
शहीद राम प्रसाद बिस्मल जिन्हें 19 दिसम्बर 1927 में फांसी दी गई थी, ने लिखा था,
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज होगा,
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा!
अब जबकि देश आजादी के सात दशक पूरे कर रहा है देखने की जरूरत है कि हमने अपनी जमीं और अपने आसमां का बनाया क्या है?
इसमें कोई शक नहीं कि देश ने बेहद तरक्की है। बाहर के लोग पूछते हैं कि अगला सुपर पावर कौन है, चीन या भारत? इस वक्त हमारी अर्थव्यवस्था योरूप की अर्थव्यवस्था से चार गुणा तेजी से बढ़ रही है और 2030 के दशक में हम यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था को मात दे देंगे। 2050 तक हमारी अर्थव्यवस्था यूरोपियन यूनियन से दो गुणा होगी। तब केवल तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होंगी-भारत, अमेरिका और चीन।
लेकिन यह तो दूर की बात है। इस वक्त तो दुनिया के सबसे गरीब, सबसे निरक्षर, सबसे कुपोषित, सबसे बीमार भारत में हैं। निश्चित तौर पर वह राजनीतिक व्यवस्था जिसने अधिकतर भारतीयों को गरीब, अनपढ़ और बेरोजगार रखा है, दोषपूर्ण है। क्या हुआ?
इसका जवाब है कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में देश पर वह समाजवादी तथा मार्कसी विचारधारा लाद दी गई जिसने भारत को अपने मूल्यों, अपनी विरासत तथा अपनी सभ्यता से अलग कर दिया। देश के प्रति इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है कि आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजी को लाद कर अधिकतर जनसंख्या को अनपढ़ बना हीन भावना से ग्रस्त कर दिया गया? इस चोट से अभी तक लोग उभर नहीं सके। अभी भी वह दूसरे दर्जे के नागरिक हैं।
और क्योंकि जवाहरलाल नेहरू के बाद अधिकतर उनके परिवार का शासन रहा इसलिए नीति परिवर्तन नहीं किया गया। समाजवाद के नाम पर गरीबी बांटी गई। हमारी कितनी दुर्गत है कि सात दशक के बाद भी मनरेगा जैसी शर्मनाक योजना की जरूरत है? क्या बार-बार पांच वर्षीय योजनाओं की असफलता का और प्रमाण हो सकता है? समाजवाद के साथ कथित सैक्युलरवाद भी लाद दिया गया जहां अगर आप अपनी जड़ों की बात करते हो तो आपको दकियानूसी कट्टर कहा जाता है। ऐसा माहौल बना दिया गया कि समाजवाद तथा कथित धर्मनिरपेक्षता का विरोध करना देशद्रोह के बराबर था जबकि इस दौरान लगातार दंगे होते रहे।
इस देश की अपनी ऊर्जा है, अपने मूल्य हैं। वास्तव में यह केवल एक देश या एक राष्ट्र ही नहीं, यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है। यह वह सभ्यता है जिसने दुनिया को चार महान धर्म हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा सिख दिए हैं। किसी भी सभ्यता ने इतने महापुरुष, दार्शनिक, गुरू तथा संत नहीं दिए जितने भारत भूमि ने दिए हैं। जिस तरह अब योग ने दुनिया को रोमांचित किया उससे पता चलता है कि हम दुनिया को कितना कुछ दे सकते हैं।
अब देश अपनी ऊर्जा पहचान रहा है। 2014 के चुनाव में लोगों ने बता दिया कि वह असली परिवर्तन चाहते हैं, वह केवल पांच साल बाद वोट के अधिकार से ही संतुष्ट नहीं। वह अच्छा जीवन स्तर चाहते हैं। वह उस लोकतांत्रिक सामंतवाद जिसने एक परिवार का शासन उन पर लाद दिया था, को रद्द करते हैं।
लोगों की आकांक्षाएं बहुत बढ़ चुकी हैं। वह व्यवस्था को बदलना चाहते हैं लेकिन व्यवस्था बदलने के लिए तैयार नहीं। ऊपर परिवर्तन आया है पर नीचे वही हाल है जो गुड़गांव के महाजाम से पता चलता है जब देश का सबसे चमकता शहर घंटों जाम में फंसा रहा। ओलंपिक खेलों के लिए खिलाड़ी तो इकॉनिमी क्लास में रियो गए हैं जबकि अफसर महंगे बिजनेस क्लास में गए। यह मानसिकता कब बदलेगी?
हमारी आधी जनसंख्या 35 वर्ष से नीचे है। हर वर्ष 1.2 करोड़ युवा भारतीय वर्कफोर्स में शामिल होते हैं। अगर इन्हें सही रोजगार मिल जाए तो हम अमेरिका से भी आगे निकल जाएं। अगर न मिला तो बहुत विस्फोट की संभावना है। इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की बहुत जरूरत है। सरकारी शिक्षा एक घोटाला है।
कई क्षेत्र हैं जहां सही काम हो रहा है। सड़कें तेजी से बन रही हैं। बिजली उत्पादन में वृद्धि हो रही है। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में तेज कदम उठाए जा रहे हैं। सदैव लेट-लतीफ रेल भी गति पकड़ रही है। प्रधानमंत्री ने जो योजनाएं शुरू की हैं उनसे देश बदलेगा, समय चाहे लग जाए। एक परिवार के बरगद के नीचे अधिक कुछ नहीं उग सका। अब यह साया हट गया है। पीवी नरसिम्हा राव ने एक बार कहा था कि इस देश में विवेक की गंगा बह रही है लेकिन इसमें मगरमच्छ भी हैं। इन मगरमच्छों से हमें सावधान रहना है। यह धर्म के नाम पर और जाति के नाम पर समाज को बांट रहे हैं। दलितों पर जो अत्याचार हुआ है वह माफ करने लायक नहीं चाहे यह गौरक्षा के नाम पर हो या किसी और नाम पर। ऐसे लोग हिन्दुत्व का भारी अहित कर रहे हैं।
कश्मीर में चुनौती की शक्ल बदल गई है। अब वहां कश्मीरियों के हक के लिए संघर्ष नहीं हो रहा। वहां इस्लामिक स्टेट कायम करने के लिए संघर्ष हो रहा है। जो लोग बार-बार कह रहे हैं कि बात करो, बात करो, उन्हें समझना चाहिए कि शरारत बहुत गहरी है। पहले उसे पराजित करना है बाद में ही बात हो सकती है। पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने की जरूरत है। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। ब्लूचिस्तान में आजादी के लिए संघर्ष चल रहा है। हमारे नैतिक समर्थन की उन लोगों को बहुत जरूरत है।
ओलंपिक खेलों में हमारा प्रदर्शन निराशाजनक है। लेकिन अगर विजय गोयल की हरकतों को एक तरफ रख दिया जाए, इन खेलों का एक उज्जवल पक्ष भी है कि किस तरह सारे भारत से खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं। किसी भी एक प्रदेश या क्षेत्र का प्रभुत्व नहीं है। इरोम शर्मिला के मणिपुर के खिलाड़ियों का उतना ही योगदान है जितना पंजाब या हरियाणा के खिलाड़ियों का है।
यह रंग-बिरंगी बहुरूपता हमारी ताकत है। दत्तू बब्वन भोकानल जैसे बहुत खिलाड़ी हैं जो अत्यंत विपरीत परिस्थितियों पर विजय पाकर यहां तक पहुंचे हैं। यह देश के प्रति जज्बा है जो हमारी ताकत है। कई दर्जन भाषाएं बोलने वाला तथा हजारों देवी-देवताओं या अलग धर्मों को मानने वाले सब लोग एक तिरंगे को सलाम करते हैं।
15 अगस्त को जब मैं यह लेख लिख रहा हूं मुझे अहसास है कि अभी बहुत सफर तय करना है लेकिन मेरा मानना है कि शुरुआत हो चुकी है। परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी है क्योंकि पुराना आलस नहीं जाता लेकिन यह स्पष्ट है कि देश यत्न कर रहा है और दुनिया हमारी प्रगति को मान्यता दे रही है। जरूरी है कि अपने में विश्वास रखें और उस नेता को समर्थन जारी रखें जिसने दो साल पहले परिवर्तन की यह प्रक्रिया शुरू की थी।