हम कैसा भारत चाहते हैं?
उत्तर प्रदेश के बिसाहड़ा के दादरी गांव की घटना जहां गौ मांस खाने की अफवाह पर सौ लोगों ने पत्थर मार-मार कर मुहम्मद इकलाख की हत्या कर दी और उसके एक बेटे को इतना मारा कि वह वेंटीलेटर पर है, पर गृहमंत्रालय का कहना है कि धार्मिक उन्माद और देश की धर्मनिरपेक्षता पर हमलों के बारे ‘शून्य बर्दाश्त’ दिखाई जानी चाहिए। गृहमंत्रालय का कहना है कि ‘दादरी की हाल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ को देखते हुए प्रदेशों को सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। पर इसका मतलब क्या है? एक भीड़ ने इकट्ठे होकर मात्र अफवाह पर उस शख्स की बीवी तथा बच्चों के सामने उसे पीट-पीट कर मार डाला और गृह मंत्रालय इस घटना को मात्र ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ ही समझता है? यह तो बर्बर अमानवीय तथा क्रूर घटना थी जिसे किसी भी सभ्य देश में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी घटनाएं तो सिख विरोधी दंगों के समय हमने देखी थीं। यह जंगलीपन की इंतहा थी। आज के आधुनिक भारत में इसकी इज़ाजत कैसे हो गई? उसके बाद भी बराबर राजनीति हो रही है। बिहार के चुनाव नजदीक होने के कारण राजनेता अधिक ही गैर जिम्मेवार हो रहे हैं। गौ मांस को चुनावी मुद्दा बना दिया गया है। गृहमंत्रालय ने उसके बारे क्या कर लिया? नफरत की राजनीति खेलने की खुली इज़ाजत कैसे दे दी गई? बिसाहड़ा को एक और मुजफ्फरनगर बनाने का प्रयास किया गया। कड़वी सच्चाई है कि जबसे केन्द्र में भाजपा की सरकार आई है देश का साम्प्रदायिक माहौल बिगड़़ा है। ‘परिवार’ से सम्बन्धित कई तत्व भड़क रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी यह तत्व कई बार बेलगाम हो गए थे। एक बार हालात तो ऐसे बन गए थे कि प्रधानमंत्री के मित्र बराक ओबामा को सार्वजनिक साम्प्रदायिक सद्भाव की नसीहत देनी पड़ी थी। अब फिर हालत खराब हो रहे हैं ध्रुवीकरण के प्रयास में देश को अशांत कर दिया गया है। मंदिर के लाउड स्पीकर से घोषणा की गई कि इकलाख के घर में गौ मांस है। यह कैसे हो गया? मस्जिदों से ऐसी घोषणाएं तो सुनी गई थीं लेकिन मंदिर का ऐसा दुरुपयोग तो पहली बार किया गया।
असली सवाल तो है कि हम कैसा भारत चाहते हैं? ऐसा भारत जहां शांत माहौल में सबका विकास हो या हम लड़ते झगड़ते रहें? प्रधानमंत्री देश को आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ आदि योजनाएं शुरू की गई हैं। वह विदेशों में आधुनिक भारत के प्रतिनिधि हैं। मैं उन्हें ‘राजदूत अद्भुत’ लिख चुका हूं लेकिन अब बाहर के लोग क्या सोचते होंगे कि यह खाक आधुनिक देश है जहां ऐसी असभ्य प्रवृत्तियां पनप रही हैं कि बगैर छानबीन किए एक व्यक्ति को घर के बाहर घसीट कर भीड़ ने हत्या कर दी? यहां भीड़ का राज्य है या कानून का? ऐसी घटनाओं से न केवल देश की छवि खराब होती है बल्कि हिन्दू धर्म की छवि भी बिगड़ती है। जो हिन्दू धर्म के ठेकेदार बन नफरत फैला रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि वह अपने धर्म का भारी अहित कर रहे हैं। मेरे धर्म का दर्शन उदार है, सहिष्णु है, आधुनिक है। हमें पीछे की तरफ धकेलने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? यह स्वीकार नहीं है। विश्व भर में हमारी छवि एक बर्बर समाज की बन जाएगी जहां इस्लामिक स्टेट जैसा तत्काल न्याय होता है। 10 में से 7 दोषी एक भाजपा नेता के रिश्तेदार हैं। यह पार्टी किस तरफ चल रही है? भाजपा के प्रवक्ताओं ने इस घटना की सीधी निंदा नहीं की इसे मात्र ‘दुर्घटना’ कहा जा रहा है, ‘गलतफहमी’ कहा जा रहा है जबकि यह सीधी नृशंस और अमानवीय घटना है, जंगलीपन है। अफसोस है कि इन मामलों पर प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं। वह देश के नेता हैं उन्हें आगे आकर देश को सही दिशा देनी चाहिए और जो गलत है उसे गलत करार देना चाहिए।
देश ने पिछले चुनाव में नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडे पर मोहर लगाई थी। देश ने इसलिए भाजपा को बहुमत नहीं दिया था कि वह देश को पीछे की तरफ धकेल दे, विधानसभा चुनाव जीतने के लिए देश का माहौल ही बिगाड़ दे। संघ तथा भाजपा से सम्बन्धित बहुत लोग बहक चुके हैं। इस मामले में गिरिराज किशोर तथा साध्वी प्राची, संगीत सोम जैसे लोग तो धारावाहिक अपराधी हैं। यह लोग प्रधानमंत्री को मिले जनादेश का मज़ाक उड़ा रहे हैं। मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थक रहा हूं और आज भी हूं। मेरा विश्वास है कि उनमें देश को ऊंचाइयों तक ले जाने का दम है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वह आगे आकर नेतृत्व दें और नफरत फैलाने की साजिश पर लगाम लगवाएं। देश का भविष्य एक चुनाव जीतने-हारने से अधिक महत्व रखता है। ऐसे महत्वपूर्ण मामले पर इस नाजुक समय खामोश रह कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निराश कर रहे हैं। देश उनकी तरफ देख रहा है लेकिन मजबूरी में या वफादारी के कारण वह चुप हैं। कम से कम अपने मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों तथा विधायकों पर तो उन्हें लगाम लगानी चाहिए थी। कहीं यह न हो कि विकास का उनका मुद्दा पीछे पड़ जाए और मार काट प्रमुख बन जाए। राजधानी से 50 किलोमीटर दूर ऐसी बर्बर घटना घट जाए और प्रधानमंत्री खामोश रहें, यह बहुत दुख की बात है।
अपने पिता की दर्दनाक मौत के बाद इकलाख के पुत्र मुहम्मद सरताज से जब एक टीवी कार्यक्रम में यह पूछा गया कि उसका राजनेताओं के बारे क्या कहना है तो उसका जवाब था, ‘मैं सब को दोषी नहीं ठहरा सकता। कुछ बुरे हैं लेकिन अधिकतर अच्छे हैं।’ वायु सेना में काम कर रहे मुहम्मद सरताज ने इतनी घोर ज्यादती के बाद भी कहीं कड़वाहट नहीं दिखाई। अपने परिवार के साथ हुई इस बर्बर घटना के बाद भी उसका कहना था, ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा, मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर करना।’ वह शांति तथा भाईचारे की अपील कर रहा था। आशा है जालिम अब तो शर्मिंदा होंगे। जिन्होंने धर्म के नाम पर यह घोर अधर्म किया उनसे मेरा पूछना है कि असली देशभक्त कौन है, आप या मुहम्मद सरताज जो गुस्सा निकालने की जगह अभी भी अपने उस देश की प्रशंसा कर रहा है जहां बहशियों ने उसका बाप छीन लिया और भाई को इतना मारा कि शायद वह तमाम उम्र विकलांग रहेगा? कितने दुख की बात है कि इस 60 मिनट के बहशीपन के कारण 150 साल पुराना रिश्ता टूट रहा है। मुहम्मद सरताज का परिवार अब अपना गांव छोड़ रहा है।