बादलां दी बस
पंजाब में मोगा से बाघापुराना का 20 किलोमीटर का सफर कर रही मां-बेटी के साथ बस के अंदर हैवानियत तथा बाद में उन्हें बस से बाहर फेंकना जिसमें 14 साल की लड़की की मौत हो गई और मां बुरी तरह से घायल है, ने एक बार फिर दिल्ली के कुख्यात निर्भया कांड की याद ताजा करवा दी है। अंतर एक यह है कि दिल्ली की घटना आधी रात की थी जबकि पंजाब की घटना दोपहर तीन तथा चार बजे के बीच की है। पर दूसरा बड़ा अंतर और है। दिल्ली वाली बस का मालिक कोई अन्जान व्यक्ति था जबकि पंजाब की बस ऑर्बिट कम्पनी की बस थी जिसका मालिक बादल परिवार है। पहले हरसिमरत कौर बादल ने यह कह कर मामला उलझाने का प्रयास किया है कि देखने की जरूरत है कि बस किस की है पर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने साफ माना कि ‘बदकिस्मती से यह बस हमारी है।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘वह खुद ट्रांसपोर्ट कम्पनी के दफ्तर नहीं जाते और न ही उनकी रुचि है पर मैं सुखबीर से बात करूंगा।’
इस शर्मनाक घटना से सारा पंजाब स्तब्ध है। लोगों में गुस्से की लहर है। बादल के शासन में बादल की बस में मां-बेटी की ऐसी हालत बना दी गई कि बेटी तो मारी गई और मां गंभीर हालत में अस्पताल में पड़ी है। बादल परिवार की तो जिम्मेवारी है कि प्रदेश में महिलाओं की रक्षा करे उनकी बस में ऐसी बदमाशी कैसे हो गई? जुर्रत कैसे हुई? कानून का डर क्यों नहीं है? ऑर्बिट की बसों को लेकर बार-बार शिकायतें मिलती रही हैं। आम शिकायत है कि क्योंकि मुख्यमंत्री की बसें हैं इसलिए पुलिस शिकायत दर्ज करने में आनाकानी करती है। एक यात्री ने जो शिकायत दर्ज करवाना चाहता था, ने बताया कि उसे जवाब मिला कि ‘बस बादल साहिब दी है। इस पर कार्रवाई नहीं हो सकती।’ रोडवेज के कर्मचारियों तथा बादल परिवार की बसों के कर्मचारियों के बीच अकसर झड़पें हो चुकी हैं। ऑर्बिट के कर्मचारियों का रवैया होता है कि ‘सैंया भए कोतवाल डर काहे का!’ उन्हें मालूम है कि उनके मालिकों की सरकार है इसलिए बेपरवाह हो जाते हैं जैसे ताजा घटना से भी पता चलता है। यह भी आम शिकायत है कि पंजाब रोडवेज की बसों के घाटे का बड़ा कारण ऑर्बिट बसें हैं जिनके पास सभी लाभदायक रूट हैं जबकि घाटे वाले रूट पर सरकारी बसें चलाई जाती हैं। जबसे बादल परिवार सत्तारूढ़ हुआ है तब से ऑर्बिट कम्पनी ने कितनी तरक्की की है यह देखने की दिलचस्प बात होगी। नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक चलने वाली बसें भी बादल परिवार की हैं और किसी कम्पनी की बसें इस रूट पर नहीं चल सकतीं। मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री का परिवार बसें चलाएं जिनकी सरकारी बसों के साथ स्पर्धा हो, यह अनुचित है। conflict of interest अर्थात् हितों का टकराव है। मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री रहते आपकी जिम्मेवारी है कि सरकारी बसें सही चलें जबकि ऑर्बिट के मालिक के तौर पर आप चाहेंगे कि आपकी अपनी बसें लाभ में चलें। और पंजाब में हरेक को मालूम है कि इस दौड़ में सरकारी बसें पिछड़ गईं। दूसरी बसों के बारे नियम है कि शीशे काले नहीं होंगे, पर्दे नहीं लगेंगे लेकिन ऑर्बिट की बसें आराम से इन नियमों का भी उल्लंघन करती हैं। यह भी महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि जो लोग सरकार में हैं उनका अपना बिजनेस भी होना चाहिए? पंजाब के बारे तो सर्वविदित है कि चाहे ट्रांसपोर्ट हो, रेत तस्करी हो, केबल, होटल या शराब व्यवसाय हो, इसमें प्रभावशाली सत्तारूढ़ लोगों का हाथ है।
इसी बेपरवाही का नतीजा यह ताजा घटना है जिसने बादल परिवार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। प्रदेश में इतनी जबरदस्त प्रतिक्रिया भी इसलिए हुई है क्योंकि ऑर्बिट बदनाम है। अगर पहले इनसे कानून का पालन करवाया जाता तो बादल परिवार को यह असुखद दिन न देखने पड़ते। आरोपी अवश्य पकड़ लिए गए और उन पर कत्ल तथा छेडख़ानी के आरोप दर्ज किए गए लेकिन सवाल तो यह है कि इस बस कम्पनी के लोग इतने दबंग कैसे हो गए कि खुद को कानून से ऊपर समझने लगे? यह सवाल सारा पंजाब पूछ रहा है। यह तो गुंडाराज वाली स्थिति है। बादलों की बस में महिलाएं सुरक्षित नहीं? सीएम की बस में सफर करने से उनकी इज्जत खतरे में पड़ जाएगी? बस कम्पनी के मालिक रहते बस के अंदर क्या होता है यह उनकी जवाबदेही बनती है। याद रखना चाहिए कि निर्भया मामले के बाद बस के मालिक के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। दिल्ली में उबेर टैक्सी के अंदर एक महिला से बलात्कार के बाद अमेरिका में रह रहे इस मल्टीनेशनल कम्पनी के मालिक पर भी केस दर्ज किया गया। पंजाब में स्कूली बसों में हुए हादसों के बाद स्कूलों के प्रिंसीपलों को बताया गया कि अगर कुछ हो गया तो वे जिम्मेवार होंगे।
बादल परिवार ने बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है। यह सबसे गंभीर है। पहली चुनौतियां राजनीतिक थीं यह नैतिक है। प्रभावशाली लोगों के संरक्षण में मां-बेटी के साथ हैवानियत हो गई। अब भी लोगों को सुरक्षा देने की जगह ऑर्बिट की बसों के आगे पीछे एस्कार्ट चल रही है जैसे दिल्ली-लाहौर बस के साथ चलती है। अजीब स्थिति है कि जिस कम्पनी की बस में मां-बेटी के साथ घोर बदसलूकी की गई उसी की बसों, ड्राइवर, कंडक्टर, दफ्तर सभी को सरकार सुरक्षा दे रही है।
कई बार इंसान जरूरत से अधिक आत्मविश्वस्त हो जाता है कि मैं इतना शक्तिशाली हूं, विधानसभा में पार्टी का बहुमत है, मुझे कौन हाथ लगा सकता है पर सत्ता के मद में तथा बेपरवाही के इस माहौल में एक घटना ऐसी घट जाती है कि आप ही कटघरे में खड़े नजर आते हैं।
(यह लेख बादल की बसें हटाने से पहले लिखा गया था पर जो लिखा गया वह अब भी प्रासंगिक है)
Badalan di bus,