
बांग्लादेश की हाल की घटनाएं हमारे लिए भी गंभीर खतरा हैं। ढाका में हुआ हमला बताता है कि आईएस का फोकस मध्य पूर्व से परे हो गया है। पिछले कुछ महीनों से अल कायदा तथा आईएस जैसे आतंकी संगठन बांग्लादेश के रास्ते भारत पर हमला करने की बात कह रहे हैं। ढाका से कोलकाता बहुत दूर नहीं है।
भारत और बांग्लादेश के बीच 4096 किलोमीटर लम्बी असुरक्षित सीमा है। भारत के लिए दोतरफा चुनौती है। एक तरफ पाकिस्तान हमारे खिलाफ आतंक को प्रेरित कर रहा है तो दूसरी तरफ बांग्लादेश घुटने टेकता प्रतीत होता है। हाल ही में बांग्लादेश के आईएस मुखी शेख अबू इब्राहिम अल हनीफ ने कहा है कि आईएस की पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के लड़ाकुओं को स्थानीय मुजाहिद्दीन के साथ मिला कर भारत के अंदर गुरिल्ला हमले करने की योजना है।
हमारी तरक्की तथा हमारी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक व्यवस्था उनकी आंखों में चुभती है। पिछले छ: सात महीने में रुड़की तथा हैदराबाद में तीन आईएस प्रेरित सैल पकड़े जाने से पता चलता है कि कितना खतरा है। दुनिया के बाकी हिस्सों में जो हिंसा हो रही है वह उसकी भारत में नकल करना चाहते हैं। खुफिया एजेंसियां यह भी बता रही हैं कि उग्रवादी भारतीय मुसलमान युवकों की वफादारी जैश-ए-मुहम्मद या लश्कर-ए-तैयबा या सिमी या इंडियन मुजाहिद्दीन में कम हो रही है और वह आईएस की सफलता से प्रेरित होकर उनकी हिंसक विचारधारा की तरफ खिंचे जा रहे हैं।
अभी तक यह संख्या बहुत नहीं। इन युवकों को संभालने के लिए हमारी एजेंसियां उनके मां-बाप की मदद ले रही हैं पर ढाका की घटना, जहां खाते-पीते घरों की औलाद गलत रास्ते पर निकल गई थी, से पता चलता है कि आजकल मां-बाप का प्रभाव सीमित है। उन्हें तो मालूम ही नहीं था कि छ: महीने से उनके लड़के कहां थे?
हमें अपना घर सही रखना है जिसमें यह बहुत जरूरी है कि नफरत के वंजारों पर लगाम लगाई जाए। बांग्लादेश सरकार ने विवादास्पद मुस्लिम उपदेशक जाकिर नाईक के ‘पीस’ टीवी पर पाबंदी लगा दी है। हम भी अब मामले की ‘जांच’ कर रहे हैं। ‘पीस’ टीवी को अपलोड करने पर यहां पाबंदी है फिर भी यह केबल पर खुला दिखाया जा रहा था। अर्थात् ‘पीस’ टीवी के द्वारा जो प्रचार वह करता रहा है उससे जो नुकसान होना था वह तो हो चुका है। हम अब जाग रहे हैं। लेकिन ऐसे हम हैं। एनआईए का कहना है कि पठानकोट एयरबेस छ: साल से आतंकी हिट लिस्ट में था। अगर पता था तो लापरवाही क्यों हुई? नाईक के भाषण हजारों की संख्या में मुस्लिम युवकों को गलत रास्ते पर भेज चुके हैं। वह मिलिटैंट्स जिन्होंने ढाका में 20 लोगों को मारा था उसके उत्तेजनात्मक भाषणों से प्रेरित थे। इनमें से एक रोहन इम्तियाज़ ने फेसबुक पर जाकिर नाईक को दोहराया है कि ‘हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए।’
जाकिर नाईक हैदराबाद स्थित आईएस मोड्यूल के सरगना इब्राहिम याज़दानी का भी प्रेरणास्रोत है। कश्मीर में मारा गया बुरहान वानी भी उससे प्रभावित था। ग्लासगो हवाई अड्डे पर 2007 में हमला करने वाला भारतीय मूल का डाक्टर सबील अहमद भी उसके भाषणों से उत्तेजित था। यह बात आईबी की रिपोर्ट में कही गई है। सवाल तो यह है कि जाकिर नाईक जैसे और कितने हैं जो युवकों के मन में इतनी नफरत भर रहे हैं कि सामान्य लड़के भी मरने मारने के लिए तैयार हो जाते हैं? वह इसलिए भी कत्ल कर सकते हैं कि आपको कुरान की आयतें नहीं आतीं।
वह सामान्य मौलवी नहीं है। चार साल पहले दारूल उलूम उसके खिलाफ फतवा जारी कर चुका है। वह ओसामा बिन लादेन का प्रशंसक है। उसका कहना है कि हर मुसलमान को आतंकी होना चाहिए, साथ में यह जरूर जोड़ दिया कि बुराई के खिलाफ। लेकिन जिन्होंने भड़कना था वह तो आतंकी बनने के रास्ते पर चल निकले। अपरिपक्व दिमाग फंस जाते हैं। खुद उससे पूछा जा सकता है कि अगर बुराई के खिलाफ आतंकी बनना जायज़ है तो क्यों नहीं उसने उन लोगों के खिलाफ हथियार उठाया जिन्होंने रमज़ान के दौरान मदीना में और ईद के दौरान ढाका में बेकसूरों को मार डाला? जगह-जगह इस्लाम के नाम पर बेकसूरों को आतंकी मार रहे हैं। वह उनके खिलाफ ‘टैरेरिस्ट’ क्यों नहीं बना?
जाकिर नाईक जैसे लोग तो आतंकियों से भी अधिक खतरनाक हैं क्योंकि उनका प्रचार दो चार की हत्या नहीं करता बल्कि हजारों को हत्या करने के लिए उकसाता है। वह एके 47 या आत्मघाती हमलावरों से अधिक घातक इसलिए है कि वह आतंक को सही ठहराने के लिए उसका औचित्य गढ़ रहा है। ‘अगर लादेन इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ लड़ रहा है तो मैं उसके साथ हूं’ ऐसे बयान युवकों को गलत दिशा में धकेल रहे हैं। वह उस इस्लाम का उपदेशक है जो बाकी धर्मों और विचारधाराओं का मज़ाक उड़ाता है।
यह वही वहाबी इस्लामिक विचारधारा है जिसका ओसामा बिन लादेन, अल कायदा, तालिबान और अब इस्लामिक स्टेट पालन करते हैं। अंग्रेजी बोलता सूटेड-बूटेड जाकिर नाईक उनका स्फस्टीकेटेड चेहरा है जो पढ़े लिखे युवकों को जाल में फंसाता रहा है। यह विनम्र लगने वाला बंदा दूसरों से बहुत अधिक खतरनाक है क्योंकि युवा मुस्लिम उसकी इस्लामी कट्टरवादी व्याख्या, जो उग्रवाद तथा हिंसा को न्यायोचित ठहराती है, से प्रभावित हो रहे हैं। वह इंसानी बारूद तैयार करता है। और कई वर्ष निष्क्रिय रह कर हमने इसकी खुली इज़ाजत दे दी।
नाईक की इस जहरीली विचारधारा का देश के अंदर बार-बार विरोध हो चुका है। कई मुस्लिम विद्वान उसके खिलाफ बोल चुके हैं। 2008 में उत्तर प्रदेश की सरकार ने लखनऊ, कानपुर तथा इलाहाबाद में उसके कार्यक्रमों पर पाबंदी लगा दी थी। मुम्बई एटीएस के पूर्व प्रमुख के.पी. रघुवंशी का कहना है कि 2006 में मुम्बई लोकल ट्रेन में विस्फोटों के बाद नाईक पुलिस के राडार पर था। लेकिन जैसा अकसर इस देश में होता है, हम लापरवाह रहे। इस लापरवाही की कीमत दुनिया चुका रही है। डेढ़ साल पहले आईबी ने गृह मंत्रालय को उसके आपत्तिजनक भाषणों के बारे अलर्ट किया था पर हम अब ढाका की घटना के बाद निद्रा से उठे हैं जबकि सब जानते हैं कि यह लड़ाई अधिकतर विचारधारा की है। चाहे ढाका हो या हैदराबाद हो या श्रीनगर हो, मुस्लिम युवाओं का कट्टर बनना बहुत बड़ी चुनौती है। केरल से डेढ़ दर्जन युवा गायब हैं। जरूरी है कि जहरीला प्रचार तंत्र, जो प्रेरित करता है, पर नियंत्रण किया जाए।
दिलचस्प है कि जो युवाओं को टैरेरिस्ट बनने का औचित्य दे रहा है आप गिरफ्तारी के डर से भारत नहीं आ रहा। जाकिर नाईक का कहना है कि वह बेचारा तो शांति का दूत है। उसने कभी ऐसी बात नहीं कही जहां किसी मुस्लिम या गैर मुस्लिम को मारने के लिए प्रोत्साहित किया हो। उसकी इस मासूमियत पर मैं तो यही कह सकता हूं,
वह कत्ल कर मुझे हर किसी से पूछते हैं,
यह काम किसने किया, यह काम किसका था?