शिकारी खुद शिकार हो गया! (The Hunter is Hunted)

आप से दुत्कारे नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना आवाज-ए-पंजाब मोर्चा बना लिया है। इस मोर्चे में शामिल वह चार लोग हैं जिनकी बादल विरोधी छवि है। अभी तक कोई स्पष्टता नहीं कि पार्टी की विचारधारा क्या होगी, कौन इसके सदस्य होंगे? इतने कम समय में संगठन कैसे खड़ा होगा? 117 सीटों पर उम्मीदवार कहां से आएंगे? साधन कहां हैं? आदत के अनुसार सिद्धू दम्पति मामले को लटकाए रखे हुए है। घोषणा किश्तों में की जाती है पर ऐसी सिद्धू दम्पति की राजनीति है। वह सब कुछ रहस्यमय रखना पसंद करते हैं।
अभी तो इनका भविष्य अनिश्चित नजर आता है। एक समय मनप्रीत बादल की भी बड़ी अच्छी छवि थी। जब उन्होंने अकाली दल छोड़ा तो समझा गया कि पंजाब की राजनीति में भूचाल आएगा लेकिन वे पार्टी खड़ी न कर सके और आखिर में अपनी पीपीपी को कांग्रेस में शामिल करने के लिए मजबूर हो गए। अगर सिद्धू ने प्रासंगिक बनना है तो उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी, केवल नाटक या शेरो शायरी पर्याप्त नहीं होगा।
उधर अपने नेतृत्व की बेवकूफियों के कारण आप जिस शिखर पर खड़ी थी उससे लगातार फिसलती जा रही है। पार्टी दोफाड़ भी हो रही है। 13 में से 7 जोनल प्रभारियों ने बगावत कर केजरीवाल का साथ छोड़ निलंबित सुच्चा सिंह छोटेपुर का साथ देने की घोषणा की है। इससे पहले कई जगह आप के दो गुटों में मारपीट हो चुकी है। पार्टी दिल्ली वाले तथा पंजाब वालों में बंट चुकी है। पार्टी को 14 अप्रैल को 17,69,900 रुपए चंदा मिला था जो सूख कर 16 मई को 20 रुपए तथा 17 जून को 100 रुपए रह गया।
केजरीवाल उसी हाईकमान संस्कृति को अपना रहे हैं जिसके विरोध में पार्टी खड़ी हुई थी। यह बात सिद्धू को देर से समझ आई। पार्टी में सत्ताधीश हावी हो गए हैं। आम कार्यकर्ता की उपेक्षा की जा रही है अब फिर केजरीवाल का कहना है कि पंजाब में पार्टी की कमान मेरे हाथ होगी। नेतृत्व ने छोटेपुर वाला मामला बहुत अनाड़ी तरीके से निपटा है। पहले उन्हें अपमानित कर निकाल दिया फिर उन्हें मनाने की कोशिश की गई। पंजाब में कोई चेहरा नहीं रहा जिसे वह मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश कर सकें। गुरप्रीत घुग्गी को कन्वीनर नियुक्त किया है। वह बेदाग हैं पर बिलकुल अनाड़ी हैं आखिर छह महीने पहले राजनीति में आए। यह भी मालूम नहीं कि उन्हें कितनी आजादी दी जाएगी। भगवंत मान जो लोगों को इकट्ठा करने की क्षमता रखते हैं, अपने पैदा किए विवादों में फंस गए हैं। मीडिया से उलझ चुके हैं इसलिए अब वह मीडिया से बच रहे हैं। यह स्थिति तब ही बनती है जब सवालों के जवाब नहीं होते।
महिलाओं के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दिए दिल्ली के मंत्री संदीप कुमार को बर्खास्त कर दिया गया है। आप के छ: में से तीन मंत्री बर्खास्त किए जा चुके हैं। जोश में भर्ती सही नहीं की गई जिससे दिल्ली सरकार की छवि खराब हुई है। लेकिन संदीप कुमार तथा पंजाब में सुच्चा सिंह छोटेपुर प्रसंग दोनों बताते हैं कि स्टिंग आप्रेशन का जो हथियार अरविंद केजरीवाल ने दूसरों के खिलाफ अपनाया था उसी हथियार से उनकी पार्टी खुद अस्थिर हो रही है। जब केजरीवाल मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उत्साह में अपने कार्यकर्ताओं से कहा था कि वह अपने फोन के कैमरे तैयार रखें और जो भ्रष्ट अफसर या नेता हो उसका स्टिंग कर लें। आज यही स्टिंग उनकी पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं। आगे और भी स्टिंग बाहर आ सकते हैं। और छोटेपुर कह सकते हैं कि
कभी खुद जोर में अपने ही गिर जाता है ज़ोरावर
ऐ मेरे कातिल कहीं तू अपना ही कातिल न बन जाना!
यह अकसर होता है कि जो आदमी खुद को बहुत चुस्त तथा चालाक समझता है वह अपने खोदे हुए गड्डे में खुद गिर जाता है। शिकारी खुद शिकार हो जाता है।
अब आप के अपने विधायक ने आरोप लगाया है कि पंजाब में टिकट देने का झांसा देकर पार्टी अधिकारियों ने महिलाओं का यौन शोषण किया है। इसकी पुष्टि छोटेपुर भी कर रहे हैं। केजरीवाल एंड कम्पनी का गम का प्याला छलक रहा है।
अरविंद केजरीवाल की छवि ऐसे तानाशाह की बन रही है जो किसी भी नेता को बर्दाश्त नहीं करते जो उनके बराबर हो। प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, डा. दलजीत सिंह, धर्मवीर गांधी, हरिन्दर सिंह खालसा जैसे लोकप्रिय और समर्पित नेताओं को बहाना बना कर बाहर कर दिया गया। अब सुच्चा सिंह छोटेपुर की बारी है। आप कार्यकर्ताओं की पार्टी थी पर ममता, मायावती, जयललिता की तरह केजरीवाल सुप्रीमो बन बैठे।आप तथा अरविंद केजरीवाल पर सबसे गंभीर आरोप है कि उन्हें सिख परम्पराओं का ज्ञान नहीं और अधिक परवाह भी नहीं। मामला घोषणापत्र के मुख्य पृष्ठ पर दरबार साहिब की तस्वीर के साथ झाड़ू का चित्र छापने का है। जब यह प्रकाशित हुआ तो कन्वीनर छोटेपुर ने कहा था कि मुझे यह दिखाया नहीं गया। केजरीवाल सेवा के लिए जब अमृतसर दरबार साहिब आए तो उन्होंने छोटेपुर से पूछा कि आपने क्यों कहा कि ‘मुझे मालूम नहीं था?’ केजरीवाल का यह भी कहना था कि आप को इसकी जिम्मेवारी लेनी चाहिए थी। इस पर जब छोटेपुर ने जवाब दिया कि तब अकाल तख्त मुझे सिखी से निकाल देता तो अरविंद केजरीवाल की लापरवाह प्रतिक्रिया थी, ‘तो क्या होता अगर आपको सिखी से निकाल देते?’ यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी है और इससे पता चलता है कि उच्च सिख परम्पराओं के प्रति अरविंद केजरीवाल का रवैया कितना असंवेदनशील है कि वह कह सकते हैं कि अगर सिखी से निकाल देते तो क्या हो जाता?
नवजोत सिंह सिद्धू के मोर्चे का अकाली दल को अधिक फायदा होगा क्योंकि विरोधी वोट अब दो की जगह तीन जगह बंट जाएंगे। अगर इन तीनों में से एक आगे निकल जाता है तो अलग बात है पर इस वक्त तो सब उलझे हुए लगते हैं। लटकती विधानसभा भी आ सकती है। सिद्धू का कदम न चाहते हुए भी उन अकालियों की मदद कर रहा है जिनके खिलाफ उन्होंने मोर्चा बनाया है।
पर सबसे अधिक नुकसान आप तथा खुद अरविंद केजरीवाल का हो रहा है। पार्टी अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंस गई है। अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वकांक्षा पंजाब में जीत पर आधारित थी। यहीं से उनका काफिला आगे बढ़ना था। वह खुद को नरेन्द्र मोदी का विकल्प जता रहे थे लेकिन अचानक किस्मत और राजनीति ने पलटा खाया। दिल्ली में रहते हुए भी उनके लिए दिल्ली दूर हो गई है!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.