पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म नवाज शरीफ के दफ्तार में उनके प्रशासनिक अधिकारियों तथा सेना तथा आईएसआई के अधिकारियों के बीच जो टकराव हुआ जिसकी जानकारी कराची के अखबार ‘द डॉन’ ने बाहर निकाली है, बेमिसाल है। पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार मरियाना बाबर ने तो इसे ‘ऐतिहासिक खबर’ कह दिया है। आमतौर पर सेना के अधिकारियों के सामने भीगी बिल्ली बने नेता तथा प्रशासनिक अधिकारियों ने सीधा सेना की नीतियों पर हमला किया कि सेना द्वारा ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ अर्थात् जेहादियों को दिए जा रहे संरक्षण के कारण पाकिस्तान दुनिया में अलग थलग पड़ गया है। पाकिस्तान के विदेश सचिव की शिकायत थी कि बड़े देश हमारी बात नहीं सुन रहे। उनके इस कथन से सब सन्न रह गए कि भले ही चीन इस वक्त उन्हें समर्थन दे रहा है पर चीन ने भी उन्हें दिशा बदलने को कहा है।
चाहे सार्वजनिक तौर पर नवाज शरीफ भी कश्मीर का मसला उठाते रहते हैं पर पाकिस्तान में तो ऐसी आवाजें उठ रही हैं कि कश्मीर को छोड़ो पहले पाकिस्तान को बचाओ। वह देख रहे हैं कि किस तरह दो मुस्लिम देशों, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश, ने भी सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था और उरी पर हुए हमले की अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों ने कड़ी निंदा की थी। सरकार तथा सेना के नेतृत्व में एक बड़ा टकराव वहां पैदा हो रहा है। राजनेता अधिक आक्रामक हो रहे हैं और नवाज शरीफ जमीन फिर हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। नहीं तो अब तक किसी ने सेना या आईएसआई की नीतियों पर सवाल उठाने तथा उन्हें पाकिस्तान की बहुअसफलता के लिए जिम्मेवार ठहराने की जुर्रत नहीं की थी।
भारत को धमकियां देने वाले हाफिज सईद के बारे नवाज के सांसद का सवाल करना कि ‘हाफिज सईद कौन से अंडे दे रहा है कि उसे हम पाल रहे हैं’, बताता है कि पाकिस्तान के अंदर से वह सवाल उठ रहें हैं जिनकी कुछ समय पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पीपीपी के सांसद ऐतजाज अहसान जिनकी शिकायत थी कि पाकिस्तान इसलिए अलग थलग हो रहा है क्योंकि नॉन स्टेट एक्टर्स को खुली छूट दी गई थी, ने यह भी कहा है कि ‘हम समझते हैं कि उरी के हमले में पाकिस्तान का हाथ होने को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।’ पाकिस्तान का कहना है कि उरी का हमला भारत के अंदर से हुआ था पर अब वहां उनके अपने सांसद इस अफसाने पर सवाल खड़े कर रहें हैं।
ऐसे सवाल और शिकायतें अब पाकिस्तान में आम हो गई हैं। पाकिस्तान के टीवी चैनल तथा अखबार इनसे भरे रहते हैं। ‘द डॉन’ अखबार में संपादक के नाम पत्र पढ़ रहा था। एक पाठक सलमान खान ने शिकायत की कि ‘कोई अब हमारे राजनयिकों से बात नहीं करना चाहता। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा है। हमारी सबसे बड़ी गलती आतंकवादी (बुरहानी वानी) की प्रशंसा करना था। हम कब तक नकारते रहेंगे।’ एक पाक टीवी चैनल पर विशेषज्ञ बोल रहा था, ‘कश्मीर को लेना है। कैसे लेना है? खामखाह हवा में तलवारें चला रहे हैं। जो था (बांग्लादेश) वह तो हम संभाल नहीं सके…आपसे बलूचिस्तान नहीं संभाला जा रहा, कराची नहीं संभाला जा रहा पर कश्मीर लेंगे! किस मुंह से लेंगे? और क्या करना है कश्मीर लेकर?’
पाकिस्तान की हालत पर मरियाना बाबर का भी कहना है कि पहले अपना घर देखे पाकिस्तान। पाकिस्तान के अखबार ‘द डेली टाइम्स’ ने लिखा है कि यह पाकिस्तान के लिए आत्मनिरीक्षण का समय होना चाहिए। प्रमुख टिप्पणीकार तथा विश्लेषक अयाज़ अमीर ने सरकार को सावधान किया है कि ‘यह अपने घर को व्यवस्थित करने का वक्त है भारत से निबटने का नहीं।’ वरिष्ठ पत्रकार आईए रहमान ने लिखा है ‘शायद पाकिस्तान के लोगों के गम का पैमाना अभी थोड़ा और भरना होगा ताकि सियाने लोग भारत के साथ टकराव की नीति पर पुनर्विचार की मांग कर सकें जो रोजाना अधिक महंगी तथा अर्थहीन हो रही है। हम मिस्टर मोदी पर अलग थलग करने की बात कैसे थोप सकते हैं जब हम खुद अपने को अलग करने से बाज़ नहीं आ रहे।’
इस मामले में भारत सरकार की दबाव वाली रणनीति सफल हुई है। कूटनीति और अब सर्जिकल स्ट्राइक के साथ उन्हें आयना दिखा दिया गया है। इस स्ट्राइक ने भारत की प्रतिक्रिया के बारे वहां अनिश्चितता पैदा कर दी है कि पता नहीं जवाब क्या आएगा? यह सोच भी रद्द कर दी गई कि आतंकवाद वह विकल्प है जिसकी कीमत अदा नहीं करनी पड़ेगी। उनका परमाणु ब्लैकमेल भी काम नहीं आया। पर आगे क्या? क्या पाकिस्तान बंदा बनेगा और सभ्य देशों की पंक्ति में शामिल होगा? पाकिस्तान बुद्धिजीवी रज़ा रूमी के अनुसार नवाज शरीफ भारत को स्थायी दुश्मन नहीं समझते जिसके साथ 1000 वर्ष की लड़ाई लड़ी जानी है। लेकिन स्थिति में अंतर यह है कि अब नीचे से आवाज उठ रही है कि दिशा बदलो नहीं तो देश डूब जाएगा। बहुआंतरिक समस्याओं से जूझ रहे पाकिस्तान में गंभीर आत्ममंथन शुरू हो चुका है। इससे पाकिस्तान में सुधार होगा या चरमपंथी विचारधारा के कारण वह ऐसे ही बदमाश देश बना रहेगा या तूफान में कागज़ के लिफाफे की तरह वह फट जाएगा, यह तो समय ही बताएगा।
देश ने पहले भी पाकिस्तान के साथ कई लड़ाइयां लड़ी हैं। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में, 1971 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में और 1999 में कारगिल में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में। तीनों में पाकिस्तान को बुरी मार खानी पड़ी थी पर किसी ने ‘खून की दलाली’ का आरोप नहीं लगाया। संकट के क्षणों में सारा देश एकजुट होना चाहिए लेकिन इस नाजुक समय विपक्ष के कुछ नेताओं में हताशा इतनी है कि वह हर प्रकार की लक्ष्मण रेखा पार कर रहे हैं। राहुल गांधी के अहंकार तथा गैर जिम्मेवार बोल पर तो हैरानी और कष्ट होता है। वह एक जिम्मेवार नेता की तरह उभरने में अक्षम है। इतनी भी समझ नहीं कि ‘दलाल’ शब्द का लक्ष्यार्थ क्या है? राहुल गांधी की टिप्पणी शर्मनाक तथा असभ्य है। उन्होंने अपनी सर्जिकल स्ट्राइक कर ली! अफसोस इस बात का भी है कि वह उस परिवार से सम्बन्ध रखते हैं जिसने देश को मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे नेता दिए हैं पर यहां तक पहुंचते धारा प्रदूषित हो गई लगती है। गंदली हो गई है। संस्कार घुल गए। अब तो इस अंगूर की बेल पर कद्दू लटकता नज़र आ रहा है।