अंधेरा गम का पिघलने को है!
एक साल पूरा हो गया, अच्छे दिन नहीं आए। इतनी जल्दी आ भी नहीं सकते थे। शंघाई में प्रवासी भारतीयों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘दुख भरे दिन बीते रे भैय्या, सुख भरे दिन आयो रे।’ यह एकदम नहीं हो सकता था। नेतृत्व को अपने लोगों को न केवल ‘सुख भरे दिनों’ के लिए बल्कि मेहनत, तंगी, कुर्बानी के लिए भी तैयार रखना चाहिए कि अचानक परिवर्तन नहीं होगा। अगर इस सरकार के कामकाज का आंकलन करना है तो देखना होगा कि इनसे 12 महीने पहले हम कहां थे? हमारी तो हर नीति को लकवा मार गया था। मुद्रास्फीति 9 प्रतिशत पर थी और विकास दर कम होकर 5 प्रतिशत रह गई थी। आज मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत की विकास दर को 7.5 प्रतिशत कह रहा है। 1999 के बाद हम पहली बार चीन से आगे निकल रहे हैं। इस सरकार से पहले पांच वर्ष लड़ाई, झगड़ों तथा महाघोटालों में बर्बाद हो गए थे। नरेन्द्र मोदी का सबसे बड़ा योगदान है कि उन्होंने देश का अपने में विश्वास फिर कायम कर दिया। फिर से मशाल जलाई है। हम कर सकते हैं!
आज नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत उभर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक लेख में रिफार्मर इन चीफ कहा है। राहुल गांधी चाहे इसका उलटा अर्थ निकाल गए हैं पर अमेरिका का राष्ट्रपति सामान्य तौर पर इस तरह किसी की तारीफ के लेख नहीं लिखता। न ही पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत की दो बार यात्रा की है। हमारी विदेश नीति तगड़ी है। शिव शंकर मेनन जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रक्षा सलाहकार रहे हैं, ने स्वीकार किया है कि मोदी की विदेश नीति यूपीए की विदेश नीति से बेहतर है। इस सब परिवर्तन के केन्द्र में एक व्यक्ति है, नरेन्द्र मोदी। देश का जो माहौल बदला है, विश्वास लौट रहा है उसका कारण भी नरेन्द्र मोदी ही हैं। उनकी सोच, उनकी मेहनत, देश को बदलने पर मजबूर कर रही है। जब विदेश में भारत की सुरक्षा परिषद की दावेदारी के बारे उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘वह दिन चले गए जब यह देश भीख मांगता था आज यह देश अपना हक मांगता है’ तो हम में से बहुत लोग भावुक हुए थे। इससे पहले किस नेता ने दृढ़ता से ऐसी बात कहने की हिम्मत की थी?
पिछले 23 वर्षों में कोयले का उत्पादन सबसे अधिक 8.3 प्रतिशत हुआ है जिससे कई बंद पड़े बिजली संयंत्र शुरू हो रहे हैं। निवेश के लिए रुकावटें हटा दी गई हैं। कई सौ फाइलें पर्यावरण अनुमति के लिए रुकी नहीं हैं। यह पहली सरकार है जो मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र को महत्व दे रही है ताकि उत्पादन तथा रोजगार बढ़े। मेक इन इंडिया अभी सफल तो नहीं हुआ पर संकेत है कि यह सफल होगा। भारत में कारोबार करना आसान हो चुका है और इस सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है कि उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया। ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’। यह वह भारत लगता ही नहीं जो मनमोहन सिंह के समय था। कोयला तथा स्पैक्ट्रम की नीलामी पारदर्शी तथा सही रही जिससे खजाने को लाखों करोड़ रुपए अतिरिक्त मिले। जन धन योजना सफल है। एक साल पहले तक यह सोचा भी नहीं गया था कि हर भारतीय के पास बैंक खाते होंगे। ऐसा हो सका तो इसलिए कि नरेन्द्र मोदी की छवि उस व्यक्ति की है जिसका इरादा पक्का है। बाबू भी खुद को उनके अनुसार ढाल रहे हैं। अब गरीबों के खाते में सीधा पैसा जाएगा जिससे सब्सिडी के घोटाले खत्म हो जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी किस तरह हर मुद्दे पर नज़र रखते हैं यह इस समाचार से पता चलता है कि नई दिल्ली में मुख्य सचिवों की बैठक में बिहार के मुख्य सचिव ने जब यह दावा किया कि गंगा पर बनने वाले पुल का सब काम लगभग पूरा हो चुका है तो उसी वक्त देश के प्रधानमंत्री ने तस्वीरें अपलोड कर बता दिया कि अभी बहुत काम बाकी है। आगे से अब सब अफसर अपना होमवर्क कर प्रधानमंत्री की बैठक में आएंगे! ठीक है कई नाकामियां हैं पर पहली बार देश नाउम्मीद नहीं है।
प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं को लेकर भी आलोचना हो रही है। वैसे जितने दिन उन्होंने विदेश में गुजारे और जितने दिन मनमोहन सिंह ने विदेश में गुजारे उनमें बड़ा अंतर नहीं है। बहुत जरूरी था कि दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत में एक नई सरकार है जो अतीत के घोटालों और अकर्मण्यता से अछूती नया भारत बनाने के लिए कृतसंकल्प है। और यह तो सब स्वीकार करते हैं, अरुण शौरी भी, कि इस क्षेत्र में उन्हें भारी सफलता मिली है। जिस गड्ढे में अर्थव्यवस्था गिर चुकी थी उससे निकालने के लिए विदेशी सहयोग बहुत जरूरी है। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया के साथ घनिष्ठ रिश्ता कर चीन को भी सीधा संदेश दिया गया है कि हम विकल्पविहीन नहीं हैं।
सबसे बड़ी समस्या खेती है जो लाभदायक नहीं रही। यह साल तो वैसे ही बेमौसम बरसात के कारण बुरा साल रहा है। पिछले साल दिल्ली के एक थिंक टैंक के सर्वेक्षण के अनुसार 61 प्रतिशत किसान खेती को छोड़ देंगे अगर उन्हें शहर में नौकरी मिल जाती है। किसान नहीं चाहते कि उनके बच्चों के कंधे पर हल रखा जाए वह उन्हें शहर भेजना चाहते हैं। वह भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। इस बीच भूमि अधिगृहण को लेकर गतिरोध खड़ा हो गया है और विपक्ष सरकार को खलनायक बता रहा है। इस मामले में सरकार ने जल्दबाजी की है। पहले लोगों को तैयार किया जाना चाहिए था फिर अध्यादेश लाया जाना चाहिए था। सरकार का कदम उस वक्त आया जब किसान दशकों के बाद इतनी बुरी हालत में हैं। भारत जैसे देश में सबको साथ लेकर चलना पड़ता है। ऊपर से आप थोप नहीं सकते। विपक्ष चाहे कमजोर हो गया है पर उसकी भी अपनी जगह है विशेषतौर पर जब राज्यसभा में उनका बहुमत है। दिल्ली का जनादेश केजरीवाल की सरकार के लिए है। इसे मान्यता मिलनी चाहिए। इसी के साथ भाजपा से सम्बन्धित कुछ लोगों की बहकी बातें भी अनावश्यक विवाद खड़ा कर रही हैं। अशोक सिंघल जैसे सियाने की भी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। उनका कहना है कि ‘हिन्दू दम्पत्ति कम से कम 5 बच्चे पैदा करे तब ही हिन्दुओं की जनसंख्या स्थिर होगी।’ ऐसे तत्वों ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के भी नाक में दम किया था पर यूपीए के शासन में शांत रहे। अब फिर मुखर हो रहे हैं।
मैं इस सरकार के प्रति बहुत आशावादी हूं। भारत की कहानी बदल रही है। हमारी समस्या है कि हम कुछ दिन के बाद आंकलन शुरू कर देते हैं। 100 दिन, एक साल आदि। हमें पूरा चित्र देखना चाहिए। देश के इतिहास में पहले कभी भी इतनी तेजी और दृढ़ता के साथ रोजगार बढ़ाने का प्रयास नहीं किया गया। न ही सामाजिक कार्यक्रम शुरू किए गए। हम एक औद्योगिक क्रांति की दहलीज पर खड़े हैं। अगर हमने महाशक्ति बनना है तो 10 प्रतिशत विकास की दर चाहिए। भारतीय महत्वाकांक्षी हो रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने अच्छे दिनों की जिज्ञासा उनमें पैदा कर दी है क्योंकि लोगों को उनसे बहुत आशाएं हैं इसलिए उनकी चुनौती भी बहुत है। नैराश्य की जगह अधीरता ने ले ली है। सबसे बड़ा परिवर्तन है कि लोगों का भरोसा जगा है। सरकार बेदाग है। समस्या यह है कि जो काम 60 महीनों में होना है उसे हम 12 महीनों में चाहते हैं। एक साल सफलतापूर्वक पूरा करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा उनकी सरकार को बधाई देते हुए अपने अधीर और बेचैन देशवासियों को जावेद अख्तर साहिब के इन शानदार लफज़ों में कहना है,
अंधेरा गम का पिघलने को है,
जरा देर इसमें लगे अगर
न उदास हो मेरे हमसफर!