न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी!
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि भाजपा राम मंदिर, धारा 370 तथा समान नागरिक संहिता के मुद्दों से पीछे नहीं हटी। ये अभी भी उसके ‘कोर’ अर्थात् केन्द्रीय मुद्दे हैं लेकिन क्योंकि पार्टी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं इसलिए वह इन्हें पूरा नहीं कर सकती इसके लिए भाजपा को अकेले लोकसभा में 370 सीटें चाहिए। अर्थात् न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी और भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर से उसी तरह पल्ला झाड़ रही है जैसे पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में गठबंधन करते वक्त धारा 370 से पल्ला झाड़ा गया था। अगर कभी 370 सीटें मिल गईं तो यह कहा जाएगा कि हमें तो संसद में शत-प्रतिशत सीटें मिलनी चाहिए तब ही अपने ‘कोर’ मुद्दों को पूरा कर सकेंगे। जब वाजपेयी की सरकार थी तब पार्टी का कहना था कि जब हमें बहुमत मिलेगा तब हम इन मुद्दों पर आगे बढ़ेंगे अब बहुमत मिल गया तो गोल पोस्ट खुद पीछे कर दिया। कौन अब भाजपा के इन भावनात्मक वायदों पर विश्वास करेगा? विशेष तौर पर अध्यक्ष अमित शाह को चिंतित होना चाहिए कि उनकी छवि उस नेता की बन रही है जो अपने किए वायदों को गंभीरता से नहीं लेते। भाजपा जैसी पार्टी के अध्यक्ष से अधिक गंभीरता की आशा है।
आलोचना के बाद अमित शाह ने कुछ डैमेज कंट्रोल किया है। उनका कहना है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जब निर्णय आएगा तो हम उसका पालन करेंगे। लेकिन यह बात पहले लोगों को क्यों नहीं बताई गई? लोगों को तो बताया गया कि हम मंदिर ‘वहीं’ बनाएंगे। अदालती कार्रवाई का कोई जिक्र नहीं था। देशभर से शिलाएं इकट्ठी की गईं। विशाल अभियान चलाया गया। रथयात्रा निकाली गई। अगर मामला अदालत ने ही तय करना था तो लोगों को इतना दीवना बनाने की जरूरत क्या थी? फैसले का इंतजार करते। विहिप अपनी जगह फंसी हुई है क्योंकि मंदिर बनाने का वायदा उन्होंने भी किया था। अब विहिप के केन्द्रीय मंत्री सुरेन्द्र जैन का कहना है कि ‘अगर नीयत साफ हो तो राम मंदिर के निर्माण के लिए एक नहीं हजार रास्ते हैं।’ अगर नियत साफ हो, बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी है।
अपने समर्थकों के बीच भाजपा के नेतृत्व की विश्वसनीयता के किस तरह चिथड़े उड़ रहे हैं यह जम्मू की हालत से पता चलता है जहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह की यात्रा के दौरान लोगों ने पूर्ण बंद रखा जिसमें 70 सामाजिक, धार्मिक, व्यापारिक तथा ट्रांसपोर्ट संस्थाओं ने हिस्सा लिया। राजनाथ सिंह वहां नरेन्द्र मोदी की सरकार की उपलब्धियां गिनाने पहुंचे थे पर उन्हें शटर डाउन मिले। सड़कें खाली थीं और शैक्षणिक संस्थाएं बंद थीं। जम्मू वह क्षेत्र है जिसने कुछ ही महीने पहले भाजपा को 25 सीटें दी थीं जिसके बल पर पार्टी आज जम्मू कश्मीर की गठबंधन सरकार में हिस्सेदार है। असली समस्या मुख्यमंत्री तथा उनकी पार्टी के रवैये को लेकर है जो न केवल जम्मू विरोधी है बल्कि राष्ट्रीय हित में भी नहीं है। पूरे प्रदेश के विकास की तरफ ध्यान देने की जगह वह कश्मीर वादी की संकीर्ण अलगाववादी विचारधारा को हवा देते नज़र आ रहे हैं।
मुफ्ती मुहम्मद सईद तथा उनके परिवार के साथ गठबंधन करते वक्त भाजपा का नेतृत्व उनके अतीत को भूल गया कि जिसने भी उनके साथ हाथ मिलाए हैं उसके हाथ झुलस गए। दिसम्बर 1989 में उनकी बेटी रूबिया का ‘अपहरण’ तथा उसके बदले पांच कुख्यात आतंकवादियों की रिहाई से वादी में भारत विरोधी बड़ी लहर चली थी। उस समय मुफ्ती वीपी सिंह सरकार के गृहमंत्री थे। जब अमरनाथ यात्रा को लेकर बड़ा तनाव हुआ था तब भी पीडीपी-कांग्रेस सरकार थी और मुफ्ती साहिब ही मुख्यमंत्री थे। इस बार फिर मुसर्रत आलम की रिहाई से शुरू होकर बार-बार वहां पाकिस्तानी झंडे लहराए जाने की घटनाएं बताती हैं कि ऐसे तत्वों को कोई प्रेरित कर रहा है। क्या कारण है कि मुफ्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही बार-बार पाकिस्तानी झंडे लहराए जा रहे हैं? गृहमंत्री राजनाथ सिंह गर्जते बहुत हैं कि बर्दाश्त नहीं किया जाएगा पर श्रीमान आप बर्दाश्त तो कर रहे हैं। पिछले दो महीनों से हुर्रियत के कार्यक्रम में पाकिस्तान के झंडे फहराना सामान्य हो गया है। राजनाथ सिंह ने क्या कर लिया? और मुफ्ती के पास तो केवल 28 विधायक हैं उन्हें एजेंडा तय करने की इज़ाज़त कैसे दे दी गई? जिस दिन राजनाथ सिंह ने धमकी दी उसके अगले दिन शब्बीर शाह की रैली में फिर पाकिस्तानी झंडे नज़र आए। राजनाथ सिंह भूलते हैं कि वह उस कुर्सी पर बैठे हैं जिस पर कभी सरदार पटेल बैठा करते थे। पटेल होते तो मुफ्ती या इन पाक समर्थकों की जुर्रत न पड़ती। इसका असली कारण है कि भाजपा मुफ्ती मुहम्मद सईद से मामला नहीं निपटा पा रही। उन्हें उनकी लक्ष्मण रेखा नहीं समझाई गई। अगर समझाई है और वह परवाह नहीं करते तो और भी गंभीर मामला है। फिर उन्हें और मजबूत करने के लिए एम्स जैसा प्रतिष्ठित संस्थान कश्मीर को क्यों दिया जा रहा है? मुफ्ती तो साफ कर ही चुके हैं कि उन्हें केवल वादी की चिंता है, जम्मू उनके दायित्व क्षेत्र का हिस्सा नहीं, पर भाजपा का तो है। जम्मू में ऐसी हालत क्यों हो गई कि देश के गृहमंत्री का ही बायकाट कर दिया गया?
मुफ्ती मुहम्मद सईद का इतिहास संदिग्ध है। उनके आने के बाद कश्मीर और जम्मू में दूरी बढ़ी है। उनकी नरम अलगाववाद की नीति से देश परेशान है। अगर वह अपनी दिशा बदलने को तैयार नहीं तो भाजपा के नेताओं को तय करना चाहिए कि उन्होंने क्या करना है? भाजपा जवाहरलाल नेहरू को बहुत कोसती है पर उन्होंने तो जरूरत पडऩे पर अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला को भी जेल में बंद कर दिया था।
इतना सब लिखने के बाद मैं यह भी कहना चाहूंगा कि राम मंदिर के निर्माण के बारे सरकार की जो धीमी रफ्तार है उससे मैं सहमत हूं क्योंकि जनादेश विकास के लिए है। शिकायत केवल यह है कि भाजपा का नेतृत्व जनता को क्यों गुमराह करने लगा रहता है? साफ क्यों नहीं कहता कि इन परिस्थितियों में मंदिर नहीं बन सकता। जहां तक राम मंदिर के निर्माण का सवाल है, वह बनना चाहिए और अयोध्या में ‘वहीं’ बनना चाहिए लेकिन जोर जबरदस्ती से नहीं बनना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम का मंदिर मर्यादा के उल्लंघन से नहीं बनना चाहिए। ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए कि देश में अशांति पैदा हो। भगवान राम सबके थे केवल हिन्दुओं के ही नहीं इसलिए सरकार को सबको साथ लेकर मंदिर बनाने का माहौल तैयार करना चाहिए। पर इन सज्जनों ने अपनी विश्वसनीयता का फटेहाल कर दिया है। उनके बारे तो गालिब के साथ कहा जा सकता है,
तेरे वायदे पे जिए हम तो यह जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।