हैं। उन्हें क्या संदेश दिया कि लगे रहो हुर्रियत भाई! भाजपा के प्रवक्ता ने अलगाववादियों से इस मुलाकात पर ऐतराज जताते हुए कहा कि पाक उच्चायोग को भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा नहीं बनाया जाना चाहिए लेकिन यह जनाब कैसे भूल गए कि उनकी अपनी सरकार को अब इस पर ऐतराज नहीं है। लेकिन दो दिन पहले तो सांबा और कठुआ में हमला हो चुका है। पाकिस्तान के साथ बेहतर सम्बन्ध करना सही नीति है विशेषतौर पर उस वक्त जब पेशावर में स्कूल पर हमले के बाद पाकिस्तान के अंदर भारत से सम्बन्ध बेहतर करने की इच्छा बढ़ रही है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि (1) पाकिस्तान आतंकवादी भेजना बंद करे तथा (2) जम्मू कश्मीर में दखल बंद करे। इन दोनों ही मामलों में पाकिस्तान का रवैया सही नहीं है इसलिए आशंका है कि मोदी सरकार के सम्बन्ध बेहतर करने के प्रयास का वही हश्र होगा जो शरम-अल-शेख में मनमोहन सिंह सरकार के ऐसे प्रयास का हुआ था। उधर पूंछ अभी सीधी होने को तैयार नहीं।