गणतंत्र दिवस वह मौका है जब हम अपने अतीत, वर्तमान तथा भविष्य की तरफ नज़र दौड़ाएं। आत्ममंथन करें कि क्या हमें जहां पहुंचना था वहां हम पहुंच सके हैं? अगर नहीं तो कहां कमी रह गई, क्या कुछ करना बाकी है? आजादी से पहले राम प्रसाद बिसमिल जो बाद में शहीद कर दिए गए थे, ने लिखा था,
कभी वो दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना ही आसमां होगा
अब हमें आजाद हुए साढ़े 68 साल हो गए हैं। यह वक्त काफी होता है यह जायज़ा लेने के लिए कि क्या हम सही रास्ते पर हैं क्योंकि बिसमिल ने यह भी लिखा था,
उरूज़ कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा!
क्या हम उस कामयाबी को हासिल कर सके हैं जिसकी कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों तथा देशभक्तों ने की थी? निश्चित तौर पर हमने बहुत कामयाबी हासिल की है। बड़ी कामयाबी तो यही है कि हम हमारे साथ आजाद पाकिस्तान नहीं बने। इसके लिए आजादी के बाद हमें मिले सही नेतृत्व का बड़ा योगदान है। संघ परिवार जवाहर लाल नेहरू की अवमानना की बहुत कोशिश करता है पर अगर आज भारत एक प्रगतिशील लोकतंत्र है तो बहुत कुछ नेहरू का योगदान है जिन्होंने आजादी के बाद हमें भटकने नहीं दिया। गांधीजी और सरदार पटेल तो जल्द चले गए इसलिए देश को संभालने तथा हमें सही गणतंत्र बनाने का बहुत श्रेय पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जाता है।
और जो संविधान हमें दिया गया वह आज तक सही चल रहा है। कई बार संशोधन हुए। इंदिरा गांधी ने 19 महीने एमरजेंसी लगाई लेकिन संविधान की मूल भावना को कोई बदल नहीं सका। बाद में हम ‘सोशलिस्ट’ तथा ‘सैक्युलर’ बन गए लेकिन यह संविधान अब भी लोगों को संरक्षण देता है। पिछली सरकार के समय आरटीआई जैसे कानून ने लोकतंत्र तथा नागरिक आजादी को बल दिया है।
पर आज जरूर एहसास होता है कि हम लडऩे-झगडऩे वाला लोकतंत्र बन गए हैं। हर मामले पर झगड़ा है। आम सहमति खत्म हो गई। जो वर्ग सबसे सुविधाजनक स्थिति में है, घर बार, प्रतिष्ठï, पैसा, ताकत, पहचान सब कुछ है वह ही असहिष्णुता के बारे बड़ी शिकायत कर रहा है। हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है कि हम अपना गुब्बार निकाल लेते हैं अगर यह दबा रह जाए तो विस्फोट होगा। जिसे वी.एस. नायपाल ने ‘सहस्त्र बगावतें’ कहा था वह इस देश को मजबूत करती हैं।
पर कहीं तो सीमा होनी चाहिए। आज हालत है कि हर मामले में मतभेद हैं। राष्ट्रीय समन्वय ही टूट गया लगता है। एक नेता नहीं जिसकी बात सब सुनने को तैयार हों। राजनीति सब पर हावी हो गई है। राजनीति भी जरूरी है लेकिन इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए। हम तो गाली-गलौच तक पहुंच गए हैं। दिल्ली का मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री को ‘मनोरोगी’ कहता है। यह शर्मनाक है। एक भी नेता नहीं रहा जो तुच्छ राजनीति से ऊपर उठ कर आम सहमति कायम कर सके।
वैसे तो राजनीतिज्ञ हर जगह एक जैसे होते हैं लेकिन हमारे अधिक ही गैर जिम्मेवार नज़र आते हैं। अगर हम इतना भ्रष्ट देश बन गए हैं तो हमारे राजनेताओं के कारण ही। क्योंकि इस हमाम में लगभग सब नंगे हैं इसलिए कोई किसी पर कार्रवाई नहीं करता। हर कोई अपनी न्यूसैंस वैल्यू रखता है कि अगर मुझे हाथ लगाया तो मैं आग लगवा दूंगा।
अफसोस कि आज भी देश में दंगे होते हैं। मालदा में एक लाख की भीड़ ने थाना जला दिया। चेतावनी दी गई कि अगर हमें अवैध काम करने से रोका गया तो हम कानून और व्यवस्था की स्थिति कायम कर देंगे। आज के भारत में ऐसी इजाज़त कैसे दे दी गई? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का कहना है कि यह साम्प्रदायिक दंगा नहीं था, भीड़ ने तो पुलिस थाने पर हमला किया था। पर क्या पुलिस थाने पर हमला मामूली बात है? ऐसी तुच्छ राजनीति क्यों हो कि संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र में ऐसी अराजकता की इजाज़त है?
हैदराबाद में दलित छात्र द्वारा आत्महत्या बताती है कि संविधान में बराबरी का अधिकार देने तथा दलितों के लिए विशेष आरक्षण देने के बावजूद सामाजिक तथा प्रशासनिक पूर्वाग्रह खत्म नहीं हुए। ‘मेरा जन्म ही सबसे बड़ा हादसा है’, अपने पत्र में रोहित वेमुला का यह एक वाक्या हम सबके खिलाफ एक अभियोग से कम नहीं है। एक अत्यंत प्रतिभाशाली युवक को अपनी जिन्दगी खत्म करनी पड़ी क्योंकि वह समझ बैठा था कि इस देश में उसे बराबरी तथा न्याय नहीं मिलेगा। इस देश में और कितने ऐसे युवक हैं जो इसी तरह हताश हैं, अंदर ही अंदर तड़प रहें हैं? सरकार प्रशासनिक तथा कानूनी तौर पर बहुत कुछ करती है लेकिन अंदर से वह समाज को बदल नहीं सकी।
लेकिन दूसरी तरफ एक प्रगतिशील भारत है जो दुनिया के लिए एक मिसाल है। हमारा लोकतंत्र, हमारा संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी सबको प्रभावित करते हैं। हज़ार मतभेद के बावजूद भारत आज दुनिया का सबसे प्रगतिशील देश बन चुका है। तेज़ी से हम चीन को भी पछाड़ते जा रहे हैं। हमारे पास प्रतिभाशाली युवाओं का भंडार है जिन्हें अगर सही दिशा दी गई तो वह भारत को विश्व गुरू बना देंगे। लेकिन क्या दिशा मिलेगी?
अपने नेताओं से निराश इस देश को अब अपने युवाओं से बहुत आशा है। हमारे से पहली पीढ़ी ने देश को आजादी दिलवाई। हमने इसे संभाला पर कई गलतियां भी कीं। अब आगे ले जाने की जिम्मेवारी नई पीढ़ी की है। उनके रास्ते में बहुत रुकावटें हैं। सबसे बड़ी रुकावट तो राजनीति तथा राजनेता हैं जो देश को चैन नहीं लेने देते लेकिन जैसे राज्यसभा में 1 दिसम्बर 2015 को दिए गए अपने बढिय़ा भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा था, ‘बिखरने के बहाने इतने बड़े देश में बहुत मिल जाएंगे पर कुछ लोगों का दायित्व है कि जोडऩे का अवसर खोजें।’
कौन यह अवसर खोजेगा? कौन देश को इकट्ठा रखेगा? कौन हमारी ताकत और प्रतिभा को सही दिशा में चलाएगा? कौन रास्ते से रुकावटें हटाएगा? इस गणतंत्र दिवस पर इन सवालों पर सबसे अधिक विचार करने की जरूरत है।