
देखे हैं वह मंजर भी तारीख की नजरों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई!
हरियाणा धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए सामान्यता की तरफ लौट रहा है लेकिन जख्म इतना गहरा लगा है कि भरने में वर्षों लग जाएंगे। 30 लोग मारे गए। अनुमान है कि 20,000 करोड़ रुपए का विशाल नुकसान हुआ है पर इससे भी बड़ा नुकसान और हुआ है। यह नुक्सान हरियाणा की एक प्रगतिशील प्रदेश की छवि को लगा है। आपसी भाईचारे को लगा है। और प्रशासन पर भरोसे को लगा है। अगर रोहतक में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को काले झंडे दिखाए गए और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा पर वहां जूते फेंके गए तो यह अकारण नहीं। जब कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ झज्जर में लोगों से मिलने गए तो लोगों ने घरों के दरवाजे उनके लिए बंद कर दिए। जिनका सब कुछ लुट गया उनके पास गुस्सा निकालने के लिए इसके सिवाय चारा भी क्या था? गवाह अब सामने आ रहे हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुरथल के पास वाहनों को रोक कर महिलाओं को निकाल कर खेतों में ले जाकर उनके साथ बलात्कार किया गया। लोग तो अब हरियाणा में सफर करने से घबराते हैं।
ऐसी शर्मनाक स्थिति के लिए कौन जिम्मेवार है?
निश्चित तौर पर सबसे अधिक जिम्मेवारी जाट नेतृत्व की बनती है जो एक गैर जाट को हरियाणा के मुख्यमंत्री बनाए जाने को बर्दाश्त नहीं कर सके चाहे दूसरे गुंडे भी इस स्थिति का फायदा उठाने में लग गए। अगर आपने आंदोलन शुरू किया और लोगों को भड़काया तो इसे संभालने की जिम्मेवारी भी आप की ही बनती है। जाट जिनकी जनसंख्या 29 प्रतिशत है राजनीतिक ताकत हाथ से निकलने को बर्दाश्त नहीं कर सके। सभ्य समाज के हर नियम का उल्लंघन किया गया। हैवानियत की हदें पार की गईं। हरियाणा सरकार निवेश को आमंत्रित करने के लिए ‘हैपनिंग हरियाणा’ निवेश शिखर सम्मेलन बुला रही है लेकिन कौन उस प्रदेश में निवेश करेगा जहां प्रभावशाली जाति ने ही अपने प्रदेश को आग के हवाले कर दिया? हैपनिंग हरियाणा तो बर्निंग हरियाणा बन गया। जले हुए शोरूम, स्कूल, मकान, दुकानें इस बात का प्रमाण समझे जाएंगे कि हरियाणा निवेश के लिए सुरक्षित नहीं है।
हरियाणा के जाटों को आरक्षण मिलेगा या नहीं, यह तो समय और सुप्रीम कोर्ट बताएगा लेकिन उन्होंने खुद अपना घर तबाह कर लिया है। नौकरी की भर्ती के लिए आरक्षण की मांग रखी गई लेकिन अराजकता फैला कर वर्तमान नौकरियों को खतरे में डाल दिया गया है। कई लोग अपना व्यापार और उद्योग बाहर ले जाने की बात कर रहे हैं। हर जगह से यह शिकायत मिल रही है कि पुलिस लूटपाट तथा हिंसा की मूकदर्शक रही यहां तक कि जब पुलिस थानों पर हमले किए गए तब भी निष्क्रिय रही। पांच दिन अराजकता का नंगा नाच देखा गया जब सरकार अपनी जिम्मेवारी से भाग खड़ी हुई, पुलिस अपने थानों से गायब थी, फायर ब्रिगेड नहीं आए, सेना को कार्रवाई का हुकम नहीं था और लोग बेबस, बेसहारा अपनी जिन्दगी की कमाई उजड़ते देख रहे थे। पिछले दो दशकों में पुलिस में सबसे अधिक भर्ती जाटों की हुई है यही लोग अब उस प्रशासन को सहयोग नहीं दे रहे लगते।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक सचिव प्रो. वीरेन्द्र सिंह के आडियो टेप ने पोल खोल दी है जिसमें वह आंदोलन को उकसाते सुने गए हैं। वास्तव में इस सारे मामले में भूपिन्द्र सिंह हुड्डा की भूमिका संदिग्ध और शर्मनाक रही है। जरूरत तो थी कि वह उस वक्त अपने घर रोहतक जाते और स्थिति को शांत करते। वहां से तो वह तथा उनके सांसद पुत्र दीपेन्द्र सिंह हुड्डा भाग निकले। यह भी उल्लेखनीय है कि रोहतक में आईजी पुलिस के दफ्तर से लेकर किला रोड तक सात किलोमीटर पूरी तबाही कर दी गई। भीड़ ने कुछ नहीं छोड़ा। केवल हुड्डा की जायदाद छोड़ दी गई जबकि पड़ोसियों के घर जला दिए गए। जिस वक्त रोहतक जल रहा था हुड्डा जंतर मंतर पर भूख हड़ताल का नाटक कर रहे थे!
अगर साजिश है तो इसकी तह तक जाना चाहिए और अगर कोई बड़ा नेता काबू आता है तो परवाह नहीं की जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई ऐसी बदमाशी न कर सके लेकिन इसी के साथ प्रशासन की असफलता की भी बराबर जांच होनी चाहिए। उन अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने अपना धर्म नहीं निभाया। किन्होंने सही आदेश नहीं दिया और किन्होंने इसका पालन नहीं किया, यह स्पष्ट होना चाहिए। हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले का संज्ञान लिया है बेहतर है वह खुद विशेष कार्यदल गठित कर जांच की निगरानी करे।
इस संकट की घड़ी में मंत्रिमंडल भी विभाजित है। हरियाणा भाजपा ही दोफाड़ हो गई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रोहतक में वायदा किया कि सरकार दंगा करने वालों के खिलाफ एक्शन लेगी लेकिन कौन इस सरकार पर भरोसा करेगा जो उस वक्त निष्क्रिय रही जब ‘एक्शन’ लेने का असली मौका था? उनका कहना है कि मुरथल के व्याभिचारियों को बख्शा नहीं जाएगा पर कौन इस बात पर भी भरोसा करेगा यह देखते हुए कि अभी तक तो हरियाणा पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला। अनुमान है कि रोहतक में ही 200 दुकानें जलाई गईं, कई सौ कारें ही फूंक दी गईं। सरकार क्या करती रही? बिखरी जिंदगियों को कौन संभालेगा? इस दौरान हरियाणा सरकार की निष्क्रियता एक बड़ा स्कैंडल है। सेना की मौजूदगी में इतना नुकसान कैसे हो गया जबकि यह भी बताया गया कि केन्द्र ने प्रदेश का ‘नियंत्रण’ संभाल लिया और जिसे ‘वॉर रूम’ कहा जाता है वह चंडीगढ़ से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया है? एक सरकार की पहली जिम्मेवारी तो कानून तथा व्यवस्था को बनाए रखना तथा लोगों के जान तथा माल की रक्षा करना है। पर इसी में यह सरकार नाकाम रही।
इस सारे प्रकरण का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि हरियाणा ऊपर से नीचे तक बंट गया है। भाईचारा ही टूट गया। कई जगह जाटों तथा गैर जाटों में टकराव की खबर है। व्हट्सअप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया द्वारा एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। पर मनोहर लाल खट्टर के मंत्रिमंडल के भविष्य से अधिक महत्वपूर्ण हरियाणा का भविष्य है जहां गैर जाट समझते हैं कि उनके समर्थन से चुनी गई सरकार ने उनके साथ विश्वासघात किया है। देश के विभाजन की त्रासदी झेल चुके कई परिवार कह रहे हैं कि उनके लिए तो यह दूसरा विभाजन है।
अगर हरियाणा को जाति संघर्ष से बचाना है तो जाट समुदाय के नेताओं को पहल करनी होगी। आरक्षण की जरूरत, समय सीमा तथा विस्तार पर बहस तो होनी ही चाहिए लेकिन जरूरी है कि पहले हरियाणा को संभाला जाए। जाटों पर इस देश को गर्व है। वह सबसे देशभक्त समुदायों में गिने जाते हैं। हर गांव में एक फौजी घर है। जब जींद के जाट परिवार का 23 वर्षीय बेटा कैप्टन पवन कश्मीर में शहीद हो गया तो इस इकलौते बेटे के बाप का कहना था कि ‘मैंने अपना बेटा देश को दे दिया।’ यह जज्बा है जिसके लिए जाट देश में विख्यात हैं पर इन्हीं ने अपने ही घर को आग लगा दी। सवाल है कि इब कौन आवेगा जले फूंके हरियाणे में? क्या जवाब है सबके पास?