
फरेब की जिन्दगी
शीना बोरा हत्याकांड से देश स्तब्ध है। अपना अतीत छिपाने के लिए एक मां अपनी बेटी को घर बुलाती है, उसे जबरदस्ती कार में बैठाती है जहां उसका पूर्व पति तथा ड्राइवर उसके साथ मिल कर लड़की की हत्या कर देते हैं। गला मां दबाती है। ऐसी क्रूरता पहले बहुत कम सुनी थी। यह घटना 24 अप्रैल 2012 की है अर्थात् तीन वर्ष हो चुके हैं। इस बीच मां इंद्राणी मुखर्जी अपने तीसरे/चौथे पति पीटर मुखर्जी के साथ मस्त है। यह पति कहता है कि उसे उसकी पत्नी ने अपनी बेटी को अपनी बहन बताया था पर इस पतिदेव ने भी नहीं पूछा कि तुम्हारी बहन/बेटी तीन साल से कहां है? इंद्राणी मुखर्जी का वर्तमान पति पीटर मुखर्जी भी कोई अन्जान मासूम नहीं बल्कि स्टार इंडिया का पूर्व सीईओ है जिसे विश्व में सबसे ताकतवर मीडिया बिजनेसमैन रूपर्ट मर्डोक ने भारत में अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए चुना था। पांच छह सौ करोड़ रुपए का साम्राज्य है। शीना के भाई तथा इंद्राणी के बेटे मिखाईल बोरा का कहना है कि उसकी जान को भी खतरा है। यह भी छपा है कि इंद्राणी शीना के बाद मिखाईल को मरवाना चाहती थी ताकि उसका अतीत छिपा रहे। उसके लिए सुपारी दी गई।
इस हत्याकांड में बहुत कुछ ऐसा है जो समझ से बाहर है। लालच? हवस? महत्वाकांक्षा? पैशन? जायदाद? या कुछ और? इंद्राणी मुखर्जी जो फरेब की जिन्दगी जी रही थी उसके कारण वह जेल में है, शीना मारी जा चुकी है और इंद्राणी का हर नजदीकी शंका में है। इंद्राणी का अपना नाम परी बोरा था। परी से इंद्राणी बनने का उसका सफर खूनी रहा। महत्वाकांक्षा इतनी अंधी थी कि जो किया उसके बारे सोचा भी नहीं कि परिणाम क्या होंगे? झूठ की बुनियाद पर खड़ी जिन्दगी एक न एक दिन चरमरा जाती है। वह एक ‘सोशल कलाईम्बर’ थी। उसकी जैसी सत्ता तथा पैसे के गलियारों में भरी हुई हैं जो ऊपर तक पहुंचने के लिए कुछ भी कर सकती हैं। किसी के ऊपर अपनी हाई हील रख ऊपर चढ़ सकती हैं। परी की शुरुआत मामूली थी। नंगी महत्वाकांक्षा के अलावा कुछ नहीं था लेकिन जब वह इंद्राणी मुखर्जी बन गई तो मुम्बई में शानदार बंगला था और ब्रिटेन में ब्रिस्टल में एक और घर था। वॉल स्ट्रीट जनरल ने 2008 में उसे बिजनेस में टॉप 50 प्रभावशाली महिलाओं में शामिल किया था। वह ऐसी सामाजिक जानवर है जो अपने लक्ष्य के लिए कुछ भी कर सकती है। उसकी क्रूरता तथा बेदर्दी से तो इंसान सिंहर उठता है। जंगली जानवर भी अपने बच्चों की रक्षा करते हैं। यह तो दुर्लभ से दुर्लभ मामला है जैसा सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि जितना इंसान ऊपर चढ़ता है उतना उसका दाव बढ़ जाता है तथा उसे बचाने की मजबूरी बढ़ जाती है। महिलाओं के मामले में यह प्राथमिकता केन्द्र में स्थापित हो जाती है। ‘ऑनर किलिंग’ में भी महिला के हिस्सा लेने पर सवाल उठाया जाता है कि क्या मां भी संतान की हत्या कर सकती है? वहां भी परिवार की कथित इज्जत महिला की प्राथमिकता होती है जिसके लिए वह कुछ भी कर सकती है, संतान की हत्या भी। इंद्राणी का तो अतीत ही संदिग्ध था उसने जो कुछ हासिल किया अपने दम पर हासिल किया। उसे जो चुनौती दे रहा था, चाहे वह शीना हो या मिखाइल, वह उसे रास्ते से हटाना चाहती थी। वह मीडिया जगत की बड़ी हस्ती बनना चाहती थी क्योंकि यहां पैसा भी है, शोहरत भी है, ताकत भी। रास्ते में जो भी आया उसे हटा दिया।
क्या यह प्रकरण आधुनिक समाज का एक बिंब प्रस्तुत करता है जहां रिश्ते ढीले हो रहे हैं, एक वर्ग महत्वाकांक्षी हो रहा है और अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, कोई भी समझौता करने को तैयार है? पैसे तथा ग्लैमर की तलाश अकल पर कई बार बिलकुल पर्दा डाल देती है। क्या यह हाई प्रोफाईल सोसायटी की काली पर सच्ची तस्वीर पेश करती है? निश्चित तौर पर जो रिश्ते धोखे की बुनियाद पर बने होते हैं उनका अंत कई बार बुरा होता है। यह भी सही है कि एक वर्ग में महत्वाकांक्षा बहुत है पर महत्वाकांक्षी होना बुरी बात तो नहीं जब तक यह सीमाओं में हो। ऊपर तक पहुंचने के लिए हर इंसान संघर्ष करता है इसमें बुरा क्या है? राजनीति में भी हम प्रतिद्वंद्विता देखते हैं लेकिन जो करतूत इंद्राणी मुखर्जी ने की वह तो बर्बरता की हद पार कर गई। ऊपर कायम रहने के लिए वह तो अपनी बेटी की लाश के ऊपर से भी निकल गई। प्रमोद महाजन की हत्या उनके भाई ने भी पैसे के लिए की थी या कोई और कारण था? अर्थात महिला ही नहीं पुरुष भी ऐसी हत्या कर सकते हैं। बैडमिंटन स्टार सईद मोदी की हत्या रहस्यमय रही तो शिवानी भटनागर हत्याकांड में पुलिस अफसर रविकांत शर्मा को गिरफ्तार किया गया। यह अपवाद है, नियम नहीं। इस घिनौने कांड को हमारे समााजिक जीवन का प्रतिबिंब नहीं समझना चाहिए। ऐसी घटनाएं विरला होती हैं आम नहीं पर फरेब की जिन्दगी का अंजाम कई बार ऐसा होता है।
बहुत दशक पहले नानावती जो नौसेना के कमांडर थे, के मामले में प्रैस को बहुत दिलचस्पी रही। उन्होंने अपनी पत्नी के प्रेमी प्रेम आहूजा की हत्या कर दी थी जिस पर बाद में एक फिल्म ‘यह रास्ते हैं प्यार के’ भी बनी थी जिसमें सुनील दत्त ने यह किरदार निभाया था। मीडिया को ऐसे सनसनीखेज मामलों में दिलचस्पी है पर इस संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर भी गौर करने की जरूरत है। क्या मीडिया ने जरूरत से अधिक सनसनी नहीं फैला दी? जिसे हाई सोसायटी कहा जाता है उसकी जिन्दगी में मीडिया को इतनी दिलचस्पी क्यों है? वैसे तो यह नई बात नहीं। नेहरू-एडवीना माऊंटबैटन के रिश्तों को लेकर आज तक चर्चा है। नयना साहनी तंदूर कांड हो, आरूषि हत्याकांड हो या सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मौत हो, मीडिया की ऐसे मामलों में बहुत दिलचस्पी रही है। जहां नकारात्मक हो वहां मीडिया अधिक दिलचस्पी रखता है और शीना की हत्या मामले में तो ग्लैमर, पैसा, अवैध सम्बन्ध, खून, रहस्य सब हैं इसलिए मीडिया भी दीवाना हो गया। वह तो पुलिस से पहले मामला हल करने में लगा है। सब शैरलॅक होलम्स बन गए हैं, कर्मचंद जासूस! इस दौड़ में वह 1965 की लड़ाई की स्वर्ण जयंती को भी लगभग भूल गया। हर चैनल को अपनी टीआरपी की चिंता है पर इस घटना से सरकार को अवश्य अस्थायी लाभ हुआ। जो मसले सरकार को परेशान कर रहे थे, गुजरात में हार्दिक पटेल का आंदोलन, प्याज का भाव, ओआरओपी, सब कुछ दिन पीछे पड़ गया।