
पंजाब को फिसलने से बचाना है
गुरदासपुर जिले के दीनानगर कस्बे के पुलिस थाने पर हुए फिदायीन हमले से पता चलता है कि पाकिस्तान की शरारत केवल जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित नहीं, वह एक बार फिर पंजाब में मिलिटैंसी को उभारने की कोशिश कर रहा है। यह मुठभेड़ बारह घंटे चलती रही, इससे पता चलता है कि जो दस्ता आया वह पूरी तरह से तैयार होकर आया और मर मिटने के लिये आया।
हमारी असफलता पूर्ण है। न खुफिया एजेंसियां इस हमले के बारे सूचना दे सकीं और न ही सीमा पर ही उन्हें रोका जा सका। कि वह सीमा से लगभग 20 किलोमीटर दूर दीनानगर पहुंचने में सफल रहे, से पता चलता है कि हमारी असफलता कितनी बड़ी है। हम विजय दिवस मना रहे थे कि हमला कर दिया। यह हमला उस वक्त भी हुआ जब भारत-पाकिस्तान रूस मेें ऊफा में दोनों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के बाद तनाव कम करने के लिये धीरे-धीरे कदम उठा रहे हैं। यह भी कितने दुख की बात है कि जब दीनानगर मेें गोलियां चल रही थीं, आम नागरिक मारे जा रहे थे और पुलिस वाले मुकाबला करते शहीद हो रहे थे तो उस वक्त हमारी संसद में रोज की तरह हंगामा चल रहा था। आतंकी हमले के बीच संसद मेें नारेबाजी चलती रही। क्या कुछ समय के लिये हम अपने राजनीतिक मतभेद तथा आपसी नफरत एक तरफ रख कर देश के सामने जो चुनौतियां हैं उनका सामना करने के लिये एकजुट नहीं हो सकते?
गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अगर हम पर वार किया गया तो हम मुंहतोड़ जवाब देंगे। यह बात समझ नहीं आई। ‘अगर’ का क्या मतलब? पाकिस्तान के आतंकवादी जम्मू-कश्मीर से भी आगे पंजाब तक पहुंच गये, पर आप ‘अगर’ कह रहे हैं? इससे अधिक उत्तेजना क्या होगी?
आतंकवाद से निबटने में एक बार फिर पंजाब पुलिस ने बहादुरी दिखाई है। बिना हैलमेट तथा बुलेटप्रूफ वैस्ट के भी तगड़ा जवाब दिया है। एसपी बलजीत सिंह के परिवार ने पहले ही आतंकवाद से लड़ते हुए दो शहादतें दी हैं। ऐसे परिवार पर देश को गर्व है। उन्होंने उच्च सिख परम्परा का निर्वहन किया है। बड़ा सवाल तो यह है कि आतंकवादी दीनानगर पहुंचे कैसे? उन्होंने वहां एक कार का अपहरण किया और उसके मालिक को गोली मार दी पर उन्हें दीनानगर तक किसने पहुंचाया? पंजाब की 460 किलोमीटर लम्बी सीमा अभेद्य है फिर वहां किधर से आए? क्या सीमा के नजदीक स्लीपर सैल हैं जो मदद करते हैं? ऐसा हमला स्थानीय समर्थन के बिना नहीं हो सकता था जो बात रिटायर्ड वरिष्ठ पुलिस अफसर प्रकाश सिंह ने भी स्वीकार की है। पंजाब में देश विरोधी तत्वों पर तीखी नजर रखने की जरूरत है क्योंकि पाकिस्तान जम्मू कश्मीर के बाद दूसरा मोर्चा खोल रहा है। जिस तरह 1980 और 1990 के दशक में पाकिस्तान ने यहां मिलिटैंसी को बढ़ावा दिया था, वैसा ही अब हो रहा है। पाकिस्तान का निशाना फिर 2K अर्थात् Kashmir और Khalistan नजर आता है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को भी पाकिस्तान के साथ वार्ता की नीति पर गौर करना है। अगर पाकिस्तान की आईएसआई कश्मीर के बाद पंजाब में भी अस्थिरता पैदा करने का प्रयास कर रही है और नवाज शरीफ की सरकार उसे रोक नहीं सकती या रोकना नहीं चाहती, तो फिर वार्ता का फायदा क्या है? पर पंजाब में तीन चिंताजनक बातें उभर रही हैं। एक, विकास यहां रुक गया है। उद्योग चौपट है। नया निवेश मामूली है। हजारों कारखानें बंद हो चुके हैं जिससे युवाओं में बेरोजगारी तथा हताशा बढ़ रही है। ड्रग्स की बढ़ती लत्त का यह भी एक बड़ा कारण है। अगर पिछली बार मिलिटैंसी इतना विकराल रूप धारण कर गई थी तो उसका एक कारण बेरोजगारी तथा हताशा था। जो युवा खाली बैठा है वह गलत रास्ते पर चल निकलता है। पंजाब की यह भी त्रासदी है कि बादल परिवार अपने व्यापारिक कारनामों के कारण लोगों में अलोकप्रिय है। भ्रष्टाचार की बहुत शिकायत है। मुख्यमंत्री बादल जनता से सम्पर्क की बहुत कोशिश कर रहे हैं लेकिन कहीं शीशा टूट चुका है। इस स्थिति से निबटने के लिए अकाली नेतृत्व ने जो कदम उठाया है वह चिंता का दूसरा कारण है। अकाली नेतृत्व धीरे-धीरे पंथक एजेंडे को लागू कर रहा है। शुरुआत तो तब ही कर दी गई थी जब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में भिंडरावाला का स्मारक बनाने की इजाजत दी गई थी। मुद्दों को साम्प्रदायिक नजरिए से देखा जा रहा है। चाहे दविन्द्रपाल सिंह भुल्लर हो या बलवंत सिंह राजोआना, अकाली नेतृत्व उग्र राय को संतुष्ट करने का असफल प्रयास कर रहा है। बादल की तुष्टिकरण की यह नीति बहुत चिंताजनक है क्योंकि एक बार जिन्न बोतल से निकल गया तो वापिस नहीं आएगा। आशा है कि हाल की दो घटनाओं से अकाली नेतृत्व को भी इसका एहसास हो गया होगा। अमेरिका गए पंजाब के मंत्री तोता सिंह पर वहां के सिखों ने जूता फेंका और उनके खिलाफ नारे लगाए। अब कोई अकाली नेता कैनेडा, ब्रिटेन या अमेरिका जाने की हिम्मत नहीं दिखा रहा। दूसरी घटना पटियाला से है जहां मुख्यमंत्री की उपस्थिति में खालिस्तान के नारे लगाए गए। पंजाब में कई जगह भिंडरावाला के पोस्टर नजर आने शुरू हो गए हैं।
तीसरा चिंता का विषय केन्द्र और भाजपा की पंजाब नीति या यूं कहिए कि पंजाब के प्रति अनीति है। वह अकाली दल के साथ गठबंधन में है लेकिन इतनी अनिश्चितता पैदा कर दी गई है कि कहा जा सकता है कि वह न मरने दे रहे हैं न जीने दे रहे हैं। एक नेता कहेगा कि हमारा रिश्ता अटूट है तो दूसरा कहेगा कि हमें सोचना पड़ेगा कि 2017 के चुनाव में अकाली दल के साथ गठबंधन करना है या नहीं? अकाली नेतृत्व विशेष तौर पर उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल का भी भाजपा के प्रति रवैया नकारात्मक है। इस सब का परिणाम है कि पंजाब में अनिश्चित राजनीतिक माहौल है जो प्रशासन को प्रभावित कर रहा है और शरारत उभरने की गुंजायश पैदा कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रवैया भी पंजाब की तरफ उदार नजर नहीं आता। पंजाब की आर्थिक मदद नहीं की जा रही। राजनीतिक दलों में लड़ाई झगड़े होते रहते हैं पर दीनानगर पर फिदायीन हमले के बाद हालात बदल गए हैं। पाकिस्तान उत्तेजना बढ़ा रहा है। शांति खतरे में है और पंजाब भी टारगेट है। इसलिए केन्द्र सरकार तथा भाजपा के नेतृत्व को यह राजनैतिक अनिश्चितता तत्काल खत्म करनी चाहिए। दोनों तरफ का द्वेषवाद इस नाजुक परिस्थिति में बहुत महंगा साबित हो सकता है। समझना चाहिए कि पंजाब को फिसलने से बचाना है।