
भाजपा को दुश्मनों की जरूरत नहीं
अपने ही वह काम बखूबी कर रहे हैं! भाजपा के मंत्रियों तथा नेताओं द्वारा रोजाना आधार पर विवाद खड़ा करने की प्रवृत्ति में अब पूर्व थल सेनाध्यक्ष तथा राज्यमंत्री वीके सिंह ने नया विस्फोट कर दिया है। हरियाणा में सुनपेड़ की घटना जहां पेट्रोल डाल दो नन्हें दलित बच्चों को जला दिया गया था, का जिक्र करते हुए जनरल सिंह का कहना था, ‘स्थानीय घटनाओं का केन्द्र सरकार से सम्बन्ध मत रखिए। इंक्वायरी चल रही है…यदि वहां किसी ने कुत्ते को पत्थर मार दिया तो सरकार जिम्मेवार है…ऐसा नहीं है।’ जहां तक केन्द्रीय सरकार की जिम्मेवारी का सवाल है जनरल सिंह सही हैं कि हर घटना के लिए उसे जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता पर उनके द्वारा दो नन्हें दलित बच्चों की मौत की तुलना कुत्ते को पत्थर मारने से करना न केवल अस्विकार्य है बल्कि यह कथन असामान्य तौर पर अमानवीय, अहंकारी, असंवेदनशील तथा जातिवादी है। बाद में अवश्य कहा गया कि मेरा यह मतलब नहीं था। उन्होंने माफी भी मांग ली पर देश भर में प्रभाव तो गलत गया।
बच्चों की हत्या के बारे यह टिप्पणी निष्ठुर है। प्रदेशों में बहुत कुछ होता रहता है केन्द्रीय सरकार उसके लिए जिम्मेवार ठहराई नहीं जा सकती। बुद्धिजीवियों की जो भी हत्याएं हुई हैं वह उन प्रदेशों में हुई हैं जहां गैर भाजपा सरकारें हैं पर ऐसी घटनाओं के बारे केन्द्रीय नेतृत्व अधिक संवेदनशील तो हो सकता है। जनरल सिंह की टिप्पणी उस दिन आई जब मोदी सरकार के लिए दो अच्छी खबरें थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती का नींव पत्थर रखा जो 29वीं प्रदेश राजधानी होगी। 1800 सालों के बाद अमरावती फिर बसने जा रही है। सिंगापुर की सहायता से प्रधानमंत्री की स्मार्ट सिटी की अवधारणा को मूर्तरूप दिया जाएगा लेकिन जो दिन केन्द्र के लिए गर्व करने का था वह जनरल सिंह के असंवेदनशील बयान के कारण बदनामी का दिन बन गया। सारा दिन टीवी चैनल अमरावती को भूल कर जनरल सिंह को लताड़ते रहे। इसी दिन विजयदशमी के अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी खुल कर मोदी सरकार की प्रशंसा की। मोहन भागवत के प्रमाणपत्र से मोदी सरकार को राहत मिलेगी पर जिस विश्वास के वातावरण की बात मोहन भागवत कर रहे हैं उसे भंग करने में खुद मोदी सरकार के जरनैल और दूसरे लोग लगे रहते हैं। कई लोग तो धारावाहिक दोषी हैं। यह समय है जब देश प्रधानमंत्री के विकास के मंत्र पर केन्द्रित होता। जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत एक महाशक्ति की तरह जगह लेता। लेकिन हम उन बातों में उलझ रहे हैं जो सदियों से हमें जकड़े हुए हैं और हमें पिछड़ा रखे हुए हैं। धर्म और जाति के मतभेद सदैव इस समाज में रहे हैं लेकिन अब सत्तारूढ़ लोग ही इन्हें हवा दे रहे हैं।
भाजपा वाले अपना नुकसान कर रहे हैं। एक एक कर इमारत की ईंट को कमजोर किया जा रहा है। यह 24&7 टीवी का युग है आप जो बात असावधानी से कहेंगे वह आपका पीछा करती रहेगी। मैं मानता हूं कि मीडिया के एक हिस्से का रुख भाजपा विरोधी है। विशेष तौर पर अंग्रेजी मीडिया को ‘भगवा’ से चिड़ है लेकिन आप उन्हें मौका क्यों दे रहे हैं? असली समस्या है कि बहुत लोग हैं जो धर्म या जाति के ठेकेदार बन बैठते हैं। मुम्बई में शिवसेना देशभक्ति की ठेकेदार बनती जा रही है। झगड़ा भाजपा से है लेकिन उनकी बेहूदा हरकतों से प्रभाव यह मिलता है कि जैसे भारत में भी एक तालिबान खड़ा हो रहा है। कराची में डॉन अखबार में हसन रज़ा अपने ब्लॉग में भारत-पाक पर लिखते हैं, ‘कोई भी देश दूसरे पर उंगली उठाने की स्थिति में नहीं है क्योंकि दोनों ने अपनी-अपनी तरफ के धर्मांध को मजहब के नाम पर शांति तथा मानवता को नुकसान पहुंचाने की इजाजत दे दी है।’ हमारी तुलना पाकिस्तान के साथ होनी शुरू हो गई है। यह कितने शर्म की बात है।
हमारा दर्शन उदार तथा बहुलतावादी है इसे किसी के संकीर्ण एजेंडे में सीमित नहीं किया जा सकता। अगर यहां विविधता खत्म करने का प्रयास किया गया तो बहुत तबाही होगी। देश की नींव हिल जाएगी। पर यहां तो सहनशीलता खत्म होती नजर आ रही है। लोग झट कानून हाथ में लेने लग पड़े हैं। केन्द्र सरकार से लेकर प्रादेशिक सरकारों तक सबको चिंतित होना चाहिए कि व्यवस्था में भरोसा कम हो रहा है। पंजाब में यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। हमारे राजनीतिक दल बहुत अधिक वोट की राजनीति करते हैं। कहने से पहले देखा जाता है कि कम्बख्त वोट पर कितना असर पड़ेगा। सुनपेड़ गांव पहुंच कर इतनी बर्बरता के बीच भी राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी और संघ को लताडऩा नहीं भूले।
हालात कितने गंभीर हैं इस बात से पता चलता है कि राष्ट्रपति बार-बार सावधान कर रहे हैं कि देश अधिक असहिष्णु बनता जा रहा है। यह सामान्य नहीं कि देश के प्रथम नागरिक बार-बार ऐसी चेतावनी दें। वह संविधान के संरक्षक हैं वह ऐसा कह अपना धर्म निभा रहें हैं। प्रधानमंत्री मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी अराजक तत्वों को चेतावनी दे चुके हैं लेकिन यहां उनकी कमजोरी है। वह ऐसे तत्वों के खिलाफ कदम उठाने से परहेज कर रहे हैं। इनमें से एकाध के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती तो देश शांत हो जाता। ये भटकते भड़कते लोग सरकार की अपनी उपलब्धियों पर पलीता लगा रहे हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सही कहा है कि बार-बार कहा नहीं जा सकता कि हमारी बात को गलत ढंग से पेश किया गया। इस सरकार को तो दुश्मनों की जरूरत ही नहीं, अपने ही यह काम अद्भुत ढंग से और पूरी लग्न से कर रहे हैं जिसके बारे कहा जा सकता है,
आग तो अपने ही लगा देते हैं
गैर तो सिर्फ हवा देते हैं!
जिन्होंने 2014 के चुनाव में विकास के नाम पर भाजपा को समर्थन दिया था वह परेशान हैं कि देश जा किधर रहा है? हिन्दुत्व की परिभाषा ही विकृत की जा रही है। सरकार को स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि देश कट्टरवादी और रूढि़वादी संगठनों के संकीर्ण एजेंडे के अनुसार नहीं बल्कि संविधान के अनुसार चलेगा। इस बीच हरियाणा में सुनपेड़ गांव की घटना पर गहरा दुख है लेकिन मैं देख रहा हूं कि इस घटना को लेकर किसी कथित बुद्धिजीवी ने प्रोटेस्ट नहीं किया, किसी लेखक ने अपना साहित्य अकादमी अवार्ड वापिस नहीं किया, किसी ने यह नहीं कहा कि यह बर्दाश्त नहीं मैं पद्मश्री लौटा रहा हूं। ऐसा क्यों है कि हमारे बुद्धिजीवी दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं पर तड़पते नहीं और वह केवल हिन्दू-मुस्लिम मामले पर ही अटके हुए हैं? ऐसी सुविधाजनक उनकी अंतरात्मा क्यों है? क्या दलित का खून खून नहीं है?