कांग्रेस के कथित ‘लोकतंत्र बचाओ मार्च’ के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस कथन कि ‘कांग्रेस गंगा के समान है’, पर रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर ने लोकसभा में अपने जवाब में कहा कि ‘हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह गंगा जाती कहां है?’ मनोहर पार्रिकर का भाषण तर्क से भरा हुआ बढ़िया भाषण था पर मुझे उन्हें कहना है कि केवल यह ही नहीं देखना कि बहती गंगा गई किधर, उन्हें यह भी ढूंढना है कि गंगोत्री कौन है? रिश्वत जरूर उन्हें दी गई होगी जो निर्णय को प्रभावित कर सकते थे। उन्होंने अपने भाषण में बताया कि किस तरह जब अगस्ता को हेलीकाप्टर नहीं मिल रहा था तो सौदे की शर्तें व धाराएं बदली गईं। सारी कार्यविधि बदली गई ताकि अगस्ता के साथ अनुबंध हो सके।
निश्चित तौर पर ऐसा सब एसपी त्यागी या गौतम खैतान के स्तर पर नहीं किया गया होगा। यह मामला भ्रष्टाचार का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। किसके आदेश पर ए.के. एंटनी नाचते रहे? अगर यह पता नहीं चलता तो अगस्ता का भी बोफोर्स वाला हाल होगा, पार्रिकर चाहे कुछ भी कहें। देश में अभी से अविश्वास है कि सरकार जिन्होंने रिश्वत ली है उन तक पहुंच भी सकेगी, या पहुंचना भी चाहती है?
इस बीच मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकतंत्र बचाओ रैली निकाली है जबकि लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं, यह रैली गांधी परिवार को बचाने के लिए निकाली गई। जब जब गांधी परिवार पर हमला होता है कांग्रेस को लोकतंत्र पर खतरा नज़र आने लग पड़ता है। सोनिया गांधी भी तब ही दहाड़ती हैं जब उनकी निजी प्रतिष्ठा को आघात पहुंचता है या परिवार का अस्तित्व खतरे में होता है। नेशनल हेराल्ड मामले में भी उनके ऐसे ही तेवर थे। कांग्रेस को देश को समझाना चाहिए कि अगस्ता के भ्रष्टाचार की जांच से देश का लोकतंत्र खतरे में कैसे पड़ गया?
कांग्रेस पार्टी का दिवालियापन स्पष्ट हो जाता है जब यह देखा जाए कि रैली में लोकतंत्र बचाओ के पोस्टरों में राबर्ट वाड्रा का चित्र भी लगा हुआ था। क्या राबर्ट जो उस सबका प्रतीक है जो हमारे लोकतंत्र में गलत है, अब हमारा लोकतंत्र बचाएगा? या कांग्रेसजनों को यह संदेश दिया जा रहा है कि इस मामले में सारा परिवार इकट्ठा है और अगर कल को बेचारे राबर्ट के खिलाफ सरकार कुछ कदम उठाती है तो समस्त कांग्रेसजन का धर्म होगा कि वह राबर्ट का भी बचाव करें क्योंकि तब ‘देश का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा!’
कांग्रेस के जवाब में भाजपा ने गांधी के बुत के सामने धरना दिया। धरना वह देता है जो बेबस हो। भाजपा विपक्ष में नहीं है। आपका काम कार्रवाई करना और दोषियों को पकड़ना है, अपनी लाचारी व्यक्त करना नहीं। लेकिन यह सरकार तो अभी तक हवाई अड्डों पर राबर्ट को मिली विशेष छूट को भी बंद नहीं कर सकी।
कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि युवराज फीके हैं। बहुत प्रयास के बावजूद जनता के साथ रिश्ता कायम नहीं कर सके इसलिए राबर्ट भी कह रहे हैं कि ‘अगर लोग चाहेंगे’ तो वह राजनीति में कूदने के लिए तैयार हैं। अर्थात् राबर्ट वाड्रा को भी मौका नज़र आता है। राबर्ट तो यह भी कह चुके हैं कि वह कहीं से भी चुनाव जीत सकते हैं। ऐसा विश्वास तो सोनिया गांधी को भी अपने बारे नहीं होगा।
पार्टी तथा उसके राजनीतिक जादूगर प्रशांत किशोर सिर मार चुके हैं कि राहुल का क्या किया जाए? यह भी सुझाव दिया गया कि राहुल को यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया जाए जिस पर खुद राहुल का कहना था कि मुझे नहीं मालूम कि मैं सीएम पद का उम्मीदवार भी हूं। क्या प्रशांत की योजना है कि नीतीश पीएम और राहुल सीएम? प्रशांत की समस्या है कि लखनऊ की गद्दी संभालने के लिए उन्हें चेहरा चाहिए। पर यह तो निश्चित है कि गांधी भाई-बहन इस जिम्मेवारी को संभालने के लिए तैयार नहीं होंगे। उनकी महत्वकांक्षा राष्ट्रीय है प्रादेशिक नहीं और इस माहौल में तो वह बिलकुल जोखिम उठाना नहीं चाहेंगे।
राहुल गांधी को बार बार नए पैकेज में प्रस्तुत किया जाता है लेकिन आजकल की भाषा में, ब्रैंड बिक नहीं रहा। अब फिर यह बताया जा रहा है कि उन्हें सोनिया की जगह इस साल राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा। यह बात हर साल उठती है पर फिर शांत हो जाती है क्योंकि कांग्रेस भी जानती है कि वह इसलिए सिकुड़ नहीं रही कि राहुल को अध्यक्ष बनाया नहीं गया बल्कि इसलिए सिकुड़ रही है कि राहुल को नेता प्रस्तुत किया जा रहा है। कांग्रेस इस इंतजार में बैठी है कि भाजपा खुद को नष्ट कर लेगी लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा। कहीं राहुल की हालत भी ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स जैसी न हो जाए जहां 90 वर्षीय महारानी एलिजाबेथ गद्दी छोड़ने को तैयार नहीं! कांग्रेस ने अगर बचना है तो उसे वर्तमान प्रथम परिवार से बाहर देखना चाहिए। कई प्रतिभाशाली लोग हैं। लेकिन यह होगा नहीं। यही पार्टी की त्रासदी है।
कांग्रेस देश को यह गलत संदेश दे रही है कि लुटेरों को नंगा करने से लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। शेरनीजी, महात्मा मनमोहन तथा सेंट एंटनी कोई भी सीधा जवाब नहीं दे रहा जबकि और नहीं तो इस घपले के लिए तीनों की नैतिक जिम्मेवारी तो बनती है। जब कोई जवाब नहीं सूझता तो सोनिया भावनात्मक दोहन की कोशिश करती हैं। पर यह ट्रेलर पहले देखा जा चुका है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दुर्गति पर दुख होता है। उनके बारे तो कहा जा सकता है कि आदमी तो भला चंगा था कुर्सी ने निकम्मा बना दिया। मनमोहन सिंह को साथ रखना चतुर सोनिया गांधी की जरूरत है क्योंकि वह पूर्व प्रधानमंत्री की स्वच्छ छवि को अपने कवच की तरह इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन इससे मनमोहन सिंह का तो अवमूल्यन हो रहा है। देश के इतिहास में कभी भी इतने बड़े बड़े घोटाले नहीं हुए जितने महात्मा मनमोहन के शासन के दौरान हुए। लेकिन मनमोहन सिंह खामोश हैं। यह नहीं बता रहे कि क्या मजबूरी थी? जो हुआ उसके लिए इन तीनों की बड़ी जिम्मेवारी है क्योंकि यह सब उनके समय हुआ था। इसलिए इन्हें मुझे कहना है,
तू इधर उधर की न बात कर
यह बता कि काफिला क्यों लुटा
मुझे राहजनों से गिला नहीं
तेरी रहबरी का सवाल है!
अंत में : इस बीच प्रशांत किशोर जो यूपी के भावी सीएम की तलाश कर रहे हैं को मेरा सुझाव है कि वह राबर्ट साहिब के बारे क्यों नहीं सोचते? आखिर वह तो तैयार भी हो जाएंगे और हैं भी मुरादाबाद से। और अब तो उन्हें भी ‘लोकतंत्र बचाओ’ धंधे में लगाया जा रहा है।