
राजनीति के रंग
राजनीति में एक दूसरे पर टिप्पणी करने की इज़ाजत है। चर्चिल विशेष तौर पर अपने विरोधियों को अपमानित करने में माहिर थे। एक बार उन्होंने एक महिला सहयोगी से कहा था, I may be drunk, Miss, but in the morning I will be sober and you will still be ugly अर्थात् इस समय चाहे मैं शराबी हालत में हूं पर सुबह यह उतर जाएगी पर तुम फिर भी बदसूरत ही रहोगी! ऐसी उनकी संस्कृति है। हमारे यहां भी इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुडिय़ा’ कहा गया था जिसका उन्होंने भी खूब राजनीतिक जवाब दिया। सोनिया गांधी नरेन्द्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कह चुकी हैं जिसका उपयुक्त जवाब उन्हें भी मिल चुका है। अभद्र या अपमानजनक टिप्पणी की भी एक सीमा होनी चाहिए। जो टिप्पणी भाजपा के मंत्री गिरिराज सिंह ने सोनिया गांधी के बारे की है वह असभ्य तथा नसलीय है। उनका कहना था कि गोरा रंग होने के कारण ही सोनिया कांग्रेस अध्यक्ष बनी हैं। ‘राजीव गांधी ने अगर किसी नाईजीरियन लेडी से विवाह किया होता, गोरी चमड़ी न होती तो कांग्रेस उसका नेतृत्व स्वीकार करती क्या?’ उन्होंने राहुल गांधी पर भी कटाक्ष किया कि ‘अगर कांग्रेस सत्ता में होती और अगर राहुलजी पीएम होते और किसी कारण से पीएम 43 से 47 दिन तक गायब रहते तो फिर क्या होता?’ जहां तक राहुल पर टिप्पणी का सवाल है, इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं क्योंकि यही सवाल सारे देश के दिमाग पर छाया हुआ है कि अगर उनकी मनोवृत्ति इस तरह पलायनवादी है तो क्या उन्हें कभी बड़ी जिम्मेवारी सौंपी भी जा सकती है? शिकायत राहुल के बारे टिप्पणी पर नहीं है, जायज़ शिकायत गिरिराज सिंह की सोनिया गांधी के बारे टिप्पणी पर है। किसी भी महिला पर इस तरह की निजी टिप्पणी क्यों की जाए? शरद यादव दक्षिण भारत की महिलाओं के काले रंग तथा उनकी ‘बॉडी’ पर संसद में टिप्पणी कर चुके हैं। वह ‘परकटी’ महिलाओं पर भी टिप्पणी कर चुके हैं। जहां तक सोनिया गांधी का सवाल है, याद रखना चाहिए कि वह एक विधवा हैं जो बहुत कठिन हालात से गुजरी हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि सोनिया गांधी दो बार अपनी पार्टी को विजयी बनवा चुकी हैं। उनके रंग पर टिप्पणी कर गिरिराज सिंह हर सीमा लांघ रहे हैं। पाठक साक्षी हैं कि मैं सोनिया गांधी का कभी भी प्रशंसक नहीं रहा। उन्होंने जिस तरह वंशवाद कांग्रेस पर लाद दिया है उससे पार्टी का भारी नुकसान हुआ है और उसकी आंतरिक ऊर्जा कम हुई है, लेकिन यह अलग बात है। सोनिया गांधी ने गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत किया है। एक समय जरूर उनका इतालवी मूल बड़ा मुद्दा था पर अब नहीं रहा। चमड़ी तो वैसे भी सतह पर ही है। सब कुछ तय तो वह करता है जो नीचे है।
दुख की बात है कि हम भारतवासी रंग को बहुत अधिक महत्व देते हैं। गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने भी हड़ताल पर बैठी नर्सों से कहा है कि वह धूप में न बैठें क्योंकि वह काली हो जाएंगी और उनकी शादी करनी मुश्किल हो जाएगी। गिरिराज सिंह कांग्रेस पर नसलीय होने तथा गोरे रंग से प्रभावित होने का आरोप लगाना चाहते थे पर खुद फंस गए। बिना कारण नाईजीरिया को घसीट लाए जिससे नाईजीरिया के राजदूत अपनी जगह नाराज़ हो गए हैं। उनकी नाराज़गी भी जायज़ है क्योंकि देश के अंदर अश्वेत विदेशियों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है। काले या हब्शी कह कर उनका मज़ाक उड़ाया जाता है। दिल्ली की मैट्रो में नाईजीरिया के तीन युवकों की पिटाई कर दी गई। जालन्धर में ब्रूंडी के एक छात्र को इतना पीटा कि वह कोमा में चला गया। अफ्रीका के देशों के साथ हमारे अच्छे सम्बन्ध रहे हैं। हम रंगभेद नीति के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते रहे हैं इसलिए एक केन्द्रीय मंत्री की ऐसी टिप्पणी का चारों तरफ बुरा असर पड़ता है। और याद रखना चाहिए कि हमारी राजनीति में व्यक्तिगत टिप्पणी बहुत महंगी भी पड़ती है। मणिशंकर अय्यर द्वारा नरेन्द्र मोदी को ‘चायवाला’ कहना भाजपा की जीत का एक कारण था।
भाजपा का दुर्भाग्य है कि यहां ऐसे लोग भरे हुए हैं जो अपने अनुचित बयानों से अपनी सरकार के लिए समस्या पैदा करते रहते हैं। साध्वी निरंजन ज्योति, साक्षी महाराज, योगी आदित्यनाथ, साध्वी प्राची समय समय पर ऐसी बात कह चुके हैं जिसके कारण सरकार को रक्षात्मक होना पड़ा तथा स्पष्टीकरण देना पड़ा था। गिरिराज सिंह भी कई बार मर्यादा की सीमा पार कर चुके हैं। उन्होंने 2014 के चुनाव से पहले मोदी के विरोधियों को पाकिस्तान जाने के लिए कहा था। क्योंकि वह बिहार की शक्तिशाली भूमिहार जाति से सम्बन्ध रखते हैं और आगे बिहार का चुनाव है, इसलिए उन्हें बर्दाश्त किया जा रहा है नहीं तो ऐसे लोगों को मंत्रिमंडल में नहीं रखना चाहिए। जब तक इनमें से एकाध को बाहर नहीं निकाला जाता तब तक ऐसी लापरवाह टिप्पणियां बंद नहीं होंगी। सोनिया गांधी से राजनीतिक मतभेद जरूर होंगे लेकिन ‘चमड़ी’ पर टिप्पणी के अतिरिक्त इन्हें व्यक्त करने का और ढंग भी तो हो सकता है। हां, समाज में रंग को लेकर पूर्वाग्रह है। ‘फेयर एंड लवली’ की बिक्री का यही कारण है। जरूरत इन पूर्वाग्रहों से लडऩे की है, इन्हें और पक्का करने की नहीं।