
भाजपा के कुछ नेताओं ने आमिर खान का असहिष्णुता वाला बयान आलोचना के लिए फिर बस्ते से निकाल लिया है जिसमें आमिर खान ने कहा था कि देश के अंदर हालात को देख कर उनकी पत्नी इतनी घबरा गई कि उसने यह सवाल किया कि क्या देश छोडऩे का समय आ गया है? आमिर खान के बयान में उल्लेखनीय है कि उसने अपनी पत्नी, जो हिन्दू है, के कंधों से बंदूक चला दी थी। अगर दम होता तो कहता कि मैं यह कह रहा हूं, पर नहीं ‘मैं’ तो स्तब्ध रह गया कि पत्नी ने इतनी बड़ी बात कह दी। उस वक्त खुद को असहिष्णुता के प्रति असहिष्णु बताना फैशन था। फिल्म उद्योग में सबसे पहले शाहरूख खान ने यह चिंता व्यक्त की थी लेकिन अपनी सोच के प्रति वह कितने दृढ़ हैं यह इस बात से पता चलता है कि जब फिल्म ‘दिलवाले’ की रिलीज़ नजदीक आ गई तो शाहरूख माफी मांगते नज़र आए। सारी चिंता हवा में गायब हो गई क्योंकि अब सहिष्णुता नहीं पैसा खतरे में था चाहे उनकी माफी उनकी फिल्म का दिल तोडऩे से बचा नहीं सकी।
अब आमिर खान की बारी है। उनकी फिल्म ‘दंगल’ कुछ सप्ताह के बाद रिलीज़ होने वाली है और मध्यप्रदेश के चंचल मंत्री विजयवर्गीय ‘दंगल का मंगल’ करने की धमकी दे रहे हैं और राम माधव का कहना है कि देश की प्रतिष्ठï के बारे आमिर खान आटो चालकों को नहीं बल्कि अपनी पत्नी को समझाएं। मैंने उस वक्त लिखा था कि हैरानी की बात है कि जो खान अभिनेता अरबों रुपए कमा चुके हैं उन्हें अब यह देश असहिष्णु नज़र आ रहा है और मेरा यह व्यक्तिगत अहिंसक निर्णय है कि मैं आमिर खान की फिल्में नहीं देखूंगा, अगर कोई और देखना चाहे तो मुझे कोई तकलीफ नहीं। वैसे मैंने ‘दिलवाले’ भी नहीं देखी क्योंकि ज़हन में शाहरूख की भी नकारात्मक छवि बन गई है। अनावश्यक सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इन दो खान अभिनेताओं ने अपनी छवि का नुकसान किया है लेकिन फिर भी मैं विजयवर्गीय की धमकी से सहमत नहीं हूं। यह आजाद देश है। लोग खुद फैसला करें कि फिल्म देखनी है या नहीं।
जहां हम शाहरूख तथा आमिर खान की बेवफाई से नाराज़ हैं वहां पाकिस्तान उनके सिंगर अदनान सामी के पलायन तथा भारत की नागरिकता हासिल करने से अत्यंत कष्ट में है। वहां कई टीवी चैनल उसके ‘विश्वासघात’ तथा ‘देशद्रोह’ की शिकायत कर रहे हैं विशेषतौर पर भारतीय पासपोर्ट प्राप्त करने के बाद सामी का ट्वीट ‘जयहिन्द’ उनके गले नहीं उतर रहा। इस पूर्व पाकिस्तानी का यह भी कहना है कि भारत सबसे सहिष्णु देश है। उल्लेखनीय है कि अदनान सामी भी खान हैं। विडम्बना है कि जो यह दो खान भारत में हैं उन्हें यहां तकलीफ हो रही थी जबकि यह पूर्व पाकिस्तानी खान यहां आनंद में है। उसके वालिद पाक वायुसेना के पायलट रह चुके हैं तथा 14 देशों में पाकिस्तान के राजदूत भी रहे हैं। अर्थात् पाकिस्तान के एक उच्च परिवार से सम्बन्धित है। वह 15 वर्ष पहले भारत में दाखिल हुआ था और यहां आकर एक लोकप्रिय सिंगर बन गया। आखिर मीरा या फवाद खान जैसे कई पाकिस्तानी कलाकार भारत में और विशेषतौर पर बालीवुड में अपनी किस्मत आजमाते रहते हैं। उनकी सफलता पाकिस्तानियों को परेशान नहीं करती क्योंकि जैसे न्यूजवीक पाकिस्तान के सलाहकार संपादक खालिद अहमद ने लिखा है, ‘चाहे भारतीय टीवी चैनलों को वहां से हटा दिया गया पर बालीवुड को सांस्कृतिक तौर पर भूखे पाकिस्तान से बाहर नहीं रखा जा सकता।’ सलमान खान की ‘बजरंगी भाईजान’ जब प्रदर्शित हुई तो लोग सुबह पांच बजे टिकट लेने के लिए लाईन में लग गए थे।
कई बीवियां बदलने तथा लगभग 100 किलो भार कम करने के बाद सामी ने फैसला कर लिया कि अगर उसने खुद को ‘लिफ्ट’ करना है तो यहां ही मुमकिन है नीरस पाकिस्तान में नहीं। वहां अपनी अलग इस्लामी पहचान की बहुत चिंता रहती है विशेषतौर पर भारत के सांस्कृतिक हमले की उन्हें अधिक ही चिंता रहती है। जिस निर्माता कबीर खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ वहां इतनी लोकप्रिय रही उसी की अगली फिल्म ‘फैंटम’ पर वहां प्रतिबंध लगा दिया गया। पाबंदी तो हमारे यहां भी फिल्मों पर लगती रहती है। किसी की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं तो किसी की प्रादेशिक भावना। सिनेमाघरों में तोडफ़ोड़ अकसर होती है। फिल्म देखना या न देखना यह चुनाव दर्शक पर छोड़ देना चाहिए। हमें पाकिस्तान नहीं बनना। कुछ लोग यहां भी बिना बुलाए देश के हित के रखवाले बन जाते हैं। हम पाकिस्तान में कट्टरवाद का खूब मज़ाक उड़ाते हैं जबकि हमने भी गरीब कीकू शारदा ‘पलक’ को जेल भेज दिया। खुशवंत सिंह को भुला कर हम संता-बंता पर भी पाबंदी लगाना चाहते हैं।
पाकिस्तान इस मामले में हमसे अधिक असुरक्षित है क्योंकि वह अभी तक तय नहीं कर सके कि वह आखिर हैं क्या? उनकी उदार इस्लामी संस्कृति थी लेकिन सऊदी अरब का कट्टर वहाबी प्रभाव थोपा जा रहा है। वैसे पाकिस्तानी नाच गाना, खाना पीना सब पसंद करते हैं। यह वह पाकिस्तान है जहां कुछ ठेकेदार तय कर रहे हैं कि समाज की दिशा क्या हो। लेखिका फराहनाज़ इसफानी लिखती हैं, ‘मेरे पाक में फैज़ थे, कव्वाली थी, शेरो-शायरी थी, मार्क्स था। ऐसा नहीं था।’ मुझे याद है कि जब फरवरी 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के दौरान रात को भारत का उच्चायोग पार्टी देता था तो सारा लाहौर का मीडिया वहां उमड़ आया था क्योंकि वहां पाबंदी है पर यहां मुफ्त शराब मिल रही थी। वहां लोगों की सोच तथा जिन्दगी पर पहरा डालने का प्रयास किया जाता है। जब खुली सोच खत्म हो जाए तो समाज विकलांग बन जाता है जैसा वहां हो रहा है। कलाकारों के लिए विशेष समस्या है।
बहरहाल अदनान सामी के पलायन से कई पाकिस्तानी दुखी हैं। पाकिस्तानी पश्चिम में भी तो सैटल होते हैं लेकिन अदनान सामी ने तो ‘इंडियन’ बनने की जुर्रत की है। जहां तक आमिर खान का सवाल है यह मामला व्यक्ति विशेष पर छोड़ देना चाहिए कि उसने आमिर की फिल्म देखनी है या नहीं? अगर लोगों को पसंद नहीं तो देखने नहीं जाएंगे जैसे मैंने फैसला किया हुआ है कि आमिर खान की फिल्म नहीं देखूंगा। और अदनान सामी को उनका नया भारतीय पासपोर्ट मुबारिक! लेकिन बिन मांगी सलाह देना चाहूंगा कि इस पासपोर्ट पर वह अपने ‘फादरलैंड’ जाने का प्रयास न ही करें। पाकिस्तानी अब उनसे नज़र मिलाने को तैयार नहीं।