संयुक्त राष्ट्र में नवाज शरीफ के भाषण का 80 प्रतिशत हिस्सा कश्मीर पर था। आतंकी बुरहान वानी को ‘नया नेता’ कहा पर नवाज के राग को विश्व समुदाय ने अनसुना कर दिया। कराची के ‘डॉन’ अखबार ने भी शिकायत की कि अमेरिका में उनके दोस्तों की संख्या बहुत कम रह गई है। पड़ोसी बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान तो पहले ही पाकिस्तान के सताये हुए हैं। चीन के एक विशेषज्ञ हूशीशेंग ने एक भारतीय अखबार को बताया कि ‘उरी की घटना बताती है कि पाकिस्तान का अपने आतंकी गुटों पर नियंत्रण कमजोर पड़ गया है।’ हूशीशेंग के अनुसार चीन चाहे सार्वजनिक तौर पर इस बात की चर्चा न करे लेकिन निजी तौर पर पाकिस्तान से बात जरूर होगी। चीन की अपनी चिंता है कि भारत-पाक तनाव तथा बलूचिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर की स्थिति का उनके 46 अरब डालर के चीन-पाकिस्तान गलियारे पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
दुनियाभर में पाकिस्तान की छवि एक ‘Rogue State’ और पाकिस्तान की सेना की छवि एक ‘Rogue Army’ अर्थात् बदमाश राष्ट्र तथा बदमाश सेना की बनती जा रही है। दुनिया में यह राय बन चुकी है कि पाकिस्तान आतंकवाद की जड़़ है इसीलिए इस बार किसी भी देश ने नवाज शरीफ को घास नहीं डाली। बराक ओबामा तो मिले ही नहीं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में उसकी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने दोनों देशों के बीच परमाणु टकराव का मामला जरूर उछाला लेकिन पाकिस्तान का दुर्भाग्य है कि दुनिया में कोई उसकी बात नहीं सुन रहा। जहां भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार उसे आतंकी देश करार दिया वहां अमेरिका के दो सांसदों ने अपनी प्रतिनिधि सभा, कांग्रेस, में एक विधेयक पेश किया है कि पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित करने वाला देश घोषित किया जाए।
पाकिस्तान को आतंकी देश करार दिए जाने की मांग पहले भी उठी थी जब मुम्बई, न्यूयार्क, लंदन, मैड्रिड समेत कई शहरों में आत्मघाती हमले हुए थे जिनके तार पाकिस्तान से जुड़े थे लेकिन पाकिस्तान बचता रहा क्योंकि उनका विलाप था कि वह खुद आतंकवाद के शिकार हैं। लेकिन अब ओसामा बिन लादेन को शरण देने तथा अफगानिस्तान के हक्कानी नेटवर्क को समर्थन देने तथा पठानकोट और उरी में हमले के बाद पाकिस्तान के प्रति तनिक भी सहानुभूति नहीं रही। आम राय यह है कि अगर वहां आतंकी घटनाएं हो रही हैं तो इसके लिए वह खुद और उनकी नीतियां जिम्मेदार हैं जो अच्छे तथा बुरे आतंकवादी में फर्क करती हैं। नवाज शरीफ का दुर्भाग्य है कि संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन के बीच न्यूयार्क में आतंकी हमले का प्रयास किया गया। जो शख्स अहमद खान रहामी पकड़ा गया उसके बारे भी सूचना है कि वह पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान उग्रवादी प्रचार से प्रभावित हुआ था। उसका नाम आतंकवादियों की उस लम्बी सूची में शामिल है जो पश्चिम से जाकर पाकिस्तान में रैडिकल बन गए।
यह दिलचस्प है कि संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण से पहले नवाज शरीफ ने अपने शक्तिशाली सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ से फोन पर बात की थी। क्या वह राहिल शरीफ से निर्देश प्राप्त कर रहे थे कि मैं क्या बोलूं क्या न बोलूं? इसका सीधा मतलब यह है कि जहां तक भारत-पाक रिश्ते का सम्बन्ध है नवाज शरीफ अप्रासंगिक हो गए हैं केवल राहिल शरीफ का महत्व है। पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार आयशा सद्दीका का कटाक्ष है कि ‘असली शरीफ’ तो राहिल हैं!
पाकिस्तान की अपनी हालत जर्जर है। निर्यात में तथा बाहर से पाकिस्तानियों द्वारा भेजी जा रही रकम में भारी गिरावट के बाद आर्थिक स्थिति नाजुक बन गई है। वह तो एक सप्ताह का युद्ध भी बर्दाश्त नहीं कर सकते।
पाकिस्तान के उदारवादी वरिष्ठ सम्पादक खालिद अहमद लिखते हैं, ‘अगर कश्मीरी अंतरराष्ट्रीय राय की अदालत के सामने अपना केस रखना चाहते हैं तो उन्हें बताया जाना चाहिए कि वह पाकिस्तान के झंडे न लहराएं…जब भी पाकिस्तान का नाम आता है तो दुनिया मुंह फेर लेती है।’ खालिद अहमद यह भी लिखते हैं कि जो पाकिस्तान के जेहादी ‘कश्मीर को आजादी’ दिलवाने का दावा करते हैं यह वही लोग हैं जिन पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाया हुआ है पर वह खुले पाकिस्तान में घूम रहे हैं।
पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कैम्पों में ट्रेनिंग प्राप्त जेहादी दुनियाभर में आतंक फैला रहे हैं। वह दुनिया के कटघरे में एक अपराधी के तौर पर खड़ा है और उसके साथ जुड़ा होने के कारण कश्मीर के अलगाववादियों के आंदोलन को कोई महत्व नहीं दे रहा। लाख कहा जाए कि वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, दुनिया की नजरें इधर हैं ही नहीं। पाकिस्तान के जरनैल निश्चित तौर पर गधे होंगे जिन्होंने इस नाजुक मौके पर जब दुनिया बारीकी से उनकी नापाक हरकतों पर नज़र रखे हुए है, उरी में हमला करवा दिया। जब जी-20 में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को प्रेरित करने का मामला उठाया तो पाक के चीन, सऊदी अरब या तुर्की जैसे एक भी मित्र ने पाकिस्तान का पक्ष नहीं लिया। बचा खुचा सार्क ही रह गया है लेकिन पाकिस्तान में होने वाले शिखर सम्मेलन पर ही सवालिया निशान लग गया है।
पाकिस्तान को यह स्थिति चुभ रही है। 20 सितम्बर को चार प्रमुख पाकिस्तानी, इनाम उल हक, रियाज़ हुसैन खोखर तथा रियाज़ मुहम्मद खान (तीनों पूर्व विदेश सचिव) तथा रिटायर्ड मेजर जनरल मुहम्मद दुरानी ने डॉन अखबार में लिखा है, ‘यह सोच कि पाकिस्तान ने कश्मीर में उग्रवाद को समर्थन दिया तथा हमारे तालिबान के साथ रिश्तों के कारण हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि को बहुत नुकसान पहुंचा है…मुम्बई पर हमला करवाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी को यह समझा गया है कि पाकिस्तान का आतंकवाद, जो आधुनिक समाज के लिए श्राप है, के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प कमजोर है। इसके कारण पाकिस्तान की कश्मीर के बारे वकालत कमज़ोर पड़ जाती है…।’
लेकिन हमारी समस्या है कि हमारे पड़ोस में इस बदमाश सेना का शासन है। नवाज शरीफ तो एक राजनीतिक कार्टून बनते जा रहे हैं। हमारी प्रतिक्रिया क्या हो? सिंधु का पानी हम रोक नहीं सकते क्योंकि रोकने के लिए डैम या नहरें हमने नहीं बनाईं। अगर पानी रोका गया तो सारी कश्मीर वादी डूब जाएगी। हम तो इतने लापरवाह हैं कि पंजाब से पाकिस्तान की तरफ बहता पानी भी नहीं रोक सके। पर मन में गुस्सा बहुत है। विभिन्न मंचों से ‘करार जवाब’ संतुष्ट नहीं करता। मामला वाक युद्ध का नहीं है। लेकिन आखिर में फैसला सरकार करेगी और कार्रवाई सेना। इसका इंतज़ार रहेगा।