अगर क्राईम अडल्ट है तो सजा भी अडल्ट चाहिए
16 दिसम्बर को दिल्ली के कुख्यात निर्भया बलात्कार मामले का उस वक्त नाबालिग अपराधी तीन साल की सजा पूरी करने के बाद बालगृह से रिहा हो जाएगा पर सवाल तो यह है कि ऐसे भेड़ियों को समाज में खुले घूमने की इजाज़त होनी चाहिए सिर्फ इसलिए कि अपराध करते वक्त वह नाबालिग था? जिस वक्त यह रेप हुआ था उस वक्त उन छ: अपराधियों में से यह लड़का सबसे खतरनाक बताया गया था। उसने ही सबको अपराध के लिए उकसाया था। निर्भया के माता-पिता का कहना है कि इसे छोड़ने से पहले इसका चेहरा पूरी दुनिया को दिखाना चाहिए क्योंकि समाज के लिए वह बड़ा खतरा है। इस मामले में चार दोषियों को मौत की सजा मिली थी जबकि एक ने जेल में आत्महत्या कर ली थी पर इस 17 साल 9 महीने के लड़के पर जुवेनाईल एक्ट के तहत मुकद्दमा चलाया गया था और उसे महज तीन साल के लिए बालगृह भेज दिया गया था।
जिस वक्त इस लड़के को सजा दी गई उस वक्त भी उसके अपराध की नृशंसता को देखते हुए यह अपर्याप्त समझी गई थी लेकिन कानून के हाथ बंधे हुए थे। अब उसे रिहा किया जाएगा क्योंकि कानून यह ही कहता है। पर क्या यह न्याय होगा? अमेरिका में यौन अपराधियों की सूची सार्वजनिक की जाती है ताकि समाज उनके प्रति सावधान रहे। ऐसा ही कुछ हमें करने की जरूरत है नहीं तो ऐसे लोग खुले समाज में घूमते रहेंगे जब तक कि वह दूसरा अपराध नहीं करते। हमारा समाज बीमार लगता है। राजधानी दिल्ली में नाबालिग अपराध में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका एक कारण है कि कानून बहुत देर लगाता है। पेशावर स्कूल पर आतंकी हमला करने वालों को एक साल से कम समय में फांसी लगा दी गई अगर हमारा देश होता तो पन्द्रह-बीस वर्ष तो लगते ही। दूसरी समस्या है कि नाबालिगों के लिए कानून बहुत नरम है जिस कारण नाबालिग अपराध में लगातार वृद्धि हो रही है। वह जानते हैं कि अगर पकड़े गए तो दो-तीन साल बालगृह में रह कर वह छूट जाएंगे इसीलिए अपराधी भी उनका इस्तेमाल अधिक करते हैं। इसीलिए यह मांग भी उठ रही है कि अपराध करने वाले नाबालिग की आयु 18 वर्ष से कम कर 15 वर्ष की जानी चाहिए। कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि अपराधी तो बच्चे हैं उन्हें पूरे कानून के आगे खड़े नहीं करना चाहिए क्योंकि जेल में जाकर वह पक्के अपराधी बन जाएंगे लेकिन सवाल तो यह है कि क्या निर्भया से बलात्कार कर हत्या करने वाले जैसे नाबालिग अपराधी किसी खूंखार अपराधी से कम हैं? अंग्रेजी के एक अखबार ने संपादकीय में लिखा है कि ‘राज्य को बचपन को पुण्य अवस्था समझना चाहिए।’ लेकिन क्या रेप बचपन वाला अपराध है?
दिल्ली में दो नन्हीं बच्चियों के साथ बलात्कार हो चुका है जिनकी उम्र महज दो तथा चार वर्ष थी। उनके बारे तो यह भी नहीं कहा सकता कि उन्होंने भड़कीले कपड़े डाले हुए थे या देर रात तक घूम रही थीं? 2008 और 2014 के बीच बच्चों के खिलाफ अपराध में 400 प्रतिशत की भयावह वृद्धि हुई है। देश के कई हिस्सों में बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटनाएं हो चुकी हैं जिससे परेशान होकर मद्रास हाईकोर्ट ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराध करने वालों को नपुंसक बनाने की सलाह दी है। हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश एन. कीरूबाकरण का कहना था, ‘पुराने कानून इतने सख्त नहीं कि उनके सही परिणाम निकलें। नपुंसक बनाने का सुझाव बर्बर जरूर लगता है लेकिन बर्बर अपराध की बर्बर सजा होनी चाहिए।’ जैसे माननीय न्यायाधीश ने कहा भी है कि बहुत लोग सहमत नहीं होंगे लेकिन ऐसे लोगों को खुद को उन मां-बाप की जगह डालना चाहिए जिनकी बच्चियों के साथ दिल्ली में सामूहिक बलात्कार हुआ था। क्या ऐसे अपराधियों के साथ सभ्य तरीके से व्यवहार हो सकता है जो दो-दो, चार-चार साल की बच्चियों को भी नहीं छोड़ते? क्या इन्हें फांसी पर नहीं लटकाना चाहिए? कानून प्रभावी नहीं और इस अपराध की लहर से निबटने में बेबस है इसलिए क्या यह समय नहीं आ गया कि जिसे मेनका गांधी ने ‘कानून की विसंगति’ कहा उसे दुरुस्त किया जाए? क्या हम तब तक इंतज़ार करते रहेंगे जब तक वह बालिग होकर छूट कर और अपराध नहीं करते? देश इंतज़ार कर रहा है कि जन प्रतिनिधि देश में नाबालिग अपराध की बाढ़ पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून बनाएंगे। जो नाबालिग हैं और बालिगों वाला अपराध करते हैं वह किसी रहम के अधिकारी नहीं होने चाहिए। आज हर मां-बाप अपने बच्चों के प्रति चिंतित है। कानून धीमा है और कमजोर है। जरूरी है कि अगर क्राईम अडल्ट है तो सजा भी अडल्ट ही मिलनी चाहिए।
आज अश्लीलता एक क्लिक दूर है। एक क्लिक कर बच्चे सैक्स देख सकते हैं। सरकार द्वारा पोर्नोग्राफी पर पाबंदी लगाने के प्रयास सफल नहीं हुए। जो वर्ग बच्चों के साथ यौन अत्याचार को लेकर सबसे अधिक मुखर है वह ही पोर्न पर पाबंदी पर भड़क उठता है। तब कहा जाता है कि एक व्यस्क अपने घर के अंदर क्या देखता है क्या नहीं यह किसी सरकार के दखल की बात नहीं। पर समस्या व्यस्क की ही नहीं, समस्या अव्यस्क की भी है जिसका नाजुक उम्र में खुले तथा विकृत सैक्स से सामना होता है। चाइल्ड सैक्स भी कई साइट्स पर मिलता है। देश में बढ़ते यौन अपराध में इसका बड़ा हाथ है। जब सरकार कुछ पाबंदी लगाने का प्रयास करती है तो जिसे सिविल सोसायटी कहा जाता है वह चीख चिल्ला उठती है। सवाल तो उठता है कि जो ‘सिविल’ नहीं हैं उनका क्या किया जाए? सन्नी लियोनी जैसी पोर्न फिल्मों की हीरोइन को अपना कर बालीवुड क्या संदेश दे रहा है? हर किस्म की गंदगी चलेगी जब तक वह बिकती है?
दिल्ली एक अति भीड़ भरा, आतंकित और प्रदूषित नरक बनता जा रहा है। पुलिस हर जगह हर आदमी के साथ नहीं लगाई जा सकती। इससे अंतर नहीं पड़ेगा कि पुलिस पीएम के नीचे हो या सीएम के, असली समस्या तो समाज में भरे शैतानों से है। निर्भया के साथ तो एक लड़का था, इन दो अबोध बच्चियों के साथ कोई ब्वाय फ्रैंड नहीं था फिर इन्हें क्यों उठाया गया? मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि ‘लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है।’ यह मानसिकता है जो बलात्कारी को प्रेरित करती है। गलती? क्या इन बच्चियों से सामूहिक बलात्कार गलती की श्रेणी में आएगा? अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि दिल्ली में वह अपनी बेटी की सुरक्षा के बारे चिंतित रहते हैं। वास्तव में हर मां-बाप को चिंतित होना चाहिए। आखिर इन अबोध बच्चियों के साथ बलात्कार उन्होंने किया जिन्हें वह ‘भैय्या’ समझती थीं, जिन्हें वह ‘अंकल’ कहती थीं। वह तो उस उम्र में हैं कि बता भी नहीं सकतीं कि उनके साथ हुआ क्या है।
बर्बर अपराध की बर्बर सजा ही होनी चाहिए। नाबालिग समझ कर उन पर किसी भी तरह की रहमदिली दिखाना दूसरे नाबालिगों को अपराध की दुनिया धकेलने का स्पष्ट संदेश है। मुलायम सिंह यादव जैसे मानवता विरोधी नेताओं का यह कहना कि ‘लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है’ निश्चित रूप से भयावह है।