
जिस कश्मीर के लिए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया उस कश्मीर में भाजपा के राष्ट्रवाद की परीक्षा हो रही है। यह वही कश्मीर है जहां तिरंगा लहराने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं ने यात्राएं निकाली थीं और पुलिस की सुरक्षा में तिरंगा लहराया था। नरेन्द्र मोदी भी एक यात्रा में शामिल थे। उसी तिरंगे को लहराने की मांग को लेकर श्रीनगर में एनआईटी के छात्रों को बेरहमी से पीटा गया। और यह उस कश्मीर में हुआ जहां भाजपा सरकार में शामिल है। आखिर इन छात्रों का कसूर क्या था? वह ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे तथा तिरंगा फहराना चाहते थे। उनके अनुसार पुलिस ने उन्हें बताया कि ‘तुम यहां हिन्दोस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे हो। पिछले 25 सालों में किसी ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं की।’ न केवल छात्रों की पिटाई की गई बल्कि उनका तिरंगा भी उनसे छीन लिया गया। स्मृति इरानी को लिखे अपने पत्र में इन छात्रों ने यह मांग भी रखी है कि विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर तिरंगा स्थायी तौर पर लगाया जाए और पुलिस द्वारा उनसे छीना उनका तिरंगा उन्हें लौटाया जाए। इस मांग में अनुचित क्या है?
लेकिन यह कश्मीर है जहां ऐसी हालत बन गई है कि राष्ट्रवाद की बात करना ही अपराध है। जो सियाने हैं वह भी कह रहे हैं कि नहीं, नहीं, कश्मीर को हाथ मत लगाओ, विस्फोट हो जाएगा। भाजपा के स्थापना दिवस पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का कहना था कि राष्ट्रवाद भाजपा की पहचान है और यह उनका कर्त्तव्य है कि इसे और मजबूत करें। अमित शाह मेरी धृष्टता माफ करेंगे लेकिन मेरा कहना है कि वह केवल बातें करते हैं अगर इस समय राष्ट्रवाद को कोई आगे बढ़ा रहा है तो एनआईटी श्रीनगर के ये छात्र हैं जिनके साथ वह बर्ताव किया गया जो अंग्रेजों के जमाने में देशभक्तों के साथ किया जाता था। अगर अमित शाह सचमुच राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहते हैं तो उन्हें श्रीनगर जाकर इन छात्रों के साथ तिरंगा फहराना चाहिए था और इस प्रभाव को मिटाना चाहिए कि वह क्षेत्र सदा के लिए अलगाववादियों को सौंप दिया गया है जहां ‘भारत माता की जय’ कहने तथा तिरंगा फहराने पर बुरी लाठियां पड़ती हैं।
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना है कि यह ‘नॉन-इशू’ है अर्थात् कोई मामला नहीं। बाहर से गए छात्र धड़ाधड़ परिसर छोड़ रहे हैं और महबूबा इसे ‘नॉन-इशू’ कह रही हैं? महबूबा कितनी खतरनाक हो सकती हैं यह इस बात से पता चलता है कि उन्होंने तत्काल मदद के लिए केन्द्र का धन्यवाद करने की बजाय पुराने पापी सईद अली शाह गिलानी का धन्यवाद किया जिसका कहना था कि ‘आप यहां मेहमान हैं लेकिन ध्यान रहे कि यह बिहार या उत्तर प्रदेश या कोई और भारतीय प्रांत नहीं है, यह विवादित क्षेत्र है।’ इस एक कथन में स्पष्ट चेतावनी छिपी है। वेस्टइंडीज की टी-20 में भारत पर जीत के बाद कश्मीरी छात्र खुशी क्यों मना रहे थे? पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे क्यों लगा रहे थे? आमतौर पर कश्मीरियों की शिकायत रहती है कि बाकी देश में उन्हें अविश्वास से देखा जाता है। यह शिकायत जायज़ है पर इसका कारण कश्मीर के अंदर हो रही ऐसी घटनाएं हैं। जहां देशभर में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए वहीं उन्हें भी समझना चाहिए कि उनकी तरक्की भी मुख्यधारा में शामिल होकर ही हो सकती है। अगर वह गलत गतिविधियों में हिस्सा लेते रहेंगे तो देश में उनके प्रति अविश्वास रहेगा।
तिरंगा लहराने का कश्मीर में विरोध कब तक होता रहेगा? कब तक हम यह बर्दाश्त करते रहेंगे? कब हम इस स्थिति का सामना करेंगे कि हमने वहां अपने अधिकार खोए हैं? एनआईटी के छात्र श्रीनगर से परिसर बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं। यह मांग स्वीकार नहीं होनी चाहिए। यह परिसर वहां ही रहनी चाहिए लेकिन सबको बराबर सुरक्षा मिलनी चाहिए और बराबर इज्जत मिलनी चाहिए। यह सामान्य कैम्पस असंतोष का मामला नहीं जैसा कुछ मीडिया वाले पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। यह जेएनयू या हैदराबाद या जाधव विश्वविद्यालय जैसा मामला बिलकुल नहीं है। जेएनयू में तो देश विरोधी नारे लगाए गए श्रीनगर में इन छात्रों ने दिलेरी से तिरंगे के साथ मार्च किया। उन्होंने वह कर दिखाया जो नेता नहीं कर सके। यहां यह भी सवाल है कि मीडिया का वह वर्ग जो जेएनयू तथा कन्हैया कुमार को लेकर मुखर था वह एनआईटी के मामले में खामोश क्यों है? राहुल गांधी भी रात को जेएनयू पहुंच गए थे और बाद में हैदराबाद विश्वविद्यालय गए उनके पास भी एनआईटी जाने के लिए समय क्यों नहीं है?
यह छात्र यह संदेश दे रहे थे कि कश्मीर कोई आजाद टापू नहीं है जहां तिरंगा लहराया नहीं जा सकता। उनका प्रदर्शन उन लोगों से अधिक कारगर रहा जो खोखले नारे लगाते हैं और एक लाख लोगों की गर्दन काटने की अनावश्यक धमकी देते हैं। किसी को ‘भारत माता की जय’ कहने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। जो नहीं लगाना चाहता वह उसकी मर्जी है। पर अगर कोई श्रीनगर में तिरंगा लहराना चाहे तो उसे भी क्यों रोका जाए?
कश्मीर की स्थिति अच्छी नहीं, यह मैं मानता हूं। वहां फिर मिलिटैंसी को समर्थन मिल रहा है। अब्दुल बासित ने वार्ता ‘निलंबित’ होने की जो बात कही है वह सेनाध्यक्ष के इशारे पर कही गई लगती है। मामले को अंतरराष्ट्रीय करने के लिए कुलभूषण जाधव का मामला गढ़ा गया है। पाकिस्तान पठानकोट हमले की जांच में अब सहयोग नहीं करेगा। अटल बिहारी वाजपेयी तथा मनमोहन सिंह के बाद एक और भारतीय प्रधानमंत्री के पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाने के प्रयास में हाथ झुलस गए हैं।
हालात सही नहीं हैं लेकिन इनका सामना करना है। राष्ट्रहित और राष्ट्रवाद के लिए अड़ने की जरूरत है स्थिति से भागने की नहीं। एक अंग्रेजी अखबार ने लिखा है, ‘स्थिति समझदारी और सोच को आमंत्रित करती है। बात एनआईटी गेट पर तिरंगा लगाने की नहीं इतिहास से बेहतर सीखने की जरूरत है।’ पर झंडा केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं है यह देश की प्रभुसत्ता का प्रतीक है। पिछले 70 सालों में हमने जो ‘समझदारी’ दिखाई है उसी का परिणाम है कि तिरंगा लहराने पर लाठियां पड़ती हैं और वहां पाकिस्तान तथा आईएस के झंडे फहराए जाने लगे हैं। एक दिन तो आना चाहिए कि कहा जाए कि बस, और नहीं। धारा 370 पर भाजपा पहले ही समर्पण कर चुकी है।
देशभर में राष्ट्रवाद की बात कही जा रही है जबकि असली परीक्षा तो कश्मीर में हो रही है। 12 राज्यों से 150 युवक एनआईटी के इन युवकों के समर्थन में तिरंगे के साथ बाइकों तथा कारों से श्रीनगर गये थे। वह वहां तिरंगा लहराना चाहते थे। उन्हें लखनपुर में रोक दिया गया। तिरंगा उनसे ले लिया गया। क्या लखनपुर तिरंगे के लिए बार्डर है?