प्रशासनिक उदासीनता में डूबा एक शहर (A City Drowned in Administrative Apathy)

गुड़गांव जिसे अब ‘गुरूग्राम’ का नाम दिया गया है, को ‘मिलेनियम सिटी’ अर्थात् सहस्त्राब्दी का शहर भी कहते हैं। हम बताना चाहते हैं कि ऐसे शहर हमारा भविष्य हैं और शंघाई तथा सिंगापुर का मुकाबला करेंगे। देश की प्रतिभाशाली पढ़ी लिखी युवा पीढ़ी यहां काम करती है। बहुत विदेशी कम्पनियां भी यहां हैं। हरियाणा तथा केन्द्र सरकार दोनों को यह शहर भारी राजस्व देता है। लेकिन इस शहर की हालत क्या है यह इस बात से पता चलती है कि हाल ही की बारिश में लोग यहां 16-20 घंटे सड़क पर जाम में फंसे रहे। जो शाम को निकले वह अगले दिन दोपहर तक घर पहुंचे।
माना कि बारिश बहुत हुई। वहां ट्रैफिक भी बहुत होता है लेकिन उस दिन लोगों की व्यथा का एक कारण और था। यह कारण गैर जिम्मेवारी, प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता था। सुषमा स्वराज के नेतृत्व में विदेश विभाग विदेशों में फंसे भारतीयों की मदद कर रहा है लेकिन यहां लगभग पूरा दिन हमारे ‘सहस्त्राब्दी शहर’ की सड़कों पर फंसे लोगों की मदद के लिए कोई नहीं आया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने माना है कि गुड़गांव प्रशासन ने समय पर स्थिति को संभालने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने बादशाहपुर ड्रेन रुक जाने तथा उसके इर्दगिर्द अवैध निर्माण को भी उस हालत के लिए दोषी ठहराया। लेकिन इसके लिए भी जिम्मेवार कौन है? हर साल मानसून में गुड़गांव में बाढ़ आ जाती है फिर मानसून से पहले ड्रेन साफ करने का काम क्यों नहीं किया गया? निकासी के जो प्राकृतिक साधन हैं उन पर निर्माण कर इसे बंद कर दिया गया है पर रब्ब आसरे शहर को नहीं छोड़ा जा सकता। क्षेत्र में पहले जो तालाब थे जो अतिरिक्त पानी संभाल लेते थे, उन पर भी निर्माण हो चुका है।
लेकिन असली सवाल तो प्रशासनिक उदासीनता का है। जब जरूरत होती है तो अधिकारी तथा सरकारी कर्मचारी गायब क्यों हो जाते हैं? उस रात जिनकी ड्यूटी थी वह ट्रैफिक पुलिस कहां थी? जिलाधीश तथा पुलिस अधीक्षक कहां थे? सरकार तो तब जागी जब टीवी चैनलों ने लोगों की बेबसी सबके सामने रख दी कि हमारा सहस्त्राब्दी शहर इसी सदी में पानी में डूब गया।
गुड़गांव ऐसा शहर है जिस पर देश गर्व कर सकता है। शहर की अपनी आंतरिक मैट्रो है जो लोगों को उनके दफ्तरों तक पहुंचाती है। खाने-पीने का उसका ‘साइबर हब’ विदेशों की बराबरी करता है। आधुनिकता झलकती है पर इसकी चमचमाती इमारतों के नीचे एक बदसूरत हकीकत भी है कि व्यवस्था बहुत लचर है। यह हकीकत केवल टूटी सड़कें या फंसी ड्रेन ही नहीं यह हकीकत प्रशासनिक उदासीनता है जिसने इस चमकते शहर पर ग्रहण लगा दिया है। पर यह स्थिति केवल गुड़गांव में ही नहीं, बरसात में इसी तरह हमारे दो और बड़े महानगर, मुम्बई तथा बेंगलुरु, भी पानी में डूब गए।
मुम्बई नगर निगम का बजट 40,000 करोड़ रुपए है। अर्थात् कई प्रांतों से भी बड़ा है लेकिन हर बार बरसात में यह शहर पानी में डूब जाता है। सड़कों पर गड्ढे इतने हैं कि लोगों ने प्रशासन को शर्मिंदा करने के लिए उनके इर्दगिर्द रंगोली बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन मोटी चमड़ी है, असर नहीं होता। कर्मचारियों का वेतन ही इतना है कि विकास के लिए कुछ नहीं बचता। बाकी भ्रष्टाचार काम तमाम कर जाता है जैसे दिल्ली नगर निगम में भी होता है। हमारा एक और ‘मिलेनियम शहर’ है बेंगलुरु जिसे हम भारत की ‘सिलिकॉन वैली’ भी कहना पसंद करते हैं। यह पानी में इस तरह डूबा था कि प्रोफैशनल्स सड़क पर मच्छली पकड़ रहे थे!
समझा गया था कि नीचे तक लोगों को लोकतंत्र देकर हम व्यवस्था को अधिक जिम्मेवार बना लेंगे लेकिन उलटा हो रहा है। जिन शहरों और कस्बों को पहले एक प्रशासक संभालता था और अच्छी तरह से संभालता था, को अब दर्जनों जनप्रतिनिधि संभालते हैं जिनमें अधिकतर अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं। हम टैक्स देते हैं पर हमें अपने शहरों में मिलता क्या है? यह सवाल केवल गुड़गांव वाले ही नहीं हम सब कर सकते हैं जो रोज़ाना अपने शहर में गंदगी और अराजकता देखते हैं। हम निचले स्तर पर लोकतंत्र की घोर असफलता देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी देश बदलने का भरसक प्रयास कर रहे हैं लेकिन जब तक बाबू की मानसिकता नहीं बदलती देश नहीं बदलेगा। आप उन्हें 7वें की जगह 70वां वेतन आयोग भी दे दो, वह नहीं बदलेंगे। कार्यसंस्कृति बराबर शोचनीय रहेगी। गाद से भरीं गुड़गांव की सड़कें ही स्वच्छ भारत अभियान का मज़ाक उड़ा रही हैं। ड्यूटी के प्रति समर्पण और जवाबदेही नहीं है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होती तब तक यह जर्जर प्रशासनिक मानसिकता नहीं बदलेगी। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सामूहिक बलात्कार से पीड़ित परिवार ने चार बार 100 नम्बर पर फोन किया था, किसी ने फोन नहीं उठाया।
हरियाणा के संदर्भ में हमने जाट आंदोलन के समय भी देखा कि प्रशासन गायब था। पहले हरियाणा जल रहा था अब पानी में डूब गया। और हरियाणा तो हमारा धधकता प्रांत है। दिल्ली के साथ सटा है। अगर वहां ऐसी प्रशासनिक कमजोरी है तो बाकी देश का क्या हाल होगा? मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बहुत नेक और शरीफ इंसान हैं। उनकी ईमानदारी तथा सादगी एक मिसाल है लेकिन प्रशासन को चलाने तथा चुस्त करने के लिए सख्ती भी चाहिए। चाणक्य ने भी ‘बिना भय के तंत्र’ के खिलाफ चेतावनी दी थी।
हरियाणा में इतना कुछ हो गया पर मुख्यमंत्री सख्ती करने से घबराते रहे। गुड़गांव की दुर्दशा के बाद अगर कुछ अधिकारियों को सस्पैंड कर दिया जाता तो आगे के लिए बाकी सावधान हो जाते पर केवल ट्रांसफर तथा चेतावनी देकर मामला रफा दफा कर दिया। जो अपनी जिम्मेवारी निभाने के प्रति इतने लापरवाह थे जिसके कारण हजारों लोगों को तकलीफ हुई उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों न हो? अगर मनोहर लाल खट्टर को सफल होना है तो दंड की नीति उन्हें अपनानी होगी, जैसी चाणक्य भी सलाह दे गए हैं, नहीं तो हरियाणा में ऐसे महाहादसे दोहराते रहेंगे।
केवल नाम बदलने, बॉम्बे से मुम्बई, बैंगलोर से बेंगलुरु या गुड़गांव से गुरूग्राम, से कुछ नहीं होगा। सरकारी कर्मचारी की मानसिता बदलनी पड़ेगी क्योंकि वह खुद नहीं बदलेगा। ‘सब चलता है’ की संस्कृति इस देश की तरक्की के आगे सबसे बड़ी रुकावट है। लेकिन हम नागरिक प्रशासन को ही क्यों कोसें, हमारे तो पठानकोट एयरबेस के अंदर तक आतंकी घुसपैठ कर गए। वहां भी सुरक्षा के प्रति वही लापरवाही और उदासीनता दिखाई दी जिसका मैं यहां मातम मना रहा हूं।

VN:F [1.9.22_1171]
Rating: 10.0/10 (1 vote cast)
VN:F [1.9.22_1171]
Rating: +1 (from 1 vote)
प्रशासनिक उदासीनता में डूबा एक शहर (A City Drowned in Administrative Apathy), 10.0 out of 10 based on 1 rating
About Chander Mohan 728 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.