
अंग्रेजों ने जब इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) का गठन किया था तो इसे ‘स्टील फ्रेम’ अर्थात् फौलादी ढांचा कहा गया था जो हर हालत में, हर परिस्थिति में इस देश को संभालेगा पर धीरे-धीरे राजनीतिक दखल के कारण यह स्टील फ्रेम भी ‘प्लास्टिक फ्रेम’ बनता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान देखने को मिला जब तीन चार दिन देश के अति प्रगतिशील प्रांत को जलने दिया गया। जिनका काम इस आग को बुझाना था वह दर्जनों की संख्या में अपनी जिम्मेवारी छोड़ कर भाग उठे।
उस वक्त भी इसकी शिकायत उठी थी जिसकी पुष्टि अब पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की रिपोर्ट ने कर दी है कि 90 अफसर अपने अपने स्थान से गायब पाए गए। अराजक हालत तो ऐसी थी कि रोहतक जिले के आठ मैजिस्ट्रेटों ने इस कमेटी को बताया कि उन्होंने अपने घरों से अपनी नेम प्लेट हटा दी थी और कईयों ने तो परिवार के साथ पार्क में रात जमीन पर गुजारी थी। कितनी दहशत होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
ऐसी हालत देश में पहले कहीं नहीं हुई थी। जम्मू कश्मीर में भी नहीं। न्यायिक अधिकारी भी पूरी तरह असुरक्षित थे। प्रकाश सिंह कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई अधिकारियों ने जानबूझ कर प्रदेश को आग में जलने दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि आठ जिले जलते रहे, पुलिस मूकदर्शक बनी रही या वह ‘गायब’ थी। कमेटी लिखती है, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि उस क्षेत्र के अधिकारियों… ने लूट तथा आगजनी की पूरी आजादी दे दी थी।’ अर्थात् वह कायर ही नहीं थे बल्कि उपद्रव की साजिश में शामिल भी थे। कईयों ने दंगाइयों के साथ मिल कर भाईचारा निभाया।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुलिस की नौकरियों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तथा सिफारिश के कारण यह बल अक्षम हो गया है। यह आरोप सही लगता है। विशेष तौर पर भूपिन्द्र सिंह हुड्डा के शासन में एक ही समुदाय की भर्ती को तरजीह दी गई और प्रशासन का साम्प्रदायिककरण किया गया। जिन्हें जाति के आधार पर भर्ती मिली उन्होंने जाति के प्रति वफादारी निभाई। परिणाम यह हुआ कि इस आंदोलन के दौरान यह अधिकारी तथा जवान गायब पाए गए।
इस आंदोलन के दौरान जीटी रोड पर मुरथल में कुछ महिलाओं के साथ बलात्कार की अब पुष्टि खुद हरियाणा पुलिस ने कर दी है। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने पहले बताया था कि महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है। इधर-उधर बिखरे महिलाओं के कपड़ों के चित्रों को भी पुलिस ने नकार दिया था लेकिन अब पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट के दखल तथा एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) वरिष्ठ वकील अनुपम गुप्ता के प्रयासों से धीरे-धीरे सच्चाई बाहर आ रही है और हरियाणा पुलिस ने यह बात कबूली है कि मुरथल कांड में कुछ ‘पीड़ित’ भी हैं।
गुप्ता का यह भी कहना है कि रोजाना उन्हें उत्पीड़न की शिकायत वाला कोई न कोई फोन आ रहा है लेकिन क्योंकि पुलिस का रवैया सही नहीं है इसलिए कोई अपनी शिकायत लेकर पुलिस के सामने नहीं आ रहा। यह बहुत गंभीर शिकायत है। जाट आंदोलन के दौरान अराजकता में मुरथल कांड विशेष कलंक से कम नहीं है। पहले तो पुलिस ने मानने से ही इन्कार कर दिया कि कुछ हुआ है। अर्थात् अगर कुछ हुआ ही नहीं तो जांच या कार्रवाई करने की जरूरत ही नहीं रहती। अनुपम गुप्ता का भी सवाल है कि जब मुझे यह सब कुछ पता चल सकता है तो पुलिस को क्यों नहीं?
इन पीड़ितों के साथ दोहरा अन्याय हो रहा है। पहले सरेआम उनके साथ राष्ट्रीय राजमार्ग के पास बलात्कार हुआ और अब पुलिस सच्चाई पर से पर्दा उठाने में रुकावटें खड़ी कर रही है। अब तो लोग शाम के वक्त महिलाओं के साथ उधर से गुजरने से घबराते हैं।
अनुपम गुप्ता ने भी मुरथल कांड का जिक्र करते हुए पूछा है कि आईजी, एसपी तथा डीएसपी के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? आशा है कि हरियाणा सरकार अब गंभीरता से उन अधिकारियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करेगी कि भविष्य में कोई अपनी ड्यूटी से कोताही बरतने की जुर्रत न कर सके। केवल ट्रांसफर करना पर्याप्त नहीं क्योंकि मामला हरियाणा के भविष्य से जुड़ा हुआ है और लोगों का विश्वास बहाल करने की जरूरत है नहीं तो हरियाणा की प्रगति प्रभावित होगी। कोई नया उद्योग वहां नहीं आएगा जहां कानून और व्यवस्था कायम रखने की जगह अधिकारी अपनी जिम्मेवारी छोड़ कर भाग निकलते हैं और उनके खिलाफ कोई उचित कार्रवाई नहीं होती।
और जहां तक मुरथल कांड का सवाल है, सच्चाई सामने नहीं आएगी तो कार्रवाई कैसे होगी? हरियाणा सरकार को यह भी समझना चाहिए कि बलात्कार केवल मुरथल में ही नहीं हुआ, बलात्कार हरियाणा की इज्जत तथा लोगों के विश्वास से भी हुआ है। इसकी भरपाई बहुत मुश्किल होगी।
ऊपर से स्पष्ट राजनीतिक निर्देश के अभाव के कारण भी हालात काबू में नहीं आ सके। अधिकारियों को यह भी घबराहट थी कि अगर वह दंगाइयों पर गोली चलाने का हुकम देते हैं और कोई मौत हो जाती है तो उनकी भी वह गत बनाई जाएगी जो 2010 में ऐसी ही कार्रवाई के बाद वरिष्ठ पुलिस अफसर को झेलनी पड़ी थी। और हरियाणा जल गया। अब जहां हरियाणा के जाट नेतृत्व को आत्मचिंतन करना चाहिए कि किस प्रकार उनके उपद्रवियों ने प्रदेश की प्रतिष्ठा को ही जला दिया वहां हरियाणा सरकार को उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो लोगों को बेसहारा छोड़ भाग खड़े हुए थे या जिन्होंने जानबूझ कर हरियाणा जलने दिया।
हरियाणा सरकार की पहली नाकामी थी कि वह इस आंदोलन को संभाल नहीं सकी लेकिन अगर अब वह इन कायर या नालायक या लापरवाह या संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती तो यह दोहरा अपराध होगा। हरियाणा तथा देश के लोगों को विश्वास दिलाने की जरूरत है कि यहां शासन का दबदबा बहाल हो गया है। यह काम आसान नहीं पर अगर हरियाणा सरकार ने अपनी छवि बचानी है और प्रभावित परिवारों के जख्मों पर मरहम लगानी है तो यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि यहां अराजक तत्वों को आरक्षण नहीं मिलेगा।
एक बात और। जहां प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता स्पष्ट कर दी गई है वहां राजनेताओं की शरारत के बारे यह रिपोर्ट खामोश है लेकिन हरियाणा सरकार को इस गहरे षड्यंत्र की जड़ तक जाना चाहिए। कौन लोग थे जिन्होंने आरक्षण आंदोलन को अराजक आंदोलन बनवा दिया था?