लाहौर के गुलशन-ए-इकबाल पार्क में एक आत्मघाती आतंकवादी ने खुद को बमों से उड़ा दिया और साथ 70 और लोगों को ले मरा। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने इस हमले की जिम्मेवारी ली है। इस संगठन का कहना है कि उसने मुमताज कादरी जिसको पाकिस्तान के पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या के आरोप में फांसी लगाई गई थी, की मौत के बदले में यह विस्फोट किया है। लेकिन फांसी तो सरकार तथा कानून ने लगाई थी, बदला बेकसूर महिलाओं तथा बच्चों से क्यों लिया गया? जेहादी इस्लाम अब नियंत्रण से बाहर चला गया है वह उन्हें ही निशाना नहीं बना रहा है जिन्हें वह दुश्मन समझता है बल्कि जिस समाज ने उसे पैदा किया था उसका भी खून बहाया जा रहा है। पाकिस्तान इस कथित जेहाद से पल्ला छुड़वाना चाहता है पर उसके लिए यह असंभव बन चुका है। उसकी हर मस्जिद ऐसे जेहादी पैदा कर रही है।
उधर योरूप आतंकित है। जब से योरूप के दिल बेल्जियम की राजधानी ब्रसल्स पर हमला हुआ है वह सहमे हुए हैं कि अगला हमला कहां और कब होगा क्योंकि वह जानते हैं कि यह निश्चित तौर पर होगा। लंदन, पेरिस, मैड्रिड, ब्रसल्स के बाद क्या अगली बारी रोम की है? या बर्लिन की? या किसी और राजधानी की? वह जानते हैं कि सभी आतंकी एक ही जेहादी मलकुंड से आते हैं। जब से 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका पर हवाई जहाजों से हमला किया गया जेहादियों का स्वरूप बदल रहा है। अमेरिका पर हमला बाहर से करवाया गया था। अमेरिका ने खुद को लगभग सुरक्षित कर लिया है पर यह स्थिति योरूप की नहीं है। यहां हमला अंदर से हो रहा है। यहां अपनी गंदी बस्तियों में बंद, समाज से अलग थलग मुसलमानों की नई पीढ़ी में अलगाववाद की भावना प्रबल है जो अब बदला लेने की भावना में बदल रही है। क्योंकि वहां का समाज उन्हें एक तरफ छोड़ कर आगे बढ़ रहा है इसलिए वह वहां तबाही मचाने में लग गए हैं। पाकिस्तान की भी वही समस्या है जो योरूप की है कि आतंकी उनके अपने हैं, पाकिस्तान में केवल उनकी संख्या बहुत अधिक है।
पर इस्लामी आतंकवाद का बड़ा शिकार भारत रहा है। योरूप तथा पश्चिमी जगत तो अब कराह रहे हैं हमें तो बहुत पहले निशाना बनाया गया था लेकिन इस मामले में उनके दोहरे मापदंड हैं। जब न्यूयार्क या वाशिंगटन या लंदन या पेरिस या ब्रसल्स पर हमला होता है तो इसे दुनिया पर हमला प्रदर्शित किया जाता है पर जब मुम्बई या नई दिल्ली या पुणे या कश्मीर में हमले होते हैं तो इन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। पाकिस्तान को सीधा करने का प्रयास नहीं किया गया उलटा उन्हें खुली आर्थिक सहायता दी गई। अगर उस समय भारत की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाता तो शायद पश्चिम को भी यह दिन नहीं देखना पड़ता क्योंकि शुरुआत पाकिस्तान से हुई थी जहां आईएसआई ने आतंक के द्वारा भारत तथा अफगानिस्तान को निशाना बनाने की साजिश रची थी। जो जेहादी कारखाना वहां शुरू किया गया उसने ही दुनिया भर में आतंकी पैदा किए। ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपा हुआ था। मैं यह मानने को तैयार नहीं कि पाकिस्तान के अधिकारियों तथा सेना को उसकी मौजूदगी के बारे जानकारी नहीं थी। भारत ने बार-बार अपने खिलाफ पाकिस्तान की आतंकी साजिश के बारे बड़े देशों से जानकारी सांझी की थी इस पर अधिक गौर नहीं किया गया या इसे कश्मीर के मसले से जोड़ कर देखा गया और भारत में आतंकवाद के कारण जो जिन्दगियां गई हैं उन्हें केवल आंकड़ों के तौर पर देखा गया। यह नहीं समझा गया कि यह भारत की विचारधारा, उसके लोकतंत्र, उसके समाज पर भी हमला है। विडम्बना यही है कि जो ‘गुड टैरेरिस्ट’ और ‘बैड टैरेरिस्ट’ कहते रहे, अर्थात् पाकिस्तान, अब खुद चीख रहे हैं कि उनकी महिलाओं तथा बच्चों पर हमले हो रहे हैं।
इस बीच पाकिस्तान का संयुक्त दल (जेआईटी) भारत में है जहां वह पठानकोट एयरबेस पर भी गया है। यह लोग यहां क्या करने आए हैं? इनके दौरे से क्या हासिल होगा? और भारत सरकार ने इस फिज़ूल कवायद की इज़ाजत कैसे दे दी? भारत सरकार की पाक नीति के बारे तो गालिब के साथ कहने को दिल चाहता है कि कुछ न समझे खुदा करे कोई!
क्या पाकिस्तान को मालूम नहीं कि किन लोगों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला किया था? खुद रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर ने संसद में कहा था कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है फिर इसी ‘स्टेट’ को यहां जांच की इज़ाजत कैसे दे दी गई? सब जानते हैं कि जैश-ए-मुहम्मद या लश्कर-ए-तैयबा को आईएसआई का समर्थन हासिल है। और जो टीम पाकिस्तान से आई है उसमें एक आईएसआई का अफसर लै. कर्नल तनवीर अहमद शामिल है। अर्थात् आईएसआई अब आईएसआई की जांच करेगी? मुम्बई पर 26/11 के हमले के बाद हमने बार-बार पाकिस्तान को डोजियर सौंपे थे, उनका क्या बना? पाकिस्तान में जो एफआईआर दर्ज की गई है उसमें तो मसूद अजहर का नाम ही नहीं। मसूद अजहर से पूछताछ का मौका हमें कभी नहीं मिलेगा। अब रक्षा मंत्री का कहना है कि पाकिस्तान की टीम मेन गेट से नहीं बल्कि पिछले गेट से जाएगी और उनकी नजरों से बचाने के लिए एयरबेस को कई जगह से ढका गया है। क्या तमाशा है यह? भारत सरकार तो अपना लतीफा बना रही है। हमने अपना एयरबेस उनके लिए खोला ही क्यों? पठानकोट एयरबेस सामरिक तौर पर अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील एयरबेस है। 1965 और 1971 के युद्ध में यहां हमले हो चुके हैं लेकिन हम उसी दुश्मन को वहां कदम रखने की इज़ाजत दे रहे हैं?
भारत सरकार की पाकिस्तान नीति का शीर्षासन हो रहा है। कभी हम उनसे वार्ता तोड़ते हैं तो कभी उनकी जांच टीम को बुलेटप्रूफ गाड़ियों में बैठा कर एयरबेस पर ले जाते हैं। यह मालूम नहीं कि बिरयानी खिलाई गई या नहीं! इस टीम को एयरबेस का गाइडेड टूअर देकर भारत सरकार पाकिस्तान की व्यवस्था को आरोपमुक्त बना रही है। ‘स्टेट’ तथा ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ के बीच हम खुद भिन्नता दिखा रहे हैं कि यह वाले बेचारे तो शरीफ हैं आतंकी तो कहीं और से आए थे पर सब जानते हैं कि उनकी सेना के सहयोग के बिना यह घुसपैठ नहीं हो सकती थी। मैं मानता हूं कि पाकिस्तान की नीति में कुछ बदलाव आया है पर पठानकोट एयरबेस में उन्हें प्रवेश देना तो समझ से बाहर है। देश भौचक्का रह गया है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार कैसी कलाबाजियां खा रही है? क्या कभी 9/11 के हमले के बाद अमेरिका तालिबान के लिए अपने रक्षा संस्थानों के दरवाजे खोलता? हमें क्या आशा है कि पाकिस्तान मसूद अजहर या हाफिज सईद को जेल में फेंक देगा? और यह जांच दल भी क्या करेगा? सारी जानकारी तो उनके पास पहले ही है। आरोपी खुद अपनी जांच करेगा? इस जेआईटी की कसरत के बारे तो कहा जा सकता है,
वह कत्ल कर मुझे हर किसी से पूछते हैं,
यह काम किसने किया, यह काम किसका था?