
भाजपा मुक्त पंजाब?
धूरी उपचुनाव में अकाली दल का उम्मीदवार जीत गया। सुखबीर सिंह बादल उपचुनाव जीतने के माहिर भी हैं। तीन कांग्रेसी विधायकों से इस्तीफा दिलवा कर उन्होंने उपचुनाव करवाए और तीनों जीतने में सफल रहे। कांग्रेस ने यह प्रभाव दिया कि उसका घर बुरी तरह से विभाजित है लेकिन अकाली दल की यह जीत कांग्रेस से भी अधिक भाजपा के लिए बुरी खबर है। विधानसभा में अकाली दल को पूरा बहुमत मिल गया है तथा उसे भाजपा के सहारे की जरूरत नहीं रही। अगर वह चाहे तो भाजपा मुक्त सरकार चला सकता है। लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा का रवैया तीखा हो गया था। कई मामलों में झड़पें हो चुकी हैं। मंत्री अनिल जोशी अपनी सरकार को ‘औरंगजेब का राज’ कह चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी तथा अमित शाह दोनों एक बार पंजाब में नशे का मुद्दा उठा चुके हैं। एक दो बार तो भाजपा के मंत्री सरकार से बाहर निकलने की धमकी भी दे चुके हैं। उन्हें इसका जवाब मिल गया। भाजपा सरप्लस अर्थात् अतिरिक्त हो गई है। यह नहीं कि अकाली दल भाजपा का साथ छोड़ देगा। कम से कम प्रकाश सिंह बादल के होते यह नहीं होगा। पर उनकी युवा पीढ़ी को फर्क नहीं पड़ता कि भाजपा साथ रहे या नहीं। शहरों में भाजपा की हालत खराब करने में भी युवा अकाली नेतृत्व का बड़ा हाथ है। लेकिन बादल साहिब केन्द्र को साथ रखने की जरूरत समझते हैं। फंड उधर से आते हैं तथा अकाली दल की कमजोरी, पंजाब में फैला नशा, की जांच केन्द्र के हाथ में है इसलिए भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ अच्छे रिश्ते रखते हुए भी पंजाब में भाजपा को उसकी जगह दिखा दी जाएगी।
असली बात है कि भाजपा हाईकमान ने ही पंजाब में अपनी पार्टी की कुर्बानी दे दी। एक बार अवश्य नशे के खिलाफ अभियान के बल पर भाजपा ने अकाली दल को आंखें दिखानी शुरू की थीं पर अमित शाह ने अपनी अमृतसर रैली रद्द कर सारी हवा निकाल दी। अब मई के शुरू में वह फिर पंजाब आ रहे हैं देखना है कि वह पार्टी में फिर से जान फूंक सकेंगे या नहीं? जहां तक सदस्यता अभियान का सवाल है 20 लाख सदस्य बनाने का दावा है पर जमीन पर तो कोई प्रभाव नज़र नहीं आता। अगर सुधार नहीं होता तो दिल्ली वाली हालत होगी। वह हालत नहीं होगी जो वहां भाजपा की हुई थी, वह हालत होगी जो वहां कांग्रेस की हुई थी। पंजाब भाजपा को तीन तरफ से मार पड़ रही है। एक, अकाली नेतृत्व का रवैया सहयोगपूर्ण नहीं है वह हर वक्त भाजपा को दबाव में रखना चाहते हैं। भाजपा को यहां दूसरी मार उसके अपने हाईकमान से पड़ रही है जिसने प्रदेश भाजपा को अकाली दल को आउटसोर्स कर दिया। बादल केन्द्र में भाजपा को समर्थन देते हैं और इसकी कीमत पंजाब में वसूल करते हैं। प्रदेश भाजपा उन सभी नेताओं के राजनीतिक कैरियर का कब्रिस्तान है जिन्होंने अकाली नेतृत्व को आंखें दिखाने की जुर्रत की थी। लक्ष्मीकांता चावला, बलबीर पुंज, मनोरंजन कालिया, नवजोत सिंह सिद्धू आदि एक-एक कर रास्ते से हटा दिए गए। बादल साहिब बहुत उदारवादी नेता हैं पर जब उनके या उनके पुत्र की राजनीति को चुनौती मिलती है तो बिलकुल बेरहम हैं। दोनों में अंतर इतना है कि बादल साहिब का तरीका अधिक सफसटिकेटेड है। तीसरी मार जनता से पड़ रही है जो समझती है कि चार कुर्सियों के लिए भाजपा ने अपने आत्मसम्मान से समझौता कर लिया है।
अकाली दल यह उपचुनाव जीत गया पर इसका अर्थ नहीं कि लोगों ने उनके शासन पर ठप्पा लगा दिया है। 2017 के चुनाव अलग होंगे। सेहतमंत्री सुरजीत सिंह ज्याणी का कहना है कि सूबे में नशे की हालत इतनी खराब है कि स्कूलों में 8वीं के दाखिले के लिए डोप टेस्ट जरूरी किया जाए। यह बात उन्होंने अपने पूरे होशो हवास में कही है। ज्याणी ने यह बात उस वक्त कही जब उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल कह रहे हैं कि पंजाब में नशे की समस्या नहीं है, केवल बदनाम किया जा रहा है। हकीकत है कि नशा पंजाब में बड़ी समस्या है इससे सरकार भाग नहीं सकती। दूसरी बड़ी समस्या आर्थिक है। कालेजों को डेढ़ वर्षों से ग्रांट नहीं दी जा रही। सरकारी जमीन गिरवी रख कर्ज लिया जा रहा है। उद्योगपति चीख रहे हैं कि वैट रिफंड नहीं मिल रहा। 17,000 कारखाने बंद हैं। बेरोजगारी की हालत है कि प्रदर्शन कर रही गर्भवती महिला टीचर रजनी को उठा कर पुलिस थाने ले गई। उसका वहां गर्भपात हो गया। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। नौकरी के लिए चार दिन सीएम हाउस के चक्कर काटने के बाद परेशान गुरप्रीत ने सीएम हाउस के सामने खुद को पेट्रोल डाल कर आग लगा ली थी। पिछले एक साल से 250 रुपए पैंशन न मिलने पर खुद को आग लगाने वाले 83 वर्षीय सोमनाथ ने भी दम तोड़ दिया। उल्लेखनीय है कि हरियाणा ने बुढ़ापा पैंशन 1000 रुपए से 1200 रुपए कर दी है लेकिन पंजाब में 250 रुपए पैंशन हासिल करने के लिए खुद को आग लगानी पड़ती है! कई सरकारी प्रिंसीपलों को तीन-तीन, चार-चार कालेज संभाल दिए गए हैं। एक प्रिंसीपल ने तो और कालेज संभालने से इन्कार कर दिया कि वह अपनी जिम्मेवारी से न्याय नहीं कर सकते।
पर अकाली दल के पास नेतृत्व है और पूरा संगठन है। साधन सम्पन्न पार्टी है। अकाली दल की बड़ी ताकत यह भी है कि उनकी ‘न्यूसैंस वैल्यू’ बहुत है। अगर आप उनको दबाने की कोशिश करेंगे तो गढ़े मुर्दे उठा लिए जाएंगे जो भावनात्मक हैं पर समाज को विभाजित करते हैं। जब ड्रग्स को लेकर दबाव डाला गया तो मुख्यमंत्री बादल तथा उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने जेलों में बंद सिख कैदियों का मामला उठा लिया जिनमें पांच वह आतंकवादी हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के आरोपी हैं। जब तक अकाली दबाव में नहीं आए यह मसला उठाया नहीं गया, अब फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है क्योंकि दबाव हट गया है। जरूरत पड़ी तो फिर उठा लेंगे।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा पारित कैलेंडर में इंदिरा गांधी के हत्यारों की फांसी देने वाले दिन को ‘शहीदी दिवस’ कहा गया है। अकाली दल धारा 25बी में संशोधन की मांग उठा चुका है। सिख अलग कौम जैसे मुद्दे भी वह उठा चुके हैं और आगे भी उठा सकते हैं। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में आतंकवादियों की याद में स्मारक बना कर अकाली नेतृत्व ने बता भी दिया कि हमसे झगड़ा लेना आसान नहीं होगा। हम उग्रवाद को उठाने की क्षमता रखते हैं। अब फिर बादल साहिब धमकी दे रहे हैं कि अगर केन्द्र की नीतियां नहीं बदलीं तो प्रदेश वापिस 1980 और 1990 के दशक में लौट सकता है। इस धमकी का कोई औचित्य नहीं है। पंजाब में ऐसी कोई स्थिति नहीं। वास्तव में यह तो इस सरकार की बड़ी कामयाबी है कि यहां बिलकुल शांति तथा सौहार्द्र है। जरूर किसी मसले पर केन्द्र से प्रकाश सिंह बादल नाराज हैं या उनकी कोई मांग पूरी नहीं हो रही। अकाली नेतृत्व आश्वस्त है कि कांग्रेस तथा आप खुद से उलझ रहे हैं और भाजपा किसी गिनती में नहीं है लेकिन ऐसी विकल्पहीनता की स्थिति बहुत देर नहीं रहती। बैंस ब्रदर्स जैसी कोई ताकत उभर सकती है जिन्हें लोगों की शिकायत उठाने के कारण सख्त धाराओं में जेल में डाल कर अकाली नेतृत्व ने ही हीरो बना दिया है।