एक किसान की मौत
किसानों के लिए आयोजित आम आदमी पार्टी की दिल्ली के जंतर मंतर में रैली में एक किसान ने ही फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली। दिल्ली का मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत, आप के हजारों कार्यकर्ता, पुलिस बल और मीडिया कर्मी सब तमाशा देखते रहे। उसकी मौत के बाद भी आप के नेताओं के भाषण जारी रहे रैली रद्द करने के बारे सोचा ही नहीं गया। केजरीवाल ने भी पूरा लम्बा भाषण दिया जिसमें वह पुरानी शिकायत करना नहीं भूले कि ‘पुलिस हमारे कंट्रोल में नहीं है।’ आप के बाकी नेता किस तरह क्रूर असंवेदनशीलता दिखा रहे थे यह इन बयानों से पता चलता है,
‘यह अरविंद जी की गलती है कि वह फौरन पेड़ पर नहीं चढ़े। अगली बार ऐसा होगा तो मैं मुख्यमंत्रीजी से कहूंगा कि वह पेड़ पर खुद चढ़ें और उस आदमी को आत्महत्या करने से रोकें।’
-आशुतोष
‘यह पुलिस और भाजपा की साजिश है। दोनों किसान रैली को फ्लॉप बनाने में जुटे हैं।’
-कुमार विश्वास
‘पूरी घटना सुनियोजित साजिश है। भाजपा और पुलिस रैली को फ्लॉप बनाने में लगे हैं… गैस्ट टीचर भी इसके लिए जिम्मेवार हैं।’
-मनीष सिसोदिया
आप के बुरे दिन चल रहे हैं। बुद्धि विपरीत हो गई है। एक किसान ने अपनी मजबूरी के कारण आत्महत्या कर ली पर आप के नेता इसका मज़ाक बना रहे हैं और उन्हें यहां भी साजिश नज़र आ रही है। बाद में आशुतोष ने अवश्य माफी मांग ली लेकिन कितना गैर जिम्मेवार तथा असंवेदनशील बयान है कि ‘अगली बार’ अगर कोई आत्महत्या के लिए पेड़ पर चढ़ेगा तो मैं सीएम को उसे उतारने के लिए पेड़ पर चढऩे को कहूंगा। उस किसान की फसल बरसात के कारण बर्बाद हो गई। उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया उसके तीन बच्चे हैं। यह मजबूरी थी कि हताशा में उसने यह उग्र कदम उठाया पर इस पर भी शर्मनाक राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएंगी! सोमनाथ भारती का भी कहना था कि ‘आत्महत्या राजनीति से प्रेरित है।’ क्या कोई राजनीति के कारण भी आत्महत्या करता है? क्या इन लोगों की नस नस में राजनीति इस तरह समा गई है कि इंसानियत खत्म हो गई है? मानवीय दृष्टिकोण रहा ही नहीं, सब कुछ राजनीति है? क्या गजेन्द्र सिंह ने अपना गला इसलिए तुड़वा लिया क्योंकि वह अरविंद केजरीवाल के लिए समस्या खड़ी करना चाहता था? कांग्रेस के नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के इस मूर्ख कथन के बारे क्या कहा जाए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई जानी चाहिए? अगर यही नियम लागू किया जाता तो कांग्रेस का एक भी प्रधानमंत्री नहीं बचता। पिछले एक दशक में 2 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है, कोई भी प्रदेश अछूता नहीं।
किसानों की बर्बादी की कहानी आज की नहीं बहुत पुरानी है। अगर एक दशक में दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं तो इसके लिए उस सरकार को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता जो 11 महीने पहले सत्ता में आई है। कांग्रेस को शायद यह बात समझ आ गई इसलिए पहले राजनीति करने के प्रयास के बाद वह पीछे हट गई है। भूमि अधिग्रहण विधेयक को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया जा रहा है पर अभी तो मालूम नहीं कि यह कब कानून बनेगा, बनेगा भी या नहीं, और इसकी अंतिम शकल क्या होगी पर इतना प्रचार किया गया कि जिस तरह यह सरकार किसान का गला घोंटने जा रही है। इस वक्त असली समस्या बेमौसम की बरसात तथा कई जगह ओलावृष्टि है जिसने फसल बर्बाद कर दी है। कर्ज में डूबे किसान के लिए यह वह अंतिम तिनका है जिसने ऊंट की पीठ तोड़ दी है। राहुल गांधी कह रहे हैं कि किसान को हताश होने की जरूरत नहीं क्योंकि कांग्रेस उनके साथ है लेकिन किसानों ने तो अमेठी में भी आत्महत्या की है। उत्तराखंड की पैदल यात्रा पर निकले राहुल गांधी अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी के किसान परिवारों के दुख दर्द में शामिल क्यों नहीं हुए? हमारा राजनीतिक वर्ग खुद को दूसरे से चतुर दिखाने में इस तरह व्यस्त है कि होशो-हवास उड़ गए हैं। मीडिया के कैमरे उन्हें इस तरह नचा रहे हैं जिस तरह मदारी बंदर को नचाता है। पर इनके लड़ाई झगड़े देश को उत्तेजित रखते हैं इस मामले में मीडिया को भी अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए।
जरूरत है कि आपस में मिल कर तत्काल समस्या का समाधान निकाला जाए ताकि दूसरे गजेन्द्र सिंह ऐसा करने की कोशिश न करें। संसद से यह आवाज उठनी चाहिए कि किसान को उग्र कदम उठाने की जरूरत नहीं क्योंकि देश की सर्वोच्च संस्था उनके हित की निगरानी करेगी। पर सबसे अधिक जिम्मेवारी नरेन्द्र मोदी की सरकार की है क्योंकि वह सत्तारूढ़ है। उन्हें देश में आ रही आत्महत्याओं की बाढ़ को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। राजनीतिक वाद-विवाद या तू-तू मैं-मैं की अब गुंजाइश नहीं रही। सरकार को यह भी समझ लेना चाहिए कि अगर किसान इसी तरह आत्महत्या करते रहे तो उभर रही महाशक्ति की जो छवि प्रधानमंत्री बाहर बनाने की कोशिश कर रहे हैं वह तार-तार हो जाएगी। इसलिए चाहे एमसीपी में बढ़ौत्तरी हो या कर्ज माफी, जमीन पर यह तत्काल नज़र आने चाहिए। गजेन्द्र सिंह कोई आम किसान नहीं था वह तो फेसबुक पर भी था। अच्छा खासा घर-बार है। अगर वह भी अंतिम कदम उठाने के लिए मजबूर हो गया तो समझ लीजिए कि पानी सर तक पहुंच रहा है।