वर्षगांठ पर राज-क्षमा का तोहफा दीजिए
जयललिता के बरी होने तथा सलमान खान की सजा पर लगी रोक तथा उसे मिली जमानत से देश हैरान है। यह नहीं कि कुछ गैरकानूनी हुआ है। असंतोष इसलिए है कि न्यायिक प्रणाली आम आदमी के लिए अलग चलती नज़र आ रही है और प्रभावशाली नेताओं तथा सैलिब्रिटी के लिए अलग। जयललिता का आय से अधिक सम्पत्ति रखने का मामला 19 वर्ष चला पर वह 4 मिनट में बरी हो गई। मुकद्दमा झटके खाता चला पर बरी वह फटाफट हो गई। विशेष अभियोजक शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें हाईकोर्ट के सामने अपनी बात रखने का मौका ही नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने अपने विवेक में जयललिता को 4 साल की कैद तथा 100 करोड़ रुपए जुर्माना लगाया था पर भ्रष्टाचार का वह मामला जिसके गंभीर सामाजिक तथा राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं अभियोजक की बात सुने बिना तय कर दिया गया। इसीलिए आम आदमी भौचक्का रह गया है। यह जो आभास देशभर में फैल गया है कि न्याय के दो मापदंड हैं इसे गंभीरता से लेना चाहिए नहीं तो न्यायिक प्रणाली से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। जेलों में 2.7 लाख लोग ठूंसे हुए हैं जिनके मामले विचाराधीन हैं। यह जमानत से महरूम हैं। इनकी कोई सुनवाई नहीं पर जो महाभ्रष्टाचार की दोषी है वह कुछ ही मिनटों में बरी हो जाती है और जो गैर इरादतन हत्या का दोषी है उसे 13 वर्ष के बाद सजा मिलने के कुछ ही घंटों के भीतर जमानत भी दी गई और वह अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए कश्मीर भी पहुंच गया। वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम्म ने भी शिकायत की है कि ‘देश की जेलों में दो सौ की चोरी और हजार रुपए की रिश्वत लेने वाले लाखों लोग सिर्फ इसलिए कैद हैं क्योंकि उनके पास न्याय व्यवस्था की मैनेजमेंट के पैसे नहीं हैं।’ पर सलमान खान का मामला लम्बे वक्त के लिए टल गया है। शायद 13 साल और लटक जाए! जज साहिब ने तेजी से मामला निबटाने की मिसाल कायम की है पर क्या यही उदारता या यही तत्परता उस वक्त दिखाई जाती अगर दोषी एक मामूली ट्रक ड्राइवर होता? वह बेचारा तो ऐसे वकील रख ही नहीं सकता जो एक एक पेशी के लाखों रुपए लेते हैं। दुख यह है कि आभास बल पकड़ेगा कि जो सिस्टम है, व्यवस्था है उसकी रफ्तार रईस तथा ताकतवर के लिए अलग होती है। वह कितना भी भ्रष्टाचार कर लें, एक सोये हुए आदमी को मार दें तथा चार अन्य लोगों को अपंग कर दें, वह कुछ ही घंटों के बाद बाहर निकल सकते हैं। जिस सलमान खान को तीन मामले में कुल 11 साल की सजा हो चुकी है, उसने केवल 6 दिन जेल में बिताए हैं। उसे ‘न्याय’ मिल गया पर जो मारा गया उसके परिवार तथा जो उसकी कार के नीचे कुचले गए उन्हें कब न्याय मिलेगा? और यह वह व्यक्ति है जो इरादतन हत्या का अपराधी ही नहीं इरादतन अपराधी भी है क्योंकि उसके खिलाफ चार और मामले भी वर्षों से लंबित हैं जिनसे वह बचता आ रहा है।
28 सितम्बर 2002 की घटना जब उसने शराबी हालत में अपनी कार सड़क के नजदीक सोये हुए लोगों पर चढ़ा दी जिसमें एक व्यक्ति मारा गया था और चार अन्य घायल हो गए थे और खुद सलमान खान वहां से भाग गया था, बताती है कि फिल्म स्टार क्चद्गद्बठ्ठद्द द्धह्वद्वड्डठ्ठ में अधिक विश्वास नहीं रखता। 2006 में राजस्थान में काला हिरण मारने का मामला भी अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इससे पहले अभिनेत्री ऐश्वर्या राय को परेशान करने के बाद उसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज करवाई गई। कई लोगों के साथ वह शारीरिक हिंसा कर चुका है लेकिन बालीवुड का मानना है कि भाईजान बंदा बहुत अच्छा है! दिल सोने का है! यही बात तब कही गई थी जब एक और ‘भाई’ संजय दत्त को सजा हुई थी। तब भी कहा गया कि बेचारा संजू गलती कर गया, वह तो अभी भी नादान है। क्या आतंकवादियों से मेलजोल तथा उन्हें एके 47 सप्लाई करना मात्र नादानी है? यह भी उल्लेखनीय है कि संजय दत्त को भी परोल के मामले में बड़ी उदारता दिखाई गई।
बालीवुड की चिंता तथा सहानुभूति स्वभाविक है। करोड़ों रुपए का दांव लगा है इसीलिए अपने ‘बैड व्वायज़’ को समर्थना देना मजबूरी है लेकिन क्या बालीवुड उन गरीब लोगों के बारे भी सोचेगा जो सलमान खान की शराबी लापरवाही का शिकार हुए हैं? अब्दुल रऊफ का कहना है कि फैसला तो ठीक है पर मेरा टूटा पैरा तो ठीक नहीं होगा। वह 2-3 घंटे से अधिक काम नहीं कर सकता। घटना में मारे गए नूरुल्ला खान के परिवार को अभी तक एक रुपया मुआवजा नहीं मिला। विधवा को घरों में काम करना पड़ा था। फिल्मों का हीरो सामान्य जिन्दगी में इतना बुज़दिल क्यों साबित हुआ कि लोगों की मदद करने की जगह वहां से भाग निकला? और कायरता की हद है कि आगे आकर यह स्वीकार करने की जगह कि मैंने यह हादसा किया है बारह वर्ष के बाद अपने ड्राइवर अशोक सिंह को आगे कर दिया जिस गरीब ने स्वामीभक्ति में कबूल किया कि हादसा उसने किया है, उसके मालिक ने नहीं।
गायक अभिजीत का मारे गए तथा घायल लोगों के बारे कहना है, ‘कुत्ता रोड पर सोयेगा तो कुत्ते की मौत ही मरेगा। रोड गरीब के बाप की नहीं होती।’ सड़क बिगड़े रईसों की भी नहीं है कि शराबी हालत में वह अपनी गाड़ी के नीचे गरीब आदमी को कुचल दें। जो पेवमेंट पर सोता है वह उसकी मजबूरी है। वह न चेन्नई की पोएस गार्डन और न ही मुम्बई के गलैक्सी अपार्टमेंट में रह सकते हैं पर ऐसे ही लोग आपकी फिल्में देख तथा आपके गाने सुन आपकी आलीशान कोठियां बनवाते हैं। यह याद रखिए। सलमान खान के साथ इतनी सहानुभूति व्यक्त कर तथा जो मारे गए उनकी परवाह न कर बालीवुड ने भी खुद को आम लोगों से अलग कर लिया है। राजकपूर या ख्वाजा अहमद अब्बास या बिमल रॉय या सत्यजीत रॉय या गुरुदत्त जैसे निर्देशक नहीं रहे जिन्हें समाज की चिंता थी। आज का फिल्म उद्योग तथा उसकी फिल्में भी उसी तरह भगौड़ा हैं जैसे उनका यह भाईजान है।
अंत में : एक साल पूरा कर रही नरेन्द्र मोदी की सरकार क्या उन 2.7 लाख अंडरट्रायल अर्थात् विचाराधीन कैदियों के बारे सोचेगी जो छोटे-छोटे मामलों में वर्षों से जेलों में पड़े सड़ रहे हैं क्योंकि उनके पास जयललिता या सलमान खान जैसे साधन तथा प्रभाव नहीं हैं? वह महंगे वकील नहीं कर सकते जो कानून में छिद्र निकाल सकें। जिनके मामले मामूली हैं उन्हें ष्टरुश्वरूश्वहृष्टङ्घ अर्थात् सामूहिक माफी देने के बारे इस सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। एक साल पूरा करने पर इन्हें राजक्षमा देकर यह सरकार देश को यादगार तोहफा दे सकती है।