तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी!
सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्देश कि सरकारी विज्ञापनों पर नेताओं तथा मंत्रियों की फोटो नहीं छपेगी और केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मुख्य न्यायाधीश के फोटो ही छपेंगे, को लोगों ने काफी पसंद किया है। सरकारी कामकाज या उपलब्धियों का प्रचार करने के बहाने नेता अपना प्रचार करते हैं। पंजाब में विशेष तौर पर यह सभी सीमाएं लांघ गया है। ऐसा आभास मिलता है कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल को अपनी तस्वीरों से इतना प्रेम है कि हर सरकारी विज्ञापन के साथ उनकी बड़ी बड़ी तस्वीरें प्रकाशित की जाती रही हैं। यह मामला तो इतना हास्यस्पद बन गया है कि सरकारी एम्बूलैंस 108 जिसके पैसे केन्द्र सरकार देती है, उस पर भी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की तस्वीर चपका दी गई ताकि आभास मिले कि जैसे सब कुछ बादल साहिब की मेहरबानी से हो रहा है। माई-बाप सरकार है! अगर छात्राओं को साइकिल या गरीबों को कार्ड बांटे जाएंगे तब भी उन पर नेताओं की तस्वीर चिपकी होगी। पंजाब में हमने वह तमाशा भी देखा जब बादल सरकार के गठन के बाद लुधियाना में मैट्रो शुरू करने के पूरे पृष्ठ के बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए जिसमें बादल पिता-पुत्र के खिलखिलाते हुए चित्र लगाए गए। औपचारिकता पूरी करने के लिए तीसरे नम्बर पर किसी न किसी भाजपा मंत्री का चित्र भी लगवा दिया जाता है। बादल तथा सुखबीर दरबार में किस भाजपा मंत्री का महत्व अप है और किसका डाउन है, यह विज्ञापन पर लगी तस्वीर से पता चल जाता है। लेकिन बात मैं मैट्रो की कर रहा था। कहां है वह मैट्रो? अब तो पंजाब सरकार भी मान गई है कि लुधियाना में मैट्रो चलाना लाभदायक नहीं रहेगा। अर्थात् मैट्रो की घोषणा करने वाले बादल पिता-पुत्र के चित्र वाले विज्ञापन व्यर्थ गए, सरकारी खजाने का फिज़ूल इस्तेमाल किया गया।
अगर सही काम किया जाए, सही सरकार दी जाए और लोग संतुष्ट हों तो इतने उच्च स्तरीय प्रचार की जरूरत नहीं पड़ती। लोगों की नाराजगी को दबाने के लिए मुस्कराते सब्जबाग दिखाए जाते हैं। न हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और न ही हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल इस तरह व्यक्तिगत प्रचार में विश्वास रखते हैं। सरकारी विज्ञापनों में इनकी शकल साल में एकाध बार ही देखी जाती है। पंजाब सरकार जरूर दुखी है क्योंकि उसके हर विज्ञापन में मुख्यमंत्री बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल, लोक सम्पर्क मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया तथा किसी बेचारे भाजपा मंत्री की तस्वीर लगी होती है। पंजाब सरकार ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार तथा शिवसेना भी नाखुश हैं। आगे से जनता इन चेहरों को देखने से महरूम रह जाएगी। अफसोस! तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला नहीं सकेगी! जनता तो यह ‘धक्का’ बर्दाश्त कर जाएगी लेकिन क्या नेता रोज़ अपनी तस्वीर देखे बिना जी सकेंगे?
जहां सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की भावना सही है वहीं यह फैसला कई सवाल भी उठाता है। चाहे यह फिज़ूलखर्ची ही है पर हमारे जैसे लोकतंत्र में क्या यह मामला निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर नहीं छोड़ देना चाहिए कि किसकी तस्वीर लगे किसकी नहीं? और यह कैसे फैसला ले लिया कि केवल तीन, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के ही चित्र लगेंगे? उपराष्ट्रपति या लोकसभाध्यक्ष के चित्र क्यों न लगें? अगर राष्ट्रपति का चित्र लग सकता है तो प्रदेश में राज्यपाल का क्यों नहीं? क्या एक त्रिमूर्ति को अनुमति देकर सुप्रीम कोर्ट खुद इनके व्यक्तिगत प्रचार करने की छूट नहीं दे रहा? क्या हमारे जैसे लोकतंत्र में ऐसी सर्वोच्चता कायम करना सही होगा? प्रधानमंत्री तो एक प्रकार से सुप्रीम लीडर बन जाएंगे क्योंकि हर सरकारी विज्ञापन पर वह ही वह नज़र आएंगे। हर जगह राष्ट्रपति की तस्वीर नहीं लग सकती और न ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ही तस्वीर लगनी चाहिए। बाकी मंत्री महत्वहीन हो जाएंगे। वैसे भी सरकारी विज्ञापनों पर मुख्य न्यायाधीश की तस्वीर लगना कितना जायज़ होगा यह देखते हुए कि न्यायालय तो इन सब पचड़ों से ऊपर है?