कौन डालेगा अचकन?
2017 के शुरू में पंजाब विधानसभा के चुनाव होने हैं जिसे देखते हुए सभी पार्टियों में मंथन तथा उठक-पटक शुरू हो गई है। महत्वाकांक्षाएं छलांग लगा रही हैं। कांग्रेस के नेता सुनील जाखड़ का कहना है कि ‘कईयों ने अचकन सिलवा ली है।’ लेकिन डालेगा कौन? प्रकाश सिंह बादल/सुखबीर बादल, कैप्टन अमरेन्द्र सिंह या कोई और कांग्रेस नेता, या आप का कोई प्रतिनिधि या खुद सुनील जाखड़? अरविंद केजरीवाल भी अचकन डालने (वह तो अभी तक बुशशर्ट ही डालते हैं) की दौड़ में शामिल हो सकते हैं, जैसी चर्चा पंजाब में शुरू हो चुकी है? आखिर दिल्ली में क्या रखा है छोटी सी आधी-अधूरी हुकूमत है? पंजाब पूरे अधिकार सम्पन्न विकसित राज्य है। तीनों बड़ी पार्टियों अकाली दल, भाजपा तथा कांग्रेस में हालत अच्छी नहीं। अकाली दल को तीव्र शासन विरोधी भावना का सामना करना पड़ा रहा है। पंजाब वह प्रदेश है जहां सबसे अधिक कर लगे हैं। बिजली, पेट्रोल सबसे महंगे हैं। समाचार छपा है कि लुधियाना में कई सौ छोटे यूनिट सरकारी मार के कारण बंद हो गए हैं। मंडी गोबिंदगढ़ का स्टील उद्योग अंतिम सांस ले रहा है। ड्रग्स का मामला तो है ही। ऊपर से पंजाब सरकार को केन्द्र की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है।
यहां एक गठबंधन चल रहा है जो न जिंदा है न मरा हुआ है। दोनों पार्टियों का एक दूसरे के प्रति घोर अविश्वास है। भाजपा बुरी तरह से फंसी हुई है। वह अकेले चुनाव नहीं लड़ सकते पर अगर अकालियों के साथ जाते हैं तो बिलकुल डूब जाएंगे। हर दूसरे दिन यह समाचार प्रकाशित हो रहा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कमल शर्मा के किसी नजदीकी को ड्रग्स के मामले में पकड़ा गया है। अब फिर उनके ही गृह जिले फिरोजपुर के ग्रामीण अल्पसंख्यक मोर्चे के जिला भाजपा अध्यक्ष जरनैल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। कमल शर्मा के साथ उसकी तस्वीरें छपी हैं। इससे पहले उनका निजी सचिव ऐसे ही मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। कमल शर्मा का कहना है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे पर आधा दर्जन निकटवर्ती लोगों के ड्रग्स तस्करी में शामिल होने के बाद उनकी स्थिति आरक्षणीय हो गई है।
इससे भाजपा का दोतरफा नुकसान हो रहा है। एक, अब कमल शर्मा पूरी तरह से अकाली नेतृत्व की दया पर है जब चाहे सुखबीर बादल उनका प्लग खींच सकते हैं। एक दो तस्वीरें और निकालना ही बाकी है। दूसरा, कमल शर्मा के कारण भाजपा से ड्रग्स का मुद्दा छीन लिया गया है। भाजपा का नेतृत्व अब किस मुंह से अकालियों पर ड्रग्स को लेकर हमला करेगा जबकि उसके अपने प्रदेश अध्यक्ष के निकटवर्ती लोग ही इस धंधे में संलिप्त हैं? अक्तूबर में कमल शर्मा की अवधि पूरी हो रही है उनकी जगह नवजोत सिंह सिद्धू जैसे किसी व्यक्ति जिसकी विश्वसनीयता हो, को अध्यक्ष बना कर ही पार्टी की इज्जत बहाल हो सकती है नहीं तो कोई भाजपा को पंजाब में दिल्ली विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराने से रोक नहीं सकेगा। उधर कांग्रेस को अभी से ‘आप’ का डर सता रहा है कि कहीं अकाली-भाजपा विरोधी वोट कांग्रेस की तरफ जाने की जगह आप की तरफ न चले जाएं। कांग्रेस भी दिल्ली विधानसभा का सबक नहीं भूली पर कांग्रेस में बहुत लोग हैं जो अचकन सिलवाए बैठे हैं। इनमें प्रमुख हैं अमरेन्द्र सिंह लेकिन उल्लेखनीय है कि उनकी लम्बी कसरत के बावजूद दिल्ली से पूरा आशीर्वाद नहीं मिल रहा। उलटा उनकी ‘राखी बहन’ राजेन्द्र कौर भट्ठल ने कह दिया कि अमरेन्द्र अमृतसर में अकाली मदद से जीते हैं और कैप्टन की अध्यक्षता में पार्टी दो विधानसभा चुनाव हार चुकी है। संभव नहीं कि बीबी भट्ठल हाईकमान के इशारे के बिना यह गोलाबारी करतीं। फिर हाईकमान का इशारा क्या है? इशारा यही है कि अमरेन्द्र सिंह को तब ही स्वीकार करेंगे जब कोई और विकल्प नहीं होगा।
पंजाब की जनता है जो दोनों बड़ी पार्टियों से असंतुष्ट है। वह अपना तीसरा विकल्प ढूंढ रही है। वैसे भी अकाली नेतृत्व तथा कांग्रेस नेतृत्व में कोई अंतर नहीं। दोनों पर प्रमुख जाट परिवारों का कब्जा है और दोनों ही सामंतवादी तथा जागीरदार परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अमरेन्द्र सिंह तो प्रकाश सिंह बादल से अधिक जनता से कटे रहते हैं। तो क्या फिर पंजाब में तीसरे विकल्प अर्थात् आप का समय आ रहा है यह देखते हुए कि खुद अमरेन्द्र सिंह ने माना है कि आप को पंजाब में समर्थन है, विशेष तौर पर युवा वर्ग में?
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप का नेतृत्व अपना घर किस तरह संभालता है? पंजाब आप के अंदर भारी गड़बड़ है। एचएस फुलका ने भी अपील की है कि मेहरबानी कर स्वयंसेवकों के सपने को बचाने की कोशिश करें। पहले अमृतसर से डा. दलजीत सिंह का निष्कासन तथा अब अपने दो प्रमुख सांसद, धर्मवीर गांधी तथा हरिन्द्र सिंह खालसा का निलंबन कर आप हाईकमान ने अपने पांव पर कुल्हाड़ा चलाया है। इन सब की विश्वसनीयता है और समाज सेवा का रिकार्ड है। अरविंद केजरीवाल यह प्रभाव दे रहे हैं कि वह पार्टी में ऐसे किसी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो कभी उन्हें चुनौती दे सके और पार्टी के प्रभावशाली नेताओं से वह सहज नहीं। अब तो भगवंत मान का भी टेप बाहर आ गया है जिसमें वह यह शिकायत कर रहें हैं कि तिकड़मबाजी से पार्टी चलाई जा रही है और ऊपर से पंजाब पर नेता थोपे जा रहे हैं।
पंजाब में आप के लिए मौका है जो वह अपनी गलतियों के कारण ही गंवा सकते हैं। पंजाब में उनका भारी खामोश समर्थन है। चाहे बादल साहिब भाजपा के बारे कहें कि ‘जित्थे चाहो अंगूठा लगवा लो’ और कांग्रेस का हाईकमान अपनी अंतहीन बैठकों में लगा रहे, पंजाब की जनता दोनों के नेतृत्व से नाखुश है। अगर अम्बिका सोनी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो वह किसी को भी उत्साहित नहीं कर सकेंगी। लेकिन आप ने भी तो अपने आधे सांसद निलंबित कर दिए हैं। मार्क टली ने भी कहा है कि आप एक आदमी की पार्टी बन रही है। अरविंद केजरीवाल को यह प्रभाव हटाना चाहिए कि वह मुलायम सिंह यादव या जयललिता या ममता बैनर्जी के तानाशाही रास्ते पर चलना चाहते हैं। केवल ‘स्वराज’ का नारा लगाना ही काफी नहीं, वास्तव में पार्टी के अंदर स्वराज कायम करने की जरूरत है। बहरहाल मैं अपने सवाल पर लौटता हूं कि कौन डालेगा अचकन? यह चार बातों पर निर्भर करता है :-
(1) भाजपा का नेतृत्व पंजाब गठबंधन के प्रति कोई स्पष्ट नीति अपनाता है या नहीं? (2) कांग्रेस की बागडोर किसे संभाली जाती है? (3) क्या कमल शर्मा को हटा कर नवजोत सिंह सिद्धू जैसे किसी विश्वसनीय व्यक्ति को भाजपा की बागडोर संभाली जाती है? (4) क्या अरविंद केजरीवाल पंजाब के मैदान में उतरते हैं, अगर वह नहीं तो कौन होगा यहां लीडर? यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर आप की सरकार यहां बनती है तो पंजाब के सीएम का रुतबा अरविंद केजरीवाल से ऊपर होगा।
जब तक इन सवालों के बारे स्पष्टता नहीं हो जाती दर्जी भाईयों से निवेदन है कि अपनी कैंची अभी अपने पास ही रखें। मालूम नहीं कि किसकी, अचकन की, बुशशर्ट की, कुर्ता पजामा की या सलवार कमीज़ बनाने की जरूरत पड़े!