Suit boot ki rajniti

सूट-बूट की राजनीति

हमारी राजनीति किस तरह कई बार फिज़ूल बन जाती है यह ‘सूट-बूट’ के जुमले के लगातार प्रयोग से पता चलता है। विदेशों में 56 दिन के अज्ञातवास से लौटे राहुल गांधी को इस संसद अधिवेशन में बहुत आक्रामक अवतार में देखा गया। शायद 56 इंच और 44 सीटों से होश ठिकाने आ गई है। हाल ही हम ब्रिटेन चुनाव देख कर हटे हैं जहां पराजित दोनों नेताओं, एड मिलिबैंड तथा निक कलैग ने नैतिक जिम्मेवारी समझते हुए इस्तीफा दे दिया। गांधी परिवार ऐसी कुर्बानी में विश्वास क्यों नहीं रखता? उलटा राहुल तो भारत की खोज पर निकले हुए हैं। जैसे नकारात्मक कभी नरेन्द्र मोदी तथा अरविंद केजरीवाल थे, ऐसे ही राहुल गांधी भी कोशिश कर रहे हैं। ऐसा आभास भी मिलता है कि परिवार ने अपना भाषण-लेखक बदल लिया है और उनके कई कथन उसी तरह नाटकीय हैं जैसे कभी सलीम-जावेद के डायलॉग हुआ करते थे। राहुल का कहना है कि मोदी को किसान-मजदूर की चिंता नहीं। यह मार्क्सी-लेनिनवादी शब्दावली तो अब मास्को तथा बीजिंग में भी कोई नहीं बोलता। सबसे चर्चित राहुल का यह कहना है कि सरकार उन लोगों को किसान की जमीन बेचना चाहती है जो सूट बूट डाल कर आते हैं। राहुल का कहना भी है कि यह उद्योगपतियों की सरकार है, बड़े लोगों की सरकार है। उन्होंने यह भी कह दिया कि ‘पहले चोर रात के समय आते थे अब वह दिन दहाड़े आते हैं। सबके सामने आते हैं, सूट बूट डाल कर आते हैं।’ कहना यह ही चाहते थे कि किसान को लूटने का प्रोग्राम बना दिया गया है। उन्हें अपना सूट बूट वाला जुमला इतना पसंद आया कि इसे उन्होंने बार-बार दोहराया लेकिन सवाल तो है कि सूट बूट किसने नहीं डाला? जवाहरलाल नेहरू के बारे तो मशहूर था कि शुरू में उनके सूट लंदन से सिल कर आते थे, बाद में उन्होंने अचकन डालना शुरू कर दिया था। राजीव गांधी भी विशेष मौकों पर सूट डालते थे फिर इसकी इतनी चर्चा क्यों? राहुल शायद वर्गीय भिन्नता बताना चाहते थे क्योंकि देश के अंदर वह जीन्स तथा कुर्ते में नज़र आते हैं पर वह खुद भी सूट बूट डाल चुके हैं। जब वह विदेश यात्रा पर जाते हैं तो महंगे फर्स्ट या बिजनेस क्लास में सफर करते हैं चाहे पंजाब में किसान की फसल देखने के लिए सफर जनरल क्लास में करने का दिखावा किया गया। साथ थे ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्हें अभी भी ‘महाराजा’ कहा जाता है।
अति विशिष्ट वर्ग में जन्मे पले और अभी भी विशिष्ट क्लब के सदस्य होने के नाते राहुल गांधी का खुद को आम तथा भाजपा को सूट बूट वाले की शुभचिंतक साबित करने का प्रयास सफल नहीं होगा क्योंकि समस्या उनके घर में है। इस समस्या का नाम राबर्ट वाड्रा है। चाहे पिछली कांग्रेस की हुड्डा सरकार ने बनावटी कमेटी बना कर राबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट दे दी थी लेकिन लोगों में तो यह चर्चा खत्म नहीं हुई कि अपने ससुराल परिवार के प्रभाव का इस्तेमाल कर राबर्ट वाड्रा लाखों रुपए की पूंजी से हजारों करोड़ रुपए के मालिक बन गए। हुड्डा सरकार हर वक्त उन पर मेहरबान रही आखिर परिवार को काबू रखना था। और परिवार भी स्वेच्छा से काबू हो गया। अब हरियाणा सरकार ने सोनिया गांधी के दामाद तथा डीएलएफ के बीच भूमि सौदों की जांच करवाने का फैसला किया है जिसके आयोग बैठाया गया। भाजपा के मुखर मंत्री अनिल विज ने ट्वीट किया है कि ‘राहुल गांधी के सूटेड बूटेड जीजाजी के घोटालों की जांच तो जरूर होगी।’ जिस पत्रकार सम्मेलन में आयोग की घोषणा की गई उसमें अशोक खेमका भी मौजूद थे जिन्होंने 2012 में चकबंदी विभाग के महानिदेशक रहते हुए राबर्ट वाड्रा के भूमि सौदों को गैरकानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया था। इस फैसले को हुड्डा सरकार ने एक कमेटी बना कर रद्द करवा दिया था।
अब गांधी परिवार जवाबदेह होगा क्योंकि अब मुर्गियां अंडे देने लौट रही हैं। इसके लिए राहुल की आक्रामकता पूरी तरह से जिम्मेवार है। अगर उन्होंने प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत हमला न किया होता तो यह मामला दबा रहता क्योंकि मोदी सरकार ने एक साल इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी लेकिन बार-बार सूट-बूट या चोर की संज्ञा का इस्तेमाल कर राहुल ने सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर कर दिया। किसान की जमीन और उस जमीन का रईस लोगों द्वारा अपने हित में इस्तेमाल, जो मामला राहुल इतना तीखा उठा रहे हैं, उसकी सबसे बड़ी मिसाल तो उनके घर में है। जिस तरह राबर्ट वाड्रा का आर्थिक साम्राज्य बढ़ा है वह हैरान करने वाला है और अब परिवार को परेशान करने वाला भी होगा क्योंकि देश को स्पष्ट हो जाएगा कि जो किसान के हित का दम भर रहा है वह परिवार ही किसान की लाचारी का लाभ उठाता रहा है। राहुल का कहना है कि ‘किसान भाइयो, आपके पैरों के नीचे सोना है और सरकार इसे छीनना चाहती है।’ जैसे मैंने ऊपर लिखा उनका भाषण लेखक सलीम-जावेद की डायलॉगबाजी से बहुत प्रभावित लगता है। कौन-सा सौना? कैसा सोना? किसान तो फटेहाल हैं, वह आत्महत्या कर रहे हैं अगर उनके पांव के नीचे सोना होता तो वह ऐसा क्यों करते? खेती लाभदायक नहीं रही। बहुत किसान चाहते हैं कि उनके बच्चे कोई और काम करें। वह खेती से निकलना चाहते हैं लेकिन राहुल जैसे रुकावट खड़ी कर रहे हैं। कांग्रेस ने लगभग छ: दशक शासन किया है अगर उन्हें गरीब या किसान की इतनी चिंता होती तो आज वह हताशा में आत्महत्या न करते होते। और जहां तक उसके पैरों के नीचे सोना वाली बात का सवाल है, क्या राहुल पता करवाएंगे कि जीजाजी इस मामले में कितने सफल रहे?
और अब तो यह समाचार भी छपा है कि राहुल गांधी दिल्ली के सूट बूट वालों की अंतिम शरणस्थली रमणीय गोल्फ क्लब का सदस्य बनने के लिए गोल्फ सीख रहे हैं। अर्थात् पक्के साहिब हो जाएंगे बात चाहे वह किसान, मजूदर की करें। पुराना शे’र याद आता है,
कौम के गम में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ,
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ।
वैसे उन्हें भी मालूम है कि टॉप पर ‘नो वेकेंसी’ है अर्थात् जगह खाली नहीं। नरेन्द्र मोदी की सरकार एक साल पूरा कर रही है। चाहे अच्छे दिन नहीं आए लेकिन देश का माहौल बदला है और भविष्य में अच्छे दिन आने की आशा बंधी है। इंडियन एक्सप्रैस की रिपोर्ट के अनुसार किसानों की हालत जानने के लिए कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने महाराष्ट्र में अमरावती तथा विदर्भ की 15 किलोमीटर की यात्रा के बाद अपने एक पूर्व सांसद साथी को बताया, ‘मज़ा आया।’ किसान बेहाल हैं, खुदकशी कर रहे हैं, सूट बूट वाले उसे लूट रहे हैं, और आपको उनकी हालत देखने के बाद मज़ा आया?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.