Punjab bechean kyon he

पंजाब क्यों बेचैन है?

आनंदपुर साहिब के 350वें स्थापना दिवस का समारोह धार्मिक उत्साह के साथ सम्पन्न हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं आए। बताया गया कि तंजानिया के राष्ट्रपति की यात्रा के कारण वह व्यस्त थे पर अखबारों में छपा है कि वह अकाली दल की दिशा को लेकर खिन्न हैं इसलिए मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के व्यक्तिगत अनुरोध के बावजूद नहीं पहुंचे। बेहतर होता कि वह आते। आनंदपुर साहिब का देश के इतिहास में विशेष स्थान है जो राजनीतिक मतभेदों से ऊपर होना चाहिए। यह नहीं कि केन्द्र या भाजपा की अकाली नेतृत्व के प्रति शिकायतें जायज़ नहीं हैं। क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं इसलिए अकाली नेतृत्व में हताशा अधिक नज़र आ रही है। लोगों को बताने के लिए कुछ नहीं है। विकास धीमा है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। बादल परिवार की आर्बिट बस वाला मामला अभी खत्म नहीं हुआ था कि लुधियाना के बागी बैंस ब्रदर्स ने रेत माफिया तथा केबल के धंधे का मामला उठा लिया। पंजाब में हालत ऐसी बन गई है कि सरकार तथा बादल परिवार के खिलाफ जो कुछ भी कहा जाता है उसे लोग सही समझने लगे हैं। इसीलिए ध्यान हटाने के लिए कई गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं पुरानी अप्रासंगिक शिकायतों को नया लिबास पहनाया जा रहा है। एक बार फिर जिसे पंथक एजेंडा कहा जाता है, उसकी तरफ अकाली दल लौट रहा है इसीलिए लोगों में बेचैनी है।
आनंदपुर साहिब के समारोह में मुख्यमंत्री बादल का कहना था कि सिखों के बलिदान को मान्यता नहीं दी जा रही। उन्हें राष्ट्रविरोधी पेश किया जा रहा है। बादल साहिब ने जो कहा वह केवल गलत ही नहीं बल्कि खतरनाक भी है। कौन है जो सिखों को राष्ट्रविरोधी कहने की गुस्ताखी कर सकता है? उनका कहना है कि सिखों की कुर्बानियों को अभी भी मान्यता नहीं मिली। एक सिख के राष्ट्रपति बनने, एक सिख के 10 साल प्रधानमंत्री रहने, दो सिखों के लोकसभा अध्यक्ष बनने, सिखों के थलसेना, वायुसेना तथा नौसेना अध्यक्ष बनने के बाद बादल साहिब यह शिकायत कैसे कर सकते हैं? खुद बादल परिवार आठ साल से सत्ता में है। इससे पहले भी बादल साहिब कई बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। पंजाब में कोई हिंदू मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। और कौन इस बात का प्रतिवाद कर सकता है कि सिखों ने देश के लिए सबसे अधिक कुर्बानियां दी थीं? क्या इन कुर्बानियों को मान्यता तब ही मिलेगी अगर बादल परिवार की हुकूमत को केन्द्र से खुला समर्थन मिलता रहेगा? अगर कई कारणों से केन्द्र बादल सरकार के प्रति उदार नहीं है तो क्या इसका मतलब है कि सिखों से धक्का हो रहा है?
बादल ने आनंदपुर साहिब में यह भी कहा कि पंथ के प्रसार के लिए राजकीय ताकत जरूरी है। एक सैक्युलर देश में, एक नेता जो खुद को सबसे बड़ा सैक्युलर व्यक्ति कहता है, के द्वारा यह टिप्पणी सचमुच निराली है। वह एक बार फिर धर्म तथा राजनीति का घालमेल कर रहे हैं। यह बताने की जगह कि उनकी सरकार ने कितनी सड़कें बनाईं, कितने पुल, अस्पताल या स्कूल बनाए, बादल साहिब सिख स्मारक बनाने पर गर्व कर रहे थे। हम बादल साहिब का पुराना चेहरा देख रहे हैं जिसने अतीत में पंजाब के लिए कई किस्म की मुसीबतें खड़ी की थीं। यह दुख की बात है और पंजाब के भविष्य के लिए भी शुभ संकेत नहीं। इस आशंका को सामने रखते हुए कि अगले चुनाव में अकाली दल को न केवल एंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ेगा बल्कि सहयोगी भाजपा भी साथ छोड़ सकती है, बादल साहिब फिर पीछे की तरफ मुड़ रहे हैं। इसीलिए चिंता हो रही है क्योंकि पहले भी इससे बहुत नुकसान हो चुका है।
अकाली दल की क्या दिशा हो सकती है यह उस वक्त ही स्पष्ट हो गया था जब स्वर्ण मंदिर में आतंकवादियों की याद में गुरुद्वारा बनाया गया। बादल साहिब का कहना था कि मुझे नहीं मालूम यह कैसे हो गया, यह तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बनवाया है। स्वर्ण मंदिर में आतंकवादियों की याद में गुरुद्वारा बन जाए और पंजाब के मुख्यमंत्री को इसकी भनक तक न लगे, क्या यह संभव है? तब ही स्पष्ट हो गया था कि अकाली दल सिख उग्र राय को संतुष्ट करने का प्रयास कर रहा है जिसकी चेतावनी मैं भी कई बार दे चुका हूं। उससे लेकर 1993 के दिल्ली विस्फोट के अपराधी दविन्द्र सिंह भुल्लर को दिल्ली की तिहाड़ जेल से अमृतसर की जेल में शिफ्ट करना एक ही सिलसिले का हिस्सा है। अकाली दल की कोशिश है कि आतंकवाद के दौर में कैद ऐसे 80 और लोगों को भी पंजाब में शिफ्ट कर लिया जाए। यह वही दविन्दर सिंह भुल्लर है जिसे अकाली एक बार ‘खतरनाक’ कह चुके हैं पर अब उसके प्रति सहानुभूति का सैलाब आ गया लगता है। अकाली-भाजपा के रिश्ते अच्छे नहीं रहे प्रधानमंत्री पंजाब को विशेष पैकेज नहीं दे रहे जिसकी मांग अकाली नेतृत्व बार-बार करता आ रहा है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व का रुख अब अकाली विरोधी हो गया है इसलिए अकाली दल ने अपना अलग रास्ता चुन लिया है ताकि कम से कम ग्रामीण क्षेत्रों में अकाली दल की पैंठ बनी रही।
यात्राएं निकाली जा रही हैं और स्मारक बनाए जा रहे हैं और भुल्लर जैसे आतंकियों पर मेहरबानी की जा रही है। जिन्हें ‘रेडिकल सिख’ कहा जाता है वह सब इस घटनाक्रम से प्रसन्न हैं। प्रभाव यह दिया जा रहा है कि जैसे भुल्लर कोई हीरो हो न कि 9 लोगों की हत्या के लिए जिम्मेवार। अकाली दल सिखों में यह प्रभाव देने का प्रयास कर रहा है कि अगर उनका कोई हितैषी है तो अकाली दल ही है। कुशासन तथा भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने का यह फार्मूला अकाली दल कई बार इस्तेमाल कर चुका है देखना है कि इस बार यह कितना कामयाब होता है? लेकिन ऐसा करते वक्त अकाली दल खुद को उस राय से बिलकुल अलग कर रहा है जो कट्टरवाद का विरोध करती है और जो आतंकवाद भुगत चुकी है।
कई बार खालिस्तान के नारे लगने लगे हैं। जम्मू में हम वह दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम देख कर हटे हैं जहां भिंडरांवाला के पोस्टर फाड़े जाने के बाद कुछ सिख युवक भड़क गए और व्यापक हिंसा हुई। कर्फ्यू लगा और पुलिस की गोली में एक सिख युवक मारा गया। यह कौन लोग हैं जिन्होंने जम्मू में खालिस्तानी पोस्टर लगाए और देश विरोधी नारे लगाए? उन्हें पीछे से कौन समर्थन दे रहा है? जम्मू में खालिस्तानी पोस्टर लगाए जाने से तो पता चलता है कि वहां देश विरोधी ताकतों के बीच कोई लिंक है। ऐसा माहौल क्यों तैयार किया जा रहा है कि देश विरोधी शरारत कर सकें? इसीलिए शायद प्रधानमंत्री आनंदपुर साहिब नहीं आए और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सारे अकाली नेतृत्व के सामने ‘नशे की दल-दल’ का मुद्दा उठा दिया। अकाली राजनीति के कारण पंजाब का माहौल फिर खराब हो रहा है। सरदार प्रकाश सिंह बादल जैसे अनुभवी तथा वरिष्ठ नेता से बेहतर आशा थी। पंजाब का भविष्य उनकी राजनीति या अकाली दल के वोट बैंक से ऊपर होना चाहिए। उन्हें अपनी विरासत की चिंता होनी चाहिए, वह कैसा पंजाब छोड़ कर जाना चाहते हैं?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.