शेम! मुफ्ती मुहम्मद, शेम!
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद पलट गए हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ अपनी वार्ता में उन्होंने आश्वासन दिया था कि कश्मीरी पंडितों की अलग कालोनी के लिए जमीन अधिगृहित की जा रही है पर विधानसभा में उनका कहना था कि अलग टाउनशिप नहीं बनाई जाएगी। उनका कहना था, ‘कश्मीरी पंडित अलग अलग हो कर नहीं रहना चाहते। हम भी इजरायल की तरह यहां अलग बस्ती बसाना नहीं चाहते। राज्य में माहौल खराब करने के लिए यह अफवाह फैलाई जा रही है।’ यह कह कर कि वह अलग नहीं रहना चाहते जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ने साबित कर दिया कि उनका कश्मीरी पंडितों से कोई सम्पर्क नहीं। कश्मीरी पंडित अकेले अपने पुराने घरों में वापिस लौटना नहीं चाहते, उनका हर प्रवक्ता यह बात कह रहा है। और इस सारे मामले में इजरायल कहां से आ टपका? अलगाववादी यासीन मलिक भी कह चुका है कि कश्मीरी पंडितों के लिए अलग कालोनी बनाने से ‘इजरायल की तरह नफरत की दीवार खड़ी होगी।’ यही बात पुराना पापी सईद अली शाह गिलानी भी कह रहा है कि दिल्ली सरकार इजरायल के नक्शे कदम पर चलते हुए कश्मीरी मुसलमानों को दबा रही है जबकि कश्मीरी पंडित इजरायली उपनिवेशी नहीं हैं। वह तो इस जमीन के असली वारिस हैं जिनका इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। पर सवाल तो यह है कि तीनों, मुफ्ती साहिब, गिलानी तथा यासीन मलिक इकट्ठे इजरायल का भूत क्यों खड़ा कर रहे हैं? जो यासीन मलिक और गिलानी ने कहा वह मुफ्ती क्यों दोहरा रहे हैं? तनिक भी हमदर्दी नहीं। शेम! मुफ्ती मुहम्मद, शेम!
एक तरफ मुफ्ती कह रहे हैं कि राज्य में माहौल खराब नहीं होने दिया जाएगा तो दूसरी तरफ यासीन मलिक के साथ उस इजरायल का नाम लेकर जिससे मुसलमान सबसे अधिक नफरत करते हैं, क्या वह खुद माहौल खराब नहीं कर रहे? अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि अलग टाउनशिप बनाने पर केन्द्र कायम है पर उन्हें भी मालूम हो जाएगा कि किस अविश्वसनीय बंदे से उनका पाला पड़ा है। ‘उस पार’ के जिन लोगों का मुफ्ती ने शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले धन्यवाद किया था वह नहीं चाहते कि कश्मीरी पंडितों की वापिसी हो तथा वादी के मुस्लिम स्वरूप में कुछ कमी आए इसलिए सब मिल कर ऐसा माहौल बना रहे हैं कि कश्मीरी पंडित 1989 को याद करते हुए जब बलात्कार, हत्या तथा लूटपाट के बीच उन्हें रातोंरात अपना घर छोडऩा पड़ा था, खुद वापिस आने के लिए तैयार न हों।
मुफ्ती यह छिपाना चाहते हैं कि वास्तव में वह कुछ नहीं करना चाहते केवल मामले को उलझाना चाहते हैं। मामला उलझा कर यह सब ऐसी हालत बनाना चाहते हैं कि वह कह सकें कि अल्पमत समुदाय खुद लौटना नहीं चाहता। 2008 में यूपीए सरकार ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए 1600 करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी लेकिन केवल एक परिवार ही वापिस लौटा। मामला जरूर जटिल है। ऐसा कोई समाधान नहीं जो सबको पसंद हो लेकिन कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की पहली शर्त यह होनी चाहिए कि कश्मीरी पंडितों से पता किया जाए कि वह क्या चाहते हैं? उनकी वापिसी के फैसले का वीटो किसी गिलानी, मलिक, मीरवायज़ या शब्बीर शाह के पास नहीं होना चाहिए। न ही मुफ्ती मुहम्मद सईद के पास होना चाहिए।
मीरवायज़ उमर फारूख का कहना है कि सरकार कश्मीरी पंडितों तथा कश्मीरी मुसलमानों के भाईचारे को खत्म करना चाहती है। मीरवायज़ मुझे माफ करें पर किस ‘भाईचारे’ की बात वह कर रहे हैं? वह भाईचारा कहां था जब रातोंरात कश्मीरी पंडितों को वहां से बाहर निकाला गया था और किसी कश्मीरी मुसलमान, मीरवायज़ सहित, ने उंगली तक नहीं उठाई थी? मैंने जम्मू क्षेत्र में विस्थापितों के कैम्प देखे हैं उनके चेहरे पर दहशत, बेचारगी, बेबसी और निराशा की लकीरें देखी हैं। सब कुछ लुट चुका था। क्या किसी प्रमुख कश्मीरी मुस्लिम नेता ने उन्हें वापिस लाने की ईमानदार कोशिश की थी? अगर नहीं तो किस भाईचारे या किस ‘कश्मीरियत’ की बात वह कर रहे हैं? वह कश्मीरियत कहां थी जब मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से कश्मीरी पंडितों को वहां से चले जाने की धमकी दी जा रही थी? क्या सारे कश्मीरी मुस्लिम नेतृत्व की इस ETHNIC CLEANSING अर्थात् नस्ली सफाई में खामोश सहमति नहीं थी? अंग्रेजी मीडिया का एक हिस्सा भी कश्मीरी पंडितों से कह रहा है कि वह अलग रहने की बात छोड़ कर सबके साथ घुलमिल कर रहें। मैं इन संपादक/पत्रकार सज्जनों से पूछना चाहूंगा कि अगर उन्होंने वह भुगता होता जो इस अभागे समुदाय ने भुगता है तो क्या वह अकेले किसी मुहल्ले या किसी दूरस्थ गांव में बसने को तैयार होते?
समस्या मानवीय है। अढ़ाई दशक से यह लोग अपने घर बार से भटक रहे हैं। उन्हें ऐसी सुरक्षित जगह चाहिए जहां उस समुदाय का बिना खौफ के फिर विकास हो सके। याद रखिए कश्मीरी पंडित देश का सबसे शिक्षित समुदाय है। अपनी संख्या के अनुपात से बहुत अधिक देश के प्रति योगदान है। वह दोबारा बलात्कार, लूटपाट, हिंसा का शिकार नहीं होना चाहते। उन्हें घबराहट है कि अगर वह गांवों या मुहल्लों में बिखरे रहने लगे तो वह आसान शिकार हो जाएंगे इसलिए इकट्ठा रहना चाहते हैं। उनकी इस पीढ़ा को समझने की जरूरत है। कहा जा रहा है कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है पर साथ यह भी निश्चित किया जा रहा है कि यह अधूरा ही रहे, वह वापिस न लौट सकें! उलटा मुस्लिम राय को भड़काने के लिए संदूक से झाड़ कर इजरायल का हौवा खड़ा कर लिया है जबकि हकीकत है कि जो फलस्तीनियों की दुर्गत है लगभग वही कश्मीरी पंडितों की भी है।
अनुपम खेर का कहना है कि ‘पहली स्मार्ट सिटी कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से बनाई जाए। दूसरे इर्दगिर्द घर बना सकते हैं।’ इसमें भी ‘अलग’ आवास की बात कही गई है। यह भावना सारे समुदाय की है। जिन्होंने उन पर अत्याचार किया वह ही अब उनकी वापिसी की शर्तें तय करने का प्रयास कर रहे हैं। पीडीपी के साथ गठबंधन करते वक्त भाजपा ने धारा 370 का मुद्दा पीछे डाल दिया। छ: साल के लिए सत्ता फिसलाऊ बाप-बेटी की जोड़ी को सौंप दी जिन्होंने पहले ही दिन पाकिस्तान तथा मिलिटैंट्स का धन्यवाद कर दिया। अब वह फिर वायदा कर कश्मीरी पंडितों के लिए अलग टाउनशिप के मामले में मुकर रहे हैं। क्या आफत आ जाएगी अगर श्रीनगर के बाहर उनके लिए अलग टाउनशिप बनाई जाए? जमीन तो कश्मीर में ही रहेगी। अब परीक्षा है केन्द्रीय सरकार की। उसका वायदा है कि कश्मीरी पंडितों की सम्मानजनक सुरक्षित वापिसी होगी। यह वायदा एक समय सीमा में पूरा होना चाहिए। स्पष्ट और दृढ़ नीति की जरूरत है। मुफ्ती पर कोई विश्वास नहीं। नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह के नेतृत्व की अवश्य यह परीक्षा है।