दो महीने पहले भाजपा को अपनी मां कहने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी को छोड़ गए हैं। कसमें खाने के बाद लोग मुकर जाते हैं। राजनीतिक मजबूरी में भी लोग बदल जाते हैं यह बात तो समझ अाती है लेकिन यह नहीं समझ अाता कि तीन महीने पहले सिद्धू ने राज्यसभा का मनोनयन क्यों स्वीकार किया था अगर उन्होंने इसे छोड़ना ही था? यह उन लोगों से विश्वासघात है जिन्होंने उसे इस काबिल समझा और खुद महामहिम राष्ट्रपति के पद का अनादर है जिन्होंने उनका मनोनयन किया।
यह तो साफ है कि उन्होंने अकाली-भाजपा के साथ अपने सारे पुल साढ़ लिए हैं। उनकी पत्नी कह चुकी हैं कि लालबत्ती वाली गाडि़यों में ड्रग्स जाते हैं। खुद सिद्धू का कहना है कि ‘गलत और सही की लड़ाई में अाप तटस्थ नहीं रह सकते।’ नवजोत कौर का कहना है कि भाजपा बोझ है और अाप एकमात्र विकल्प है। नवजोत कौर की यह भी शिकायत है कि उनके लिए भाजपा में दरवाजे बंद हैं लेकिन अगर दरवाजे बंद हैं तो वह खुद अंदर क्यों हैं? उनका कहना है कि मैं विधायक हूं और मेरी अपने चुनाव क्षेत्र के प्रति जिम्मेवारी है। अर्थात् उनका पार्टी छोड़ने का अभी कोई इरादा नहीं। उसके बारे तो गालिब के साथ कहने को दिल करता है कि, कुछ न समझे खुदा करे कोई! सिद्धू का स्पष्टीकरण है कि उन्हें पंजाब छोड़ने के लिए कहा गया पर जब उन्होंने राज्यसभा में नामजदगी स्वीकार की थी तो क्या उन्हें यह मालूम नहीं था कि ऐसे मनोनीत सदस्य सक्रिय राजनीति नहीं करते?
सिद्धू लोकप्रिय हैं इसमें कोई दो राय नहीं। अगर उन्हें स्टार प्रचारक बनाया जाता है तो किसी भी पार्टी को इसका फायदा हो सकता है। उनकी बादल परिवार से भिड़ने की जबरदस्त इमेज है। अाजकल क्योंकि पंजाब में शासन विरोधी भावना प्रबल है इसलिए सिद्धू किसी भी अकाली विरोधी पार्टी, विशेषतौर पर अाप, के लिए बहुत फायदेमंद हो सकते हैं। वह अच्छे वक्ता हैं। युवाओं में उनका विशेष अाकर्षण है। साख है। दबंग हैं। अगर वह अाप में चले जाते हैं तो न केवल अकाली-भाजपा बल्कि कांग्रेस को भी भारी झटका पहुंचता। अाप की इस वक्त समस्या है कि उनके पास पंजाब में कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं है। सिद्धू यह कमी पूरी कर सकते हैं। लेकिन क्या अाप उन्हें अपना सीएम चेहरा बनाएगी भी? संभावना कम है।
जब सिद्धू ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया तो अाप के नेताओं ने इसका बहुत स्वागत किया लेकिन अगले ही दिन हिचकिचाहट नज़र अाई। केजरीवाल ने इस बात का प्रतिवाद किया कि सिद्धू को पंजाब में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया जा रहा है।
अाप में हिचकिचाहट क्यों है? एक कारण तो यह नज़र अाता है कि अाप का पंजाब नेतृत्व सिद्धू के प्रवेश से असहज है। सुच्चा सिंह छोटेपुर का कहना है कि ‘जेल जा चुके सिद्धू को टिकट नहीं।’ सिद्धू अंदर अा गए तो वह सब अप्रासंगिक हो जाएंगे और राज्यसभा से इस्तीफा देकर सिद्धू ने बता ही दिया कि अपनी महत्वाकांक्षा के अागे वह किसी को बर्दाश्त नहीं करते। लेकिन इस हिचकिचाहट का एक कारण और भी नज़र अाता है। अरविंद केजरीवाल। वह भी सिद्धू के पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की संभावना से जरूर असहज होंगे क्योंकि वह खुद छोटी सी दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं जहां उनके पास पूरे अधिकार नहीं हैं। अगर सिद्धू पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए तो उनका कद ऊंचा हो जाएगा और वह केजरीवाल को पृष्ठभूमि में धकेलने की क्षमता रखते हैं। अाखिर वह सैलेब्रिटी हैं। मशहूर हैं। अपनी लोकप्रियता के लिए किसी पर अाश्रित नहीं।
माखन लाल फोतेदार ने अपनी किताब ‘द चिनार लीवस’ में लिखा था कि इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को सलाह दी थी कि ‘तेजी के बेटे (अमिताभ बच्चन) को कभी टिकट मत देना।’ इसके पीछे धारणा थी कि अमिताभ कहीं राजीव से भी अागे न निकल जाएं। राजीव ने टिकट दे दिया और बाद में दोनों परिवार दुश्मन बन गए। केजरीवाल राजनीति का यह गुर खूब समझते हैं। उन्होंने तो धर्मवीर गांधी, हरजिंदर सिंह खालसा, प्रशांत भूषण तथा योगेन्द्र यादव जैसे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया वह नवजोत सिंह सिद्धू को कहां बर्दाश्त करेंगे? केजरीवाल सिद्धू नामी जोखिम क्यों उठाएंगे?
पंजाब में अाप का मुख्यमंत्री बनना है तो केजरीवाल क्यों नहीं? निक्की दिल्ली को मनीष सिसोदिया के हवाले कर केजरीवाल खुद इधर कदम रख सकते हैं। पंजाब में केजरीवाल तथा सिद्धू की बहुत जबरदस्त जोड़ी रहती। जाट सिख होने के कारण वह बादल और अमरेन्द्र सिंह का तगड़ा मुकाबला कर सकते हैं। ‘टोपीवाले’ केजरीवाल जानते हैं कि उनकी बराबरी नहीं कर सकते।
अाप जैसी पार्टी में केवल एक प्रमुख व्यक्तित्व की जगह है और यह जगह पहले से ही अरविंद केजरीवाल के पास अारक्षित है। इसलिए सिद्धू से कहा भी गया है कि वह पहले ‘अाम अादमी’ बनें। यही तो सिद्धू की कमजोरी है कि वह ‘अाम’ नहीं बन सकते। उनकी खास जगह बाकी नेताओं के लिए चुनौती है। वह यह भी बता गए हैं कि उन्हें पार्टी अनुशासन में बांधना बहुत मुश्किल है।
पंजाब में अाप के नेतृत्व की जो हालत है वह भगवंत मान के वीडियो अपलोड के कारनामे से पता चलती है। शुरू में नासमझी इतनी थी कि अहंकार में कह दिया कि अागे भी ऐसा करता रहूंगा लेकिन बाद में जब चारों तरफ से अालोचना हुई और अध्यक्ष ने कड़ी फटकार लगाई तो याचना करने लगे कि ‘मुझे नहीं मालूम था कि यह संसद के नियमों के खिलाफ है।’ ‘मुझे मालूम नहीं था?’ क्या भगवंत मान इतना नासमझ है कि उसे मालूम नहीं कि संसद के बारे वीडियो अपलोड कर जिसमें सुरक्षा व्यवस्था दिखाई जा रही थी, उसने इस सुरक्षा को जोखिम में डाला है?
बहरहाल सिद्धू परिवार का धारावाहिक चल रहा है। इसका क्लाईमैक्स क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। तीन बार भाजपा के सांसद रहे सिद्धू के पलायन से पार्टी को सदमा लगा है। वह भाजपा के बढि़या नेता हो सकते थे, जैसे मैं भी लिखता रहा हूं पर भाजपा ने तो फैसला कर लिया है कि वह अकालियों के साथ तैरेंगे और उन्हीं के साथ डूबेंगे। अाप को इनके प्रवेश से फायदा होगा क्योंकि अभी तक पंजाब नेतृत्व अनाड़ी सिद्ध हुअा जो बार-बार माफी मांगने से पता चलता है। यह लोग पंजाब की संस्कृति से वाकिफ नहीं। लेकिन क्या अाप उन्हें वह प्रमुख जगह देगी जिसकी सिद्धू को चाह है और जिसके लिए वह खुद को उपयुक्त समझते हैं?
उड़ता सिद्धू कहां उतरेगा, यह अभी अस्पष्ट है। राजनीति विचित्र चीज़ है। बहुत फिसलन है। यह न हो कि सिद्धू उड़ते ही रह जाएं, उतरने के लिए उपयुक्त ज़मीन न मिले!
राजनीति विचित्र चीज़ है। बहुत फिसलन है। यह न हो कि सिद्धू उड़ते ही रह जाएं, उतरने के लिए उपयुक्त ज़मीन न मिले!
— बहुत सटीक निष्कर्ष।