Rao ka punarvas

राव का पुनर्वास

नेताओं की याद में दिल्ली में यमुना का एक किनारा तो मरणघाट में परिवर्तित हो चुका है। क्या नेताओं को याद करने का और बेहतर तरीका नहीं हो सकता? उनके नाम पर विश्वविद्यालय, कालेज, स्कूल या अस्पताल बनाए जा सकते हैं लेकिन उनके परिवारजनों को या तो यमुना किनारे स्मारक चाहिए या वह चाहते हैं कि लयूटन की नई दिल्ली में किसी सरकारी बंगले को स्मारक बना दिया जाए। अर्थात् सब कुछ करदाता बर्दाश्त करे। महात्मा गांधी या प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की याद में स्मारक बनाना तो समझ आता है पर यहां तो हम अजीत सिंह तथा उनके समर्थकों का असफल और अशोभनीय संघर्ष देखकर हटे हैं जो उस सरकारी बंगले को स्मारक बनाना चाहते थे जहां उनके पिता चौधरी चरण सिंह कभी रहते थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार वह घर अलॉट करवा चुकी हैं जहां उनके पिता बाबू जगजीवन राम रह चुके हैं। मैं तो यह चाहूंगा कि हमारे वर्तमान नेता अभी से यह घोषणा करें कि उनके बाद उनके स्मारक पर पैसा बर्बाद न किया जाए जैसे मायावती कांशीराम के स्मारकों पर कर चुकी हैं। वैसे भी जनता अधिकतर केवल राजघाट ही जाती है। लोग जानते हैं कि असली कौन है! पर अब यह दिलचस्प समाचार है कि केन्द्र की राजग सरकार कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की याद में नई दिल्ली में स्मारक बनवाना चाहती है। यह दिल्ली में यमुना किनारे एकता स्थल पर बनाया जाएगा। राव वह प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री डा. मनमोहन सिंह के साथ मिल कर 1991 में देश के आर्थिक कायाकल्प की नींव रखी थी। उनसे पहले चन्द्रशेखर के समय तो 47 टन सोना बैंक ऑफ इंगलैंड के पास गिरवी रखने की नौबत आ गई थी। लेकिन कांग्रेस ने राव के साथ ऐसा बुरा सलूक किया कि उनके शव को पार्टी मुख्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया गया। जिन्होंने श्रद्धांजलि देनी थी उन्होंने गेट के बाहर आकर श्रद्धांजलि अर्पित की। संस्कार के लिए हैदराबाद भेज दिया गया गृहमंत्री शिवराज पाटिल की बाकायदा ड्यूटी लगाई गई कि संस्कार दिल्ली में न हो सके। राव के प्रति इस उपेक्षापूर्ण रवैये का औचित्य उनके कार्यकाल में बाबरी ढांचे को गिराया जाना माना जाता है पर असली बात और है। असली बात है कि राव ने कांग्रेस पर गांधी परिवार के अधिपत्य को सफलतापूर्वक चुनौती दी और सोनिया गांधी की नाराजगी की परवाह किए बिना 5 वर्ष वह शासन दिया जो भारत को बदल गया।
जहां तक बाबरी ढांचे को गिराए जाने का सवाल है, कई लोग कहते हैं कि राव ने जानबूझ कर इसे बचाने की कोशिश नहीं की। वह ‘गुप्त संघी’ थे। अब भी उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां का कहना है कि मोदी सरकार उनका स्मारक इसलिए बनाना चाहती है क्योंकि राव का संघ परिवार के साथ गुप्त समझौता था। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने भी 6 दिसम्बर 1992 का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब मस्जिद गिराई जा रही थी तो प्रधानमंत्री राव ने पूजा शुरू कर दी। वह कमरे में बंद हो गए और तब तक उनकी पूजा खत्म नहीं हुई जब तक ढांचा गिरा नहीं दिया गया। खुद राव का स्पष्टीकरण था कि मामला प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र का था। अपनी किताब ‘अयोध्या, 6 दिसम्बर 1992’ में राव ने लिखा है, ‘प्रदेश सरकार ने विभिन्न मंचों से ढांचे के बचाव का आश्वासन दिया था। 2 नवम्बर 1991 को राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री ने ऐसा आश्वासन दिया था। प्रदेश सरकार ने अदालतों को दिए गए शपथपत्रों में भी इसे दोहराया था।’ अर्थात् जहां तक तत्कालीन प्रधानमंत्री का संबंध है ढांचा गिराए जाने की जिम्मेवारी पूरी तरह प्रदेश की थी। लेकिन उस दिन की अपनी निष्क्रियता के बारे राव ने एक और स्पष्टीकरण भी दिया है जो शेखर गुप्ता ने अपनी किताब ‘एंटीसिपेटिंग इंडिया’ में लिखा है। उस वक्त राव प्रधानमंत्री नहीं रहे थे। राव ने शेखर गुप्ता के इस सवाल कि ‘आपने केन्द्रीय बलों को गोली चलाने के लिए क्यों नहीं कहा?’ का जवाब कुछ इस तरह दिया, ‘जो भीड़ मस्जिद पर हमला कर रही थी वह क्या नारा लगा रही थी? राम, राम! अगर मैं उन पर गोली चलाने का आदेश दे देता और शायद कई सौ मारे जाते तो यह सैनिक भी खुद क्या उच्चारण कर रहे होते? राम राम!…और क्या होता अगर कुछ सैनिक खुद भीड़ में शामिल हो जाते? ऐसी आग लगती कि सारा भारत जल जाता।’
आप इस स्पष्टीकरण को स्वीकार करें या न करें लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राव के साथ घोर दुर्व्यवहार किया। असली कारण था कि उन्होंने सोनिया गांधी की परवाह नहीं की। उस वक्त सोनिया के विदेशी मूल का मामला भी भड़क रहा था। इसीलिए राव को माफ नहीं किया गया, मौत के बाद भी नहीं। हमारी संस्कृति तो कहती है कि मौत के बाद सभी मतभेद खत्म हो जाते हैं पर उस वक्त सोनिया गांधी को इसकी समझ नहीं थी। जिस वक्त राजीव गांधी की हत्या हुई राव दिल्ली छोड़कर हैदराबाद में रिटायर होने की तैयारी कर रहे थे। आधी उनकी लाइब्रेरी वहां भेज दी गई थी पर इस बीच राजीव की हत्या हो गई और सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से इन्कार करते हुए पहले उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव दिया था। डा. शर्मा ने सेहत तथा आयु का हवाला देकर इन्कार कर दिया तब सोनिया ने राव का सुझाव दिया। अपने इस सुझाव पर उन्हें पछतावा भी बहुत हुआ इसलिए फिर जब अपने परिवार से बाहर किसी को प्रधानमंत्री बनवाने की बारी आई तो सोनिया ने कमजोर रीढ़हड्डी विहीन, गैर राजनीतिज्ञ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया। मनमोहन सिंह खुद तबाह हो गए लेकिन उन्होंने सोनिया को शिकायत का मौका नहीं दिया।
राव की जिन्दगी का एक बढिय़ा किस्सा उनकी तथा अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती थी। दोनों एक दूसरे की इज़्जत भी बहुत करते थे। राव के बाद वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। राव इससे खुश थे। राष्ट्रपति भवन में ही राव ने नए प्रधानमंत्री वाजपेयी को चिट पकड़ा दी कि ‘सामग्री तैयार है…आपने मेरा अधूरा काम पूरा करना है।’ अधूरा काम जो राव पूरा होना देखना चाहते थे वह परमाणु परीक्षण था लेकिन 1996 में वाजपेयी की पहली सरकार केवल 13 दिन ही रही। जब वह दोबारा 1998 में प्रधानमंत्री बने तो वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण का आदेश दे दिया। वाजपेयी को भारत रत्न मिल चुका है जबकि राव की याद का तिरस्कार किया गया। केन्द्रीय सरकार ने कोई हवाई अड्डा, सड़क, स्टेडियम आदि उनके नाम पर नहीं रखा जो शिकायत चन्द्रबाबू नायडू भी कर रहे हैं कि तेलुगू बिड्डा के साथ सही सलूक नहीं किया गया। गांधी परिवार किसी को माफ नहीं करता जबकि राव अत्यंत योग्य नेता था जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था तथा विदेश नीति की धारा बदल दी थी। अब पीवी नरसिम्हा राव की याद का पुनर्वास हो रहा है। विडम्बना है कि जो काम कांग्रेस के शासन में होना चाहिए था वह कांग्रेस की धुर विरोधी भाजपा के शासन में होने जा रहा है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.